डीपफेक टेक्नोलॉजी क्या होती है और इससे बचने के लिए किन एआई टूल्स का उपयोग किया जा सकता हैं      Publish Date : 18/11/2023

                                   डीपफेक टेक्नोलॉजी 

                                                                

इससे बचने के लिए किन एआई टूल्स का उपयोग किया जा सकता हैं।

यह टेक्नोलॉजी, ऐसी एल्गोरिदम और पैटर्न को लर्न करती है जिनका उपयोग मौजूदा इमेज या वीडियो आदि में थोड़ा-बहुत हेरफेर करके उसके और ज्यादा रियल बनाने का प्रयास किया जाता है। इस तकनीक के माध्यम से बनी वीडियो और इमेज पर लोग आसानी से भरोसा भी कर लेते हैं। इस टेक्नोलॉजी के अन्तर्गत का इस्तेमाल किया जाता है जिससे फेक वीडियो और इमेज आसानी से बनाये जा सकते हैं।

वर्तमान में बहुत से ऐसे एआई टूल्स उपलब्ध हैं जो एआई जनरेटेड कंटेंट को आसानी से पकड़ सकते हैं।

                                                                       

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (IA) जैसी खतरनाक टेक्नोलॉजी बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है। तो डीपफेक भी दुनिया भर में काफी तेजी से फैल रहा है। ओबामा से लेकर पुतिन और मनोज से लेकर रश्मि तक, आज हम जो देख रहे हैं वह तो उस नुकसान की एक झलक मात्र है, जो एक अनियंत्रित टेक्नोलॉजी कर सकती है। तो आइए जानते हैं ये टेक्नोलॉजी कैसे काम करती है और इसकी शुरुवात कैसे हुई थी।

क्या है डीपफेक टेक्नोलॉजी

                                                                   

डीप फेक टेक्नोलॉजी की सहायता से किसी दूसरे की फोटो या वीडियो पर किसी सेलिब्रिटी वीडियो के फ़ेस के साथ फेस स्वैप कर दिया जाता है और आश्चर्य तो इस बात का है कि देखने में बिलकुल असली वीडियो या इमेज की तरह दिखती है।

यह टेक्नोलॉजी ऐसी एल्गोरिदम और पैटर्न को लर्न करती है, जिसका प्रयोग मौजूदा इमेज या वीडियो में हेरफेर करके उसके और ज्यादा रियल बनाने के लिए किया जाता है और इसके माध्यम से बनी वीडियो और इमेज पर लोग आसानी से भरोसा भी कर लेते हैं। यह टेक्नोलॉजी है जिससे फेक वीडियो और इमेज बनाये जाते हैं।

कैसे हुई शुरूआत डीपफेक टेक्नोलॉजी की

                                                                   

‘डीपफेक’ शब्द पहली बार वर्ष 2017 के अंत में एक Reddit के यूजर के द्वारा बनाया गया था, जिसने अश्लील वीडियो पर मशहूर हस्तियों के चेहरे को सुपर इम्पोज करने के लिए डीप लर्निंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया था। जबकि इस घटना ने लोगों का महत्वपूर्ण ध्यान आकर्षित किया; 2018 तक, ओपन-सोर्स लाइब्रेरी और ऑनलाइन शेयर किए गए ट्यूटोरियल की बदौलत टेक्नोलॉजी इस्तेमाल करने में काफी आसानी हो गई थी। बाद के 2020 के दशक में, डीपफेक अधिक परिष्कृत हो गई और उनका पता लगाना भी काफी कठिन हो गया।

ऐसे कर सकते हैं डीपफेक की पहचान

ऐसे में अगर आपको लगता है कि कोई वीडियो या इमेज डीपफेक से बनी हुई है तो आप उसमें किए गए बदलावों पर नजर डाल सकते हैं। कई बार ऐसी वीडियो में आपको हाथ-पैर कि मूवमेंट पर अधिक ध्यान देना चाहिए। कुछ प्लेटफॉर्म एआई जनरेटेड कंटेंट के लिए वॉटरमार्क या अस्वीकरण आदि भी जोड़ते हैं कि कंटेंट एआई से जनरेट किया गया है। हमेशा ऐसे निशान या डिसक्लेमर को ध्यान से चेक करें।

इन AI टूल का कर सकते हैं इस्तेमाल

वर्तमान में बहुत से ऐसे एआई टूल्स उपलब्क्ध हैं जो एआई जनरेटेड कंटेंट को आसानी के साथ पकड़ सकते हैं। इसमें । कई एआई टूल भी काम में आ सकते हैं, जो एआई-जनरेटेड कंटेंट का पता लगा सकने में सक्षम हैं। Deepwarm Oseepwarm भी एक ऐसा टूल ही है जिसकी मदद से आप किसी इमेज या वीडियो में डीपफेक पता करने के लिए उपयोग कर सकते हैं। इसके अलावा भी ढेरों टूल ऑनलाइन उपलब्ध हैं।

डीपफेक कम करने के लिए टेक कंपनियाँ कर रहीं काम

                                                                 

डीपफेक का पता लगाने और उसका प्रतिकार करने के प्रयास चल रहे हैं, जिन्होंने गलत सूचना फैलाने, फर्जी समाचार बनाने और दर्शकों को धोखा देने के लिए इमेज और वीडियो कंटेंट में हेरफेर करने की अपनी क्षमता के कारण महत्वपूर्ण ध्यान और चिंता प्राप्त की है।

पॉलिसी मेकर्स, री-सर्चर और बड़ी टेक कंपनियां इस टेक्नोलॉजी के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इसके संभावित दुरुपयोग को दूर करने के तरीके खोजने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही हैं।