जलवायु परिवर्तन : कृषि वानिकी एवं उद्यानकी के क्षेत्र में व्यापक सुधार की आवश्यकता      Publish Date : 07/03/2024

जलवायु परिवर्तन : कृषि वानिकी एवं उद्यानकी के क्षेत्र में व्यापक सुधार की आवश्यकता

                                                                                                                                                                             प्रोफेसर आर एस सेंगर

ग्लोबल वार्मिंग के वर्तमान संकट को देखते हुए जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से हमें कृषि बांध की एवं उद्यान की के क्षेत्र में व्यापक सुधार के साथ-साथ जीवन के हर स्तर पर न्यूनतम आवश्यक ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देना होगा। जिससे कल कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में अपेक्षा के अनुरूप ही कमी की जा सके।

मृदा उर्वरता संवर्धन

                                                                   

मृदा उर्वरता संवर्धन के लिए दलहनी फसलों का विस्तार करना होगा। फसल चक्र में परिवर्तन से बीमारी कीड़े खरपतवार की समस्या कम होगी। दलहनी फसलों के साथ कपास जैसी गहरी जड़ वाली फसल युक्त फसल चक्र अपनाना विशेष लाभकार सिद्व होंगा। जिसमें जैविक कार्बन की मात्रा में वृद्धि भी होगी। दनहनी फसलों की खेती बढ़ाने पर नाइट्रोजन धारी उर्वरकों को जमीन में काम देने की आवश्यकता पड़ती है और प्राकृतिक रूप से नाइट्रोजन की लगभग 20 प्रतिशत मात्रा अगली फसल के लिए आसानी से प्राप्त की जा सकती है। इसलिए इस और भी ध्यान देना होगा और मृदा उर्वरता के संवर्धन के लिए खेती में दलहनी फसलों का समावेश करना होगा और ग्लोबल वार्मिंग के कारण फसलों में होने वाली हानी को भी बचाना होगा।

क्यों हो रही है ग्लोबल वार्मिंग

                                                                       

ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण मानव की विस्फोटक जनसंख्या और उसके अनियंत्रित तथाकथित विकास की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने हेतु जलाए जाने वाले जीवाश्म ईंधन, पेट्रोलियम और कोयला इत्यादि से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड वृद्वि, गैस ग्रीनहाउस हरित गृह की गैसों जैसे मीथेन, नाट्रोजन और उसके ऑक्साइड एवं क्लोरोफ्लोरोकार्बन इत्यादि है।

उद्योगों की चिमनियों फैक्ट्री और वाहनों से निकलने वाला धुआं तथा घरों आदि में प्रयोग होने वाले विविध उपकरणों से निकलने वाली गर्म वस्तु आदि। प्रतिदिन हमारे वातावरण में पर्याप्त गर्मी छोड़ती है और यदि समय रहते इन गैसों का उत्सर्जन कम नहीं किया गया तो निकट भविष्य में हमें गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण संभावित भयंकर त्रासदी का निर्णायक बिंदु बहुत करीब आ चुका है और यदि इससे निजात पाने के उपाय को तुरंत क्रियान्वित नहीं किया गया तो हम निश्चित रूप से विनाश के गहरे समुद्र में डूब जाएंगे।

                                                           

आज का अनियंत्रित विकास ही मानव एवं पर्यावरण दोनों के लिए वर्तमान एवं भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। पिछले 100 वर्षों में पृथ्वी का तापमान 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है और 21वीं साड़ी के अंत तक इसमें विभिन्न अनुमानों के अनुसार 1.01 से 6.4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ोतरी की आशंका जताई गई है। विस्फोटक जनसंख्या एवं उपभोक्ता विधियों के द्वारा प्रायोजित आधुनिक एवं असीमित तथा अल्प परिभाषित हुआ हमारे तथाकथित विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध एवं अन्यायपूर्ण दोहन ही पर्यावरण के विनाश का मुख्य कारण है।

कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के परिणाम स्वरुप हो रहे जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए कोई एक उपाय नहीं सुनाया जा सकता है। इसके लिए विभिन्न स्तरों पर प्रयास करने की जरूरत है। जिससे निष्काशित ऑक्साइड, मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसों के उत्सर्जन में आने वाले समय में 80 प्रतिशत तक की कटौती की जा सके। पिछले वर्ष की अपर्याप्त मानसूनी बारिश से जो दिक्कतें पैदा हुई वह बीते दिनों की मौसमी बारिश और पूर्व की बौछार से और बढ़ गई है।

इसलिए हम सभी लोगों को इस बात का विशेष ध्यान रखना है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों को कम करने के लिए जो भी उपाय और तकनीकी क्रियाएं है, हम उनको ही अपानएं। जिससे कि जलवायु परिवर्तन से हो रहे विनाश को कम कर सकें और मानव सभ्यता को बचा सके।

लेखक : डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।