महिलाओं में उद्यमिता विकास से सामाजिक सशक्तिकरण Publish Date : 25/11/2023
महिलाओं में उद्यमिता विकास से सामाजिक सशक्तिकरण
डॉ0 आर. एस. सेंगर एवं मुकेश शर्मा
‘‘महिलाओं को सशक्त बनाकर ही एक अच्छे एवं सशक्त राष्ट्र का निर्माण किया जा सकता है।“ -डॉ0 ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
बदलते विश्व आर्थिक परिदृश्य में पुरूष एवं महिला दोनों की आपसी सहभागिता को सुनिश्चित करने हेतु महिलाओं में उद्यमिता विकास एक अति आवश्यक शर्त बन कर उभरी है। उद्यमिता नए संगठन को आरम्भ करने की भावना को कहते हैं। किसी वर्तमान अथवा भावी अवसर का पूर्वदर्शन करके मुख्यतः कोई व्यवसायिक संगठन आरम्भ करना उद्यमिता का मुख्य पहलू है।
उद्यमिता में एक तरह से भरपूर लाभ कमाने की संभावना होती है तो दूसरी तरफ अनिश्चितता और अन्य खतरों की संभावना भी रहती है। उद्यमिता विकास के लिए आवश्यक है कि हम अपने अंदर उद्यमी के गुणों को बढ़ाएं। ग्रामीण युवा महिलाओं में कौशल का विकास कर हम जनसंख्या के बढ़ते हुए दबाव को निशिचत तौर पर कम कर सकते हैं। उद्यमी बनना एक व्यक्तिगत कौशल है जिसका संबंध न तो जाति से है, न धर्म से और नही किसी समुदाय विशेष से रहता है, बल्कि इसकी संकल्पना ही स्वहित से प्रेरित होती है।
उद्यमी मौलिक एवं सृजनात्मक चिंतक होता है। वह एक नवप्रवर्तक है जो पूंजी लगाता है और जाखिम उठाने के लिए आगे आता है। इस प्रक्रिया में वह रोजगार का सजन भी करता है, समस्याओं को सुलझाता है, गुणवत्ता में वृद्वि करता है तथा श्रेष्ठता की ओर दृष्टि रखता है। अतः हम कह सकते हैं कि उद्यमी वह है जिसके अंदर निरन्तर विश्वास तथा श्रेष्ठता के विषय में सोचने की शक्ति एवं गुण होते हैं तथा वह उनको व्यवहार में लाता है। किसी विचार, उद्देश्य, उत्पाद या सेवा को सामाजिक लाभ के लिए उपयोग में लाने से ही यह होता है।
एक उद्यमी बनने के लिए आपके पास कुछ गुण होने चाहिए, लेकिन उद्यम शब्द का अर्थ कैरियर बनाने वाला उद्देश्यपूर्ण कार्य भी है, जिसको सीखा जा सकता है। उद्यमशीलता नए विचारों को पहचानने, विकसित करने एवं उन्हें वास्तविक स्वरूप प्रदान करने की प्रक्रिया है। ध्यान रहे, देश के आर्थिक विकास के अर्थ में उद्यमशीलता केवल बड़े व्यवसायोें तक ही सीमित नही है अपितु इसमें लघु उद्यमों को सम्मिलत करना भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। वास्तव में, बहुत से विकसित तथा विकासशील देशों का आर्थिक विकास तथा समृद्वि एवं संपन्नता लघु उद्यमों के आर्विभाव का ही परिणाम है।
युवा महिलाओं को उद्यमी बनाना एक बहुत बड़ी चेतावनी है, जिसका हल आपसी समन्वय, जनजागृति, कौशल विकास, सूक्ष्म ऋण की उपलब्धता आदि में ही छिपा हुआ है। ‘‘सशक्त महिला व सशक्त समाज‘‘ दोनों ही राष्ट्र के विकास के लिए एक दूसरे के सम्पूरक हैं। युवा महिला सशक्तिकरण तात्पर्य महिलाओं में मनोसामाजिक-आर्थिक, राजनीतिक व शैक्षणिक रूप से परिवर्तन लाना। इस प्रकार हम शिक्षा एवं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर महिला को सफल एवं सशक्त मान सकते हैं तथा वैचारिक बदलाव से ही हमारे समाज में महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता आ सकती है।
थ्कसी भी राष्ट्र राज्य व क्षेत्र का विकास उसकी उपलब्ध मानव संसाधन की कार्यक्षमता, सामर्थ्य, गुणवत्ता, कौशल एवं शिक्षा आदि प्रमुख बिन्दुओं पर निर्भर करता है। आज के नारी एवं पुरूष दोनों ही राष्ट्र निर्माण एवं विकास में समान सहभागिता निभाते हैं, अर्थात जन-सहभागिता से ही समुदाय विकास की वास्तविक रूपरेखा तैयार करना संभव है। वर्तमान परिस्थितियों में महिलाओं का राष्ट्रीय विकास में अमूल्य यांेगदान है। आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक सभी स्तरों पर देश की प्रगति में भारतीय महिलएं निर्विवाद रूप से अपना बहुमूल्य सहयोग प्रदान कर रही हैं। किंतु प्रमुख राष्ट्रीय विकास की गतिविधियों में महिलाओं की भूमिका को समुचित रूप से मान्या धीरे-धीरे मिल पा रही है।
महिलाओं के आर्थिक विकास से ही सामाजिक संरचना में सकारात्मक दिशा में परिवर्तन होना संभव है। हमारे देश की महिलाए पुरूषों के समान ही आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक क्षेत्रों में अपनी भूमिका निभा रही है। यदि हम आर्थिक गतिविधियों के आधार पर भारत की व्यवसायिक संरचना को दृष्टिगत रखें तो हमें ज्ञात होता है कि सर्वाधिक महिलाएं कृषि, निर्माण कार्य, संठित तथा असंगठित आदि क्षेत्रों में कार्यरत हैं जबकि सेवा क्षेत्र में अपेक्षाकृत सबसे कम महिलाएं कार्यरत हैं।
स्वयंसहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं को जोड़कर संगठित कर आजीविका, जागरूकता आदि कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में स्वैच्छिक संगठन अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। महिलाओं को साक्षर बनाने की दिशा में ठोस प्रयासों का किया जाना अत्यंत अनिवार्य है। सक्षम महिलाओं के द्वारा इस कार्य में पर्याप्त सहायता प्रदान की जानी चाहिए और महिलाओं के लिए स्वरोजगार योजनाओं, स्वयंसहायता समहों, आय वृद्वि कार्यक्रम और उद्यमशीलता प्रशिक्षण आदि को महत्व प्रदान किया जाना चाहिए।
लघु उद्योग किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के अर्थिक विकास में सर्वाधिेक महत्वपूर्ण एवं सक्रिय भूमिका निभाते हैं। विशेष रूप से उन अर्थव्यवस्थाओं में जो परंपरागत जीविका से आधुनिक औद्योगिक अर्थव्यवस्था की दिशा में परिवर्तित हो रही हैं। लघु तथा सूक्ष्म उद्योग क्षेत्र की एक दीर्घावधि ऐतिहासिक परंपरा है और स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत देश का सम्पूर्ण आर्थिक विकास हो पाना संभव हो पाता है।
महिलाओं की रोजगार पद्वति, भौगोलिक विस्ता एवं सकल औद्योगिक उत्पादन में सहयोग प्रदान करने से, लघु उद्यम क्षेत्र गरीबी दूर करने तथा लाभप्रद रोजगार के उच्चतर स्तरों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। गत कई दशकों से स्वैच्छिक संगठनों ने लघु उद्यमों के जरिए निम्न वर्ग की आय बढ़ानें में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
वित्तीय समावेशन का नया मंत्र त्रेः के आयाम और महिला उद्यमी का प्रयासः- जन-धन योजना, आधार नंबर और मोबाईल बैंकिंग, इन तीनों के सम्मिश्रण से लागू वित्तीय समावेशन को जेएएम, यानी जैम त्रे का नाम दिया गया है। यानी जन-धन योजना के माध्यम से शून्य बैलेन्स पर बैंक खाते खोलना, उनको आधार नंबर और मोबाईल से जोड़कर बीमा, खाद्य सब्सिडी, एलपीजी सब्सिडी, खाद सब्सिडी इत्यादि की सुविधाएं आसानी और कम लागत पर उपलब् ध कराने का कार्य किया जा रहा है। यानी कहा जा सकता है कि देश के वित्ती की मुख्यधारा से कटे गरीबों को जाड़ने की कोशिश जैम त्रे मंत्र के माध्यम से की जा रही है, जो एक सराहनीय महल कही जा सकती है।
ग्रामीण युवा महिलाओं में उद्यमिता विकास से सामाजिक सशक्तीकरणः- किसी भी राष्ट्र का निर्माण अथवा विकास बिना महिलाओं के सहयोग के अकल्पनीय है। जबकि सामाजिक सशक्तीकरण महिलाओं के आर्थिक विकास के बिना संभव ही नही है। देश की कुल आबादी का लगभग आधा भग महिलाओं का है, लघु उद्यम और लघु व्यवसाय विकास कार्यक्रममहिलाओं के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
महिलाओं के लिए लघु-उद्यम का क्षेत्रः- लघु-उद्यम विकास गरीबी-रेखा से नीचे रहने वाली महिलाओं को लाभकारी रोजगार प्रदान करने का एक अवसर है और इस प्रकार वे अपनी आय और जीवन-स्तर में सुधार कर सकती हैं। लघु-उद्यम विकास एक उभरती हुई प्रक्रिया है, जो कम पूंजी, कम जोखिम और शुरूआत में कम लाभ के साथ आरंभ होती है। तकनीकी प्रशिक्षण या कुशलता विकास से महिलाएं अपने उद्यम एवं आय को बहुत बढ़ा सकती है। इसके लिए उन्हें ऋण और प्रशिक्षण की आसान उपलब्धता भी होना आवश्यक है।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशनः- एनआरएनएम के तहत सभी महिला स्वयंसहायता समूह तीन लाख रूपये तक का ऋण मात्र 7 प्रतिशत की ब्याज दर पर प्राप्त कर सकेंगे। साथ ही, समय पर ऋण चुकाने वाले इन समूहों को ब्याज दर में 3 प्रतिशत की अतिरिक्त छूट भी प्राप्त होगी। इस प्रकार महिला स्वयंसमह को मात्र 4 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर पर ऋण उपलब्ध हो सकेगा। पहले यह सुविधा केवल 150 जिलों में ही उपलब्ध थी, अब 100 और जिलों में इसका विस्तार किया जा रहा है।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन आगामी पांच वर्षों में देश भर के निर्धन परिवारों में कम से कम एक महिला को स्व-रोजगार समूह से सकारात्मक रूप से जोड़ने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस मिशन का उद्देश्य गरीबों को समर्थ बनाकर उनके जीवन को प्रभावित करना अर्थात उनके जीवन-स्तर में गुणात्मक सुधार लाना और इसके लिए ऋण सुविधा हेतु राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) को नई भूमिका प्रदान की गई है।
राष्ट्रीय महिला कोष का योगदानः- राष्ट्रीय महिला कोष की स्थापना भारत सरकार ने मार्च 1993 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अंतर्गत अर्ध सूक्ष्म ऋण संगठन के रूप में की थी। यह कोष एक राष्ट्रीय स्तर का सूक्ष्म ऋण संस्थान है जो देश की गरीब महिलाओं को अपनी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार हंतु आय सृजन गतिविधियों को बढ़ावा देता है और गैर-सरकारी संगठनों तथा अन्य एजेंसियों के मार्फत अर्ध-औपचारिक तरीके से गैर-सब्सिडी युक्त ऋण सुविधाएं उपलब् ध करा कर कार्य कर रहा है। वर्तमान में इसकी मूल राशि को बढ़ाकर 100 करोड़ रूपये तक कर दिया गया है।
राष्ट्रीय महिला कोष मॉडल ग्रामीण व शहरी महिलाओं को समूह में संगठित करने और उनके सामाजिक-आर्थिक विकास व सशक्तिकरण का एक शक्तिशाली माध्यम सिद्व हुआ है। राष्ट्रीय महिला कोष के पास स्वैच्छिक संगठनों में व्यापक जागरूकता लाने व उनकी क्षमता बढ़ानें के लिए नए और सक्षम गैर-सरकारी संगठनों (एन.जी.ओ.) सहित क्रेडिट नोडल एजेंसियां हैं। नोडल एजेंसी योजना के अतिरिक्त राष्ट्रीय महिला कोष फ्रेंचाइजी भी नियुक्त करता है।
राष्ट्रीय महिला कोष इन्हें धन प्रदान करता है, जो राष्ट्रीय महिला कोष द्वारा निर्धारित शर्तों पर इस धन को राज्यों, जिलों के छोटे एवं सूक्ष्म गैर-सरकारी संगठनों को देता है। राष्ट्रीय महिला कोष का सूक्ष्म वित कार्यक्रम अत्याधिक सफल रहा है, जिसमें वसूली दर भी 90 प्रतिशत से अधिक दर्ज की गई है।
आर्थिक सशक्तिकरण में स्वयं-सहायता समूहः- स्वयं-सहायता समूह के माध्यम से महिलाओं के सशक्तिकरण को एक महत्वपूर्ण इकाई के रूप में अपनाया गया है। अधिकांशतः स्वयं सहायता समूह बचत और ऋणगतिविधियों से ही आरम्भ किए जाते हैं। महिलाओं को स्व-विकास, दूसरों से मेल-जोल, स्वामित्व की भावना, आत्म-अथव्यक्ति, स्वयं और दूसरों की समस्याएं सही परिप्रेक्ष्य में देखने और उनका विश्लेषण करने एवं निर्णय लेने आदि का अवसर उपलब्ध कराते हैं, अतः यह सभी तथ्य सशक्तिकरण के लिए महत्वपूर्ण घटक माने जाते हैं। उल्लेखनीय रूप से अब महत्वपूर्ण विकास कार्यक्रमेां में स्वयंसहायता समूहों का गठन और विकास घटक का आधार स्तंभ है।
महिलाएं देश में स्वयंसहायता समूहों के द्वारा समाजिक एवं आर्थिक बदलाव ला रही हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में महिलाओं ने अपनी मेहनत एवं लग्न के बल पर यह सिद्व कर दिया है कि स्वयंसहायता समूहों के साथ जुड़कर एक नया मुकाम हासिल किया जा सकता है। साथ ही महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में स्वयंसहायता समूह अपना सक्रिय सहायोग प्रदान कर रहे हैं। वर्तमान समय में देखा गया है कि महिलाएं अपने घर-गृहस्थी के कार्यों के निष्पादन के उपरांत स्वयं-सहायता में भी कार्य कर रही हैं। समूहों में कार्य करने वाली महिलाओं को सरकार एवं स्वैच्छिक संगठनों के माध्यम से भी भरपूर सहयोग प्राप्त हो रहा है।
स्व-रोजगार हेतु स्वयं-सहायता समूहों का गठनः- स्थानीय-स्तर पर समाज के जागरूक व्यक्ति स्वैच्छिक संगठनों, राजकीय अभिकरणों आदि के द्वारा लोगों से आनौपचारिक सर्म्पक कर परिचर्चा करते है जिससे व्यवसाय, ऋणग्रस्तता, सामाजिक कुरीतियों, सरकारी योजनाओं, सार्वजनिक सुविधाओं, बच्चों के स्वास्थ्य तथा शिक्षा आदि विषयों पर स्थानीय मलिाओं को भी इनके प्रति जागरूक किया जा सकता है। जब कुछ व्यक्तियों में यह जागृति दृष्टिगोचर होगी तो उनकी औपचारिक बैठकें आयोजित कर समूह बनाए जा सकेंगे। समूह में लगभग समान विार एवं आर्थिक स्थिति वाले 10-25 सदस्यों का होना अनिवार्य है।
जब एक समूह तैयार हो जाए तो उसे अधिक सक्रिय बनाने के लिए चुनाव का प्रबन्ध भी किया जाना चाहिए। इसमें किसी शिक्षित व्यक्ति का चयनित होना सर्वथा उपयुक्त होगा, जिसके माध्यम से सभी दस्तावेज सुनियोजित व सुव्यवस्थित तरीके से रखे जा सके और सही समय पर सदस्यों को पर्याप्त जाकारी प्रदान की जा सके।
समूह-प्रबन्धः- समूह के सदस्यों से उनकी सुविधा के अनुसार अल्प-बचत की एक निश्चित राशि तय कर एकत्रित की जानी चाहिए। यह एकत्रित राशि समूह के विश्वासपात्र और शिक्षित व्यक्ति अथवा समूह के कोषाध्यक्ष के पास जमा की जानी चाहिए। समूह का नाम, प्रतिमाह प्रत्येक सदस्य के हिस्से में आने वाली राशि जमा करने की तारीख तथा समय पर राशि के जमा न करने पर उस विलम्ब शुल्क, लोन, ब्याज, मासिे किश्त आदि तमाम बातों को समूह के सदस्यों की सहमति से निश्चित कर लिया जाना चाहिए।
समूह को सुदृढ़ बनाने के लिए अधिक से अधिक बातों पर विचार समय-समय पर करते रहना भी आवश्यक है। समूह के रास्ते में आने वाली सभी विघ्न-बाधाओं को समय रहते दूर करने के लिए समयबद्व योजना बनाना और उनपर क्रियान्वयन भी किया जाना आवश्यक है तथा समूह की आगामी संदर्भित योजनाओं से भी सभी सदस्यों को अवगत कराते रहना चाहिए।
प्रबंधकीय समिति का कार्यकाल, प्रत्येक पदाधिकारी के अधिकार एवं कर्त्तव्यों का निर्धारण करना, आकस्मिक घटना हेतु राशि रिर्जव रखना, मतभिन्नता वाले सदस्यों को हटाना, किसी सदस्य की मृत्यु हो जाने पर उसके स्थान पर नए सदस्य को नामित करना, ऐसे अनेक मुद्दों पर विचार करके समूह के तमाम नियम लिखित रूप में तैयार कर लेने चाहिए, जिससे कि बाद में किसी भी प्रकार का विवाद होने की संभावना न हो अर्थात समूह के सभी नियम सुस्पष्ट लिखित रूप में होने चाहिए।
समूह का अध्यक्ष समूह की बैठकों की अध्यक्षता करेगा, आकस्मिक बैठक बुलाएगा, सदस्यों को प्रोत्साहित कर सभी का सहयोग प्राप्त करेगा और उन्हें सभी आवश्यक जानकारी देगा। इसी प्रकार समूह का सचिव समूह की बैठक बुलाकर उसमें लिए गए सभी निर्णयों को लिपिबद्व करेगा, समूह के लिए आवश्यक रिकार्ड तैयार कर उन्हें सुरक्षित रखेगा। कोषाध्यक्ष का कार्य समूह के लिए धनराशि एकत्र करना, उसे रिकार्ड में लिखना, रसीद काटना, ऋण आदि का प्रबन्ध करना और समूह के हिसाब का प्रमाणीकरण करना एवं उसे सभी सदस्यों के समक्ष रखना और शेष राशि के द्वारा समूह के सदस्यों को आपात परिस्थितियों में सहयोग प्रदान करना कोषाध्यक्ष के कार्यों व अधिकारों में आता है।
समूह का बैंक के द्वारा लेन-देनः- समूह के सदस्यों में शुरूआती कुछ समय तक नियमित रूप से लेन-देन चलता रहना चाहिए जिसका लेखा-जोखा (हिसाब-किताब) रखा जाए तथा समूह के निर्णयानुसार बैंक में खाता खुलवाया जाना चाहिए। यह बचत समूह अध्यक्ष, सचिव एवं कोषाध्यक्ष के संयुक्त हस्ताक्षर से खोला जाना चाहिए। इस खाते में से किन्हीं दो के हस्ताक्षरों से ही पैसा निकाला जा सकेगा। समूह के कामकाज के आधार पर गरीबी की रेखा सें नीचे के (बीपीएल) परिवारों की महिलाओं का बैंक पच्चीस हजार रूपये आवर्ती निधि (रिवाल्विंग फंड) उपलब्ध कराता है। इस राशि का उपयोग भी समूह के सदस्य ऋण लेकर आपसी विश्वास को दृढ़ अना सकें और ऋण की वापसी नियमित हो सके। इसमें जरूरतमंद समूह के सदस्यों को ऋण प्रदान करने की सुविधा भी रहेगी।
महिलाओं का उद्यमिता की ओर रूझान तथा राष्ट्रीय आय में उनका योगदान दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है। आधुनिक प्रौद्योगिकी के उपयोग, निवेश, निर्यात बाजार में अपनी उपस्थिति दर्ज करने एवं बड़ी मात्रा में रोजगार सृजित करने में महिला उद्यमियों की भूमिका में भी लगातार वृद्वि दर्ज की जा रही है। केंद्र सरकार, राज्य सरकारें, बैंकिंग संगठन एवं विभिन्न गैर-सरकारी संगठन महिलाओं के उद्यमिता विकास हेतु प्रयासरत हैं।
ग्रामीण महिलाओं में विकास हेतु निम्नलिखित व्यवसाय एवं उद्योगों को बढ़ाने की पहल की गई है-
1. समारोह प्रबन्धन
2. जैव-प्रौद्योगिकी
3. पर्यटन उद्योग
4. वर्मी-कल्चर
5. पुष्प-उत्पादन
6. रेश्म कीट पालन एवं मुर्गी-पालन
7. मिनरल वॉटर
8. दुग्ध-निर्मित उत्पाद
9. पर्यावरण सहेली प्रौद्योगिकी
10. दूरसंचार व कम्प्यूटर शिक्षा
11. बुनाई उद्वोग, कालीन, चटाई आदि का निर्माण
12. हस्त-निर्मित घरेलू वस्तुएं
13. पेंटिंग्स, ब्यूटीपार्लर, सिलाई तथा बुनाई केन्द्र आदि
14. मसाला बनाना, मोमबत्ती, अगरबत्ती, अचार, पपड़, चटनी, जैम तथा जैल आदि।
उक्त उद्योगों में महिलाओं को सूक्ष्म ऋण उपलब्ध कराने की व्यवस्था भी की गई है।
राष्ट्र की आधी आबादी अर्थात महिलाएं अब स्वलंबन की ओर अग्रसर हैं। वे अब प्रत्येक क्षेत्र में अपनी प्रतिभा एवं क्षमता के बल पर पुरूषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं। पिछले कुछ वर्षों के आंकड़े प्रदर्शित करते हैं कि महिलाएं समाज में अपनी अहमियत को दर्शाकर एक नई पहचान बना रही हैं। राजनीति, खेल, शिक्षा, उद्यम और सेवा क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी लगातार बढ़ती जा रही है।
यह सब उनकी इच्छाशक्ति और लग्नशीलता का ही परिणाम है कि आज शहरी महिलाओं के साथ-साथ ग्रामीण महिलाएं भी अपने पैरों पर खड़ी होकर अपनी जिम्मेदारियों का सफलतापूर्वक निर्वहन कर रही हैं। घर के चूल्हे-चौके से लेकर देश, प्रदेश, समाज के सतत् विकास में अपना हाथ बॅंटा रहीं हैं। सामाजिक-स्तर पर भी महिलाओं के लिए किए जा रहे प्रयासों के द्वारा भी सकारात्मक परिवर्तन आ रहें हैं। मसशक्तिकरण के लिए सरकारी एवं गैर-सरकारी समितियां व स्वयंसेवी संसथाएं प्रयासरत हैं। महिलाओं का सर्वांगीण सशक्तिकरण बेहतर तथा अधिक न्यायोचित समाज का एक अनिवार्य अंग है।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।