14 सितंबर हिंदी दिवस पर विशेष Publish Date : 14/09/2023
14 सितंबर हिंदी दिवस पर विशेष
हिंदी भाषा की ओर बढ़ रहा है छात्रों का रुझान
हिंदी भाषा को आगे बढ़ाने के लिए सरकार भी कर रही है काफी प्रयास
विगत कुछ वर्षों से देखा गया है कि हिंदी भाषा के प्रति विज्ञान और अन्य क्षेत्रों में छात्राओं का रुझान भी लगातार बढ़ रहा है। प्रतियोगी परीक्षाओं में तैयारी के चलते यह छात्र-छात्राएं हिंदी भाषा को अधिक महत्व दे रहे हैं, जिससे उनका हिंदी में प्रस्तुतीकरण भी बेहतर होता जा रहा है।
20वीं शताब्दी के छठवें दशक के बाद से ही हिंदी भाषा की दुनिया द्वन्दात्मकता शब्दावली से बनी हुई थी जो कि अब बदल चुकी है। व्याख्या की घोषित शब्दावली और शर्तें भी बदल गई हैं और इसकी नई शब्दावली अब चंद्रयान, विश्व-शक्ति और आदित्य अभियान की है। यह शब्दावली हिंदी को ज्ञान विज्ञान के सन्दर्भ में और समर्थ और सशक्त भाषा बन रही है।
यह हिंदी का नया जगत है, हिंदी का इस नए जगत के साथ समर्थता का संवाद है। यह हिंदी का नया उत्साह भाव है कि हिंदी की नई दुनिया विलाप कि नहीं विकास की हो चली है। हिंदी अब आक्रोश कि नहीं आशा की भाषा बन रही है। नई हिंदी डब की ही नहीं बल्कि ज्ञान की भाषा बन चली है। नई हिंदी, नया समाज इस चेतना को वहां कर रहा है और हिंदी लोगों के बीच लगातार पॉपुलर हो भी रही है।
1000 से अधिक पोस्ट प्रतिदिन हिंदी भाषा में साझा किया जा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र से संबंधित हिंदी समाचार विभिन्न इंटरनेट मीडिया प्लेटफॉर्म पर खूब दिखाई जा रही है।
50,000 से अधिक फॉलोअर्स संयुक्त राष्ट्र हिंदी समाचार के एक्सेस प्लेटफार्म पर जुड़ चुके हैं जबकि 29,000 से अधिक लोग संयुक्त राष्ट्र से संबंधित हिंदी समाचार को फॉलो करते हैं। इंस्टाग्राम और फेसबुक पर ऐसे लोगों की संख्या 15,000 से अधिक है। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की जरूरत पर जिन लोगों ने अधिक बल दिया वह सभी अहिंदी भाषी थे इन लोगों में महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस और चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य आदि लोगों की मातृभाषा हिंदी नहीं थी, किंतु सभी ने हिंदी को महत्वपूर्ण माना और इसके समर्थन में कार्य किया।
हिंदी वर्तमान समय में मखमली इच्छा और भावना को अभिव्यक्त करने वाली भाषा बन गई है, यह हिंदी की नई दुनिया है अब यह केवल सरकारी बाबूओं, गरीबों और सरकारी स्कूलों के झोलाछाप विद्यार्थियों को ही भाषा नहीं रह गई है। अब इसमें तमाम रंग और स्वर आए हैं, जो आकर्षण है और भविष्य उन्मुख है इन तमाम रंगों और स्वरों के साथ संवाद करना। हिंदी की ताकत के साथ संवाद करना भी है लोहिया और दीनदयाल उपाध्याय दोनों के भाव बोध को जी हिंदी में अभिव्यक्त किया जाएगा वही हिंदी इस देश के साथ संवाद की भाषा होगी।
यह हिंदी का सौभाग्य है कि यह अब गली मोहल्ले की भाषा बन चुकी है और यह भी हिंदी का ही सौभाग्य है कि वह नगरीय एवं बाजार की भाषा है। इसलिए कहा जा सकता है कि यदि हिंदी बची रहे तो इस देश के स्वप्न भी बचे रहेंगे और हमारी सांस्कृतिक धरोहर भी बची रहेगी। इसमें गरीब आदमी के लिए सपना बचा रहेगा तो गरीबों को मान्य होने के लिए जगह बची भी रहेगी।
हिंदी गई तो एक सवाल और समर्थ समाज का सपना भी गया और यदि यह सपना बचाना है तो हमें हिन्दी को आगे बढ़ता ही होगा। इसी सपने से चंद्रयान, विश्व शक्ति और आदित्य बनते हैं, इस सपने को हद और जद में भारत के सबल होने का सपना भी समाहित होता है।
80 से अधिक देशों के विद्यार्थी हिंदी की लोकप्रियता से आकर्षित होकर अब तक केंद्रीय हिंदी संस्थान से हिंदी की पढ़ाई कर चुके हैं। हर वर्ष 35 से 36 देश के सैकड़ो विद्यार्थी केंद्रीय हिंदी संस्थान के दिल्ली और आगरा केंद्र में आकर सीखते हैं।
इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि अब विदेशों में भी हिंदी बहुत तेजी से अपने पांव फैला रही है। 100 से अधिक देशों में इस समय हिंदी का प्रयोग किया जा रहा है और 60 प्रतिशत की दर से वर्ष 2017 से 2022 के बीच हिंदी समाहित दूसरी भाषाओं के कंटेंट का मार्केट देश में बढ़ा है। इंटरनेट और मोबाइल यूजर की कुल संख्या में छोटे शहरों के उपयोगिताओं की संख्या बढ़ने से आने वाले समय में हिंदी की सामग्री का प्रयोग और ज्यादा बढ़ाने की उम्मीद की जा सकती है।
एक शिक्षक होने के नाते मैंने देखा है कि अपने छात्रों के सामने विषय से संबंधित बुनियादी धारणाओं को मजबूती दिलाने के लिए यदि उनको हिंदी में पढ़ाया जाता है तो वह ज्यादा जल्दी समझते हैं और उसमें स्पष्ट रहते है और जिसके कारण वह छात्र विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता आसानी से प्राप्त कर लेते हैं, क्योंकि जब उनको बुनियादी बाते समझ में आ जाती हैं और उनके ऊपर किसी भाषा विशेष का दबाव नहीं रहता है तो निश्चित रूप से वह उसमें अच्छी तरह से समझकर ज्यादा सफल हो सकते हैं।
इसके अलावा हमारे देश में अधिकांश था छोटे शहरों के युवा की शिक्षक पेशे में अपनी किस्मत को आजमाते हैं। इनकी प्राथमिक भाषा हिंदी ही होती है इसलिए हिंदी में तैयारी करने से सफलता की दर छात्रों में अधिक देखी गई है। आज देश में ही नहीं बल्कि विदेश में कई ऐसे लोग हैं जो हिंदी में लिख पढ़ और बोलकर अपनी एक अलग पहचान बना रहे हैं।
लेखक : प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।