रोजगार के लिए अभिशाप आधुनिक तकनीक      Publish Date : 21/01/2024

रोजगार के लिए अभिशाप आधुनिक तकनीक

डॉ0 आर. एस. सेंगर, डॉ0 कृषाणु एवं मुकेश शर्मा

अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों के माध्यम से मानव जीवन को काफी आरामदायक और आसान तो बना दिया गया है, परन्तु दूसरी ओर इन तकनीकों ने बहुत सारे लोगों के हाथों से काम भी छीन लिया है। वर्तमान परिवेश में यदि दुनिया भर में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या बनकर उभर रही है, तो इसका एक बड़ा कारण आधुनिकतम तकनीक भी मानी जा रही है।

तकनीकी आविष्कारों का नकारात्मक प्रभाव रोजगार पर बहुत पड़ रहा है। अपने देश में ही देखें तो पहले जिस काम को आठ-दस मजदूर मिलकर किया करते थे, अब उसे नई तकनीक आने के कारण महज चंद मिनटों में मशीनों के द्वारा किया जाने लगा है। यह स्थिति तो तब है, जब कि भारत में इन मशीनों का निर्माण बहुत ही कम होता है, और अधिकतर हम इन मशीनों को आयात ही करते हैं। ऐसे में, क्या इन नई-नई तकनीक को रोजगार के लिए अभिशाप नहीं माना जाना चाहिए?

एआई, यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस)

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) इसका एक ज्वलंत उदाहरण है, कि यह तकनीक रोजगार पर किस तरह से भारी पड़ सकती है, इसका आकलन अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी किया है। उसके मुताबिक, यह तकनीक विश्व की लगभग 40 फीसदी नौकरियों तक को खत्म कर सकती है। कुछ समय पहले अमेरिका के मैकेंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट के द्वारा भी अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि एआई का अमेरिका में रोजगार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। उस रिर्पोट में बताया गया था कि वर्ष 2030 तक यह प्रौद्योगिकी वहां कितने ही लोगों को बेरोजगार कर सकती है।

मात्र इतना ही नहीं, इस तकनीक से पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को ज्यादा नुकसान होने की आशंका जताई गई थी। बेशक, परिवर्तन प्रकृति का नियम है, परन्तु यह जरूरी नहीं कि कोई परिवर्तन हर किसी के लिए लाभदायक हो, इसलिए लोगों से अपील है कि वह एआई के पक्ष में तर्कों का गढ़ना तुरन्त ही बंद कर दें।

एआई दरअसल ऐसी प्रौद्योगिकी है, जो कंप्यूटर प्रोग्राम से तैयार की जाती। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) का उद्देश्य इंसानी काम को सरल बनाना है। ऐसे में यह स्वाभाविक ही है कि इसकी कवायद मानव के हाथों से काम भी छीनेगी। अपने देश में यह कितना असर डालेगी, इसका फिलहाल कोई आकलन हमारे पास उपलब्ध नहीं है, लेकिन यदि हम इसकी तरफ बढ़ते हैं, तो हमारा यह कदम बेरोजगारों के जख्म पर नमक छिड़कने जैसा होगा, क्योंकि इससे छोटे- मोटे कामगारों पर ही सबसे अधिक प्रभाव पड़ेगा।

वैसे भी, अपने देश में गरीबों की संख्या कोई कम नहीं है। बड़ी मुश्किल से हम उनको गरीबी रेखा से ऊपर लेकर आ पा रहें हैं। ऐसे में, उनके हाथों से काम छीन लेने से हम अपने लिए चुनौतियां ही बढ़ाएंगे। हालांकि, कहने का अर्थ यह नहीं है कि हमें मशीनों पर भरोसा नहीं करना चाहिए। मगर इन मशीनों का उपयोग इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि ये मशीनें इंसान की सहायता ही करें, न कि उसकी मुश्किलों को बढ़ाएं।

तकनीक बनाम रोजगार

नए-नए क्षेत्रों में लोगों को काम मिलेगा

यह कोई नई बात नहीं है। जब-जब तकनीक की दुनिया बदलती है, उसके नकारात्मक प्रभावों की ही ज्यादा चर्चा अधिक की जाती है। इससे परोक्ष रूप से उस तकनीक के प्रति भय पैदा किया जाता है, ताकि उसकी तरफ लोग आकर्षित न हो सकें। मगर नियति कभी बदल सकती है क्या? आज जिस युग में हम सांस ले रहे है, उसमें प्रौद्योगिकियों से बचकर नहीं रहा जा सकता। ऐसा नहीं हो सकता कि हम शुतुरमुर्ग की तरह रेत में अपनी आंखें वा मुंह गड़ा लें और यह मान लें कि चलो, तूफान गुजर गया। एआई का मामला भी कुछ ऐसा ही है। इसे हम कतई नजरंदाज नहीं कर सकते।

कहा जा रहा है कि एआई बेरोजगारी में बढ़ोतरी होगी परन्तु यह डर केवल आज का ही नहीं है। याद कीजिए, जब भारत में कंप्यूटर युग की शुरुआत हुई थी तब भी यही कहा गया था कि इन मशीनों के आने के बाद मानव हाथ बेकार हो जाएंगे। मगर ऐसा हुआ क्या? आज भी हाथों से काम हो रहे हैं और कंप्यूटर अपनी जगह काम कर रहे हैं। अलबत्ता, कंप्यूटर के आने से हमारा काम आसान हो गया। अब हम कहीं अधिक कुशलता से काम करने लगे हैं।

आज हमारी क्षमता बढ़ गई है और कम समय में हम अधिक जिम्मेदारी का निर्वहन करने लगे हैं। आज तो कंप्यूटर के बिना मानव जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती। एआई के मामले में भी यही होगा। इससे अगर कुछ नौकरियां जाएंगी, तो रोजगार के कई नए दरवाजे भी खुलेंगे। मशीनें कभी भी इतनी ताकतवर नहीं हो सकतीं कि वे इंसानों को ही अपने अधीन कर सकें। मशीनों को चलाने के लिए इंसानी दिमाग की ही जरूरत होगी, इसलिए एआई की निगरानी जैसे कामों में रोजगार का निर्माण होगा।

आज एआई जैसी नई प्रौद्योगिकियों को नकारने से तो बेहतर यह होगा कि हम इन्हें अपना हमराह बना लें। यदि हम इनके साथ मिलकर काम करेंगे, तो हमारी क्षमताओं में कहीं अधिक निखार आएगा और हम कहीं अधिक जवाबदेह भी बन सकेंगे। कोई भी तकनीक मानव को नुकसान नहीं पहुंचाती। वैसे भी, एआई से मानव विकास की उन्नति के काम लिए जाएंगे, न कि इसकी अवनति के। इसलिए इससे डरने की जरूरत नहीं है।

नौकरियों के जाने या बेरोजगारी के बढ़ने जैसे आकलन इसीलिए पेश किए जाते हैं, ताकि ऐसी तकनीकों की राह रोकी जा सके, परन्तु ऐसा शायद ही हो पाएगा। वैसे भी, एआई का हम अब कुछ हद तक इस्तेमाल करने ही लगे हैं। यह हमारी जिंदगी का हिस्सा बन चुकी है। अब वक्त है, इसके अधिकाधिक इस्तेमाल करने का, ताकि हम कहीं अधिक बेहतर बन सकें।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।