कृषि एवं किसान कल्याणः खुशहाली की ओर बढ़ते कदम Publish Date : 13/09/2023
कृषि एवं किसान कल्याणः खुशहाली की ओर बढ़ते कदम
डॉ0 आर. एस. सेंगर
“वर्तमान सरकार ने कृषि एवं किसान कल्याण एवं ग्रामीण इंफ्रास्ट्रकचर का कायाकल्प करने की दिशा में जो कदम उठाएं हैं, वे अब एक आम ग्रामीण की जिन्दगी में भी नजर आने लगे हैं। हाल ही में आई राष्ट्रीय एवं ग्रामीण बैंक की एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व की अपेक्षा देश के छोटे और सीमांत किसानों की आय में उत्साह-जनक वृद्वि दर्ज की गई है।“
वर्तमान सरकार की कृषि नीति की पूरी दिशा ही बदल दी है। सरकार ने कृषि के सर्वांगीण विकास को अपने आर्थिक विकास की रणनीति के केंद्र में रखा और यह पूरी रणनीति किसानों के विकास की धुरी बनाने हेतु तैयार की गई। सरकार ने कृषि क्षेत्र के आधारभूत ढ़ांचे का कायाकल्प करके वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दुगुना करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस रणनीति के पूर्ण परिणाम तो आगामी कुछ वर्षों में सामने आएंगे।
वर्ष 2004 में एनडीए सरकार ने देश में पहली बार राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया और बाद कृषि मंत्री बने श्री शरद पवांर ने एम.एस स्वामीनाथन को इस आयोग का अध्ययक्ष नियुक्त किया। इस आयोग ने एक रिपोर्ट तैयार की, जिसमें किसानों के संकट और उनके द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं के बढ़ने के कारणों पर विशेषरूप से केंद्रित करते हुए उनके लिए राष्ट्रीय नीति बनाने की सिफारिश की।
किसानों के संससाधन और सामाजिक सुरक्षा बढ़ानें पर विशेष बल दिया गया। आयोग ने भूमि सुधार, सिंचाई, कृषि ऋण, फसल एवं किसान बीमा, खाद्य सुरक्षा, रोजगार, कृषि उत्पादकता और सहकारिता पर नीतिगत सिफारिशें की गई हैं।
आयोग ने जोर दिया कि किसानों की उत्पादकता और उनका लाभ बढ़कर इसमें निरंतरता बनी रहे, अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में उत्पाद की कीमते गिरने पर उसके आयात से किसानों को बचाना आवश्यक है। आयोग ने धान और गेंहूँ के अतिरिक्त अन्य फसलों जैसे जौ, बाजरा, ज्वार समेत अन्य मोटे अनाज की एमएसपी बढ़ाने, खरीद करने एवं सार्वजनिक वितरण प्रणाली में शामिल करने का भी सुझाव दिया।
आयोग की सिफारिशों के अनुसार, औसत उत्पादन लागत में न्यूनतम 50 फीसदी मुनाफा जोड़कर एम.एस.पी तय की जाए। किसानों की आय की तुलना सरकारी नौकरीपेशा लोगों की आय के अनुसार की जाए।
आयोग ने कहा कि फसल ऋणों पर ब्याज की दर कम की जाए और प्राकृतिक आपदा के आने पर ब्याज पूरी तरह से माफ किया जाए। निरंतर प्राकृतिक आपादाओं से निपटने के लिए एग्रीकल्चर रिस्क फंड स्थपित किया जाए।
महिलाओं को संयुक्त भूमि पट्ठे एवं क्रेडिट दिए जाएं। कम प्रीमियम पसल एवं पशुधन बीमा सुविधा एवं किसानों को इंटीग्रेटिड हेल्थ इंश्योरेंस पैकेज आदि दिए जाएं, साथ ही, आयोग ने बुजुर्ग किसानों की सामाजिक सुरक्षा और हेल्थ इंश्योरेंस के दायरे में लाने की सिफारिश भी की है।
आयोग ने कहा कि प्रतिकूल मौसम किसानों की परेशानी को बढ़ा देता है। आयोग ने नेशनल लैंड यूज एडवाइजरी सर्विस का गठन करने, कृषि भूमि की बिक्री का मैकेनिज्म निर्धारित करने, उत्पादकता बढ़ानें, सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण, भूमि विकास, जल-संरक्षण, शोध एवं अनुसंधान और सड़कों को बढ़ाने की सिफारिश भी की है।
आयोग ने यह भी कहा कि कृषि को समवर्ती सूची में शामिल किया जाए। गौरतलब है कि कृषि अभी तक राज्यों का विषय है, समवर्ती सूची में शामिल हो जाने के बाद कृषि में केंद्र एवं राज्य दोनों ही दखल दे सकेंगे।
डॉ0 स्वामीनाथन आयोग ने अपनी पांचवी और अंतिम रिपोर्ट 04 अक्तूबर, 2006 को प्रस्तुत की थी। वर्ष 2014 में केंद्र में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी के नेतृत्व में गठित सरकार ने इस पर कार्यवाही शुरू की और बीते पांच वर्षों के दौरान किसानों की स्थिति और आमदनी में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए।
वर्तमान सरकार ने अन्नदाता को सबल, सक्षम और स्वालंबी बनाने के लिए बीज से बाजार तक, प्रत्येक स्तर पर सहायता प्रदान करने के लिए अभूतपूर्व कार्य किए। सरकार ने अपनी आर्थिक नीतियों के केंद्र में ‘किसान कल्याण’ को स्थापित किया।
जन-जन तक पोषक भोजन उपलब्ध कराने एवं किसानों की आय को दुगुना करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके लिए एक सात सूत्रीय कार्य योजना भी तैयार की गई, जिससे किसानों की आय को दुगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके। इस सात सूत्रीय योजना के अंतर्गत इसका प्रथम सूत्र है, प्रति बूँद पानी से अधिक उपज। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बड़े पैमाने पर सिंचाई में निवेश को बढ़ावा दिया गया है और बजट में भी इसके लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं।
दूसरे सूत्र, प्रत्येक खेत के लिए सॉयल हेल्थ कार्ड द्वारा पोषक तत्वों का प्रबंधन एवं गुणवत्तायुक्त बीजों की उपलब्धता सुनिशिचत् करना है। तीसरा सूत्र, कटाई के उपरांत फसलीय हानि को कम करने के उद्देश्य से गोदामों और कोल्ड स्टोरों की श्रंखला में बड़ा निवेश। चौथे सूत्र में, खाद्य प्रसंस्करण द्वारा मूल्य संवर्धन। पांचाव सूत्र, मंडियों की विसंगतियों से निपटने के लिए एकीकृत राष्ट्रीय कृषि बाजार की स्थापना।
छठां सूत्र, किसानों की आर्थिक सुरक्षा हेतु ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ के जरिए आपदा प्रबंधन का प्रयास। सातवां सूत्र, कृषि सहायक गतिविधियों, जैसे- पशु-पालन, मुर्गी-पालन, मत्स्य-पालन, मधुमक्खी-पालन आदि कार्यों को बढ़ावा देना। नीति आयोग ने ‘डबलिंग फार्मर इनकम‘शीर्षक का एक दस्तावेज’ भी जारी किय है। इसमें किसानों की आय को बढ़ानें के लिए उचित रणनीति बनाने पर बल दिया गया है।
नीति आयोग के एक्शन प्लान में चार बाते प्रमुखता के साथ कही गई हैं। पहली, मौजूदा बाजार की संरचना में सुधार करते हुए किसानों को लाभकारी मूल्य प्रदान करना। दूसरा, उपज को बढ़ावा देना। तीसरा, कृषि भूमि नीति में सुधार करना और चौथा, किसानों के लिए राहत के पुख्ता उपाय करना है।
नाबार्ड भी किसानों की खुशहाली के लिए निरंतर प्रयास कर रहा है। जिसके तहत दीर्घकालीन सिंचाई कोष बढ़ाना, भू-जल संसाधनों का सुचारू प्रबंधन सुनिश्चित् करना तथा तालाब-कूएं आदि की खुदाई करने के लिए मनरेगा के तहत अतिरिक्त व्यवस्था करना आदि शामिल हैं।
डेयरी प्रसंस्करण और ढांचागत विकास कोष का गठन आदि भी इसी दिशा में किया गया एक प्रयास है। इस महत्वपूर्ण उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक अंतर-मंत्रालयी समिति का गठन भी किया गया है। इस समिति में व्यापार, उद्योग, वैज्ञानिक, नीति-निर्धारकों और अर्थशास्त्रियों सहित प्रगतिशील किसानों तक को भागीदार प्रदान की गई है।
समिति तथा अन्य संस्थाओं से प्राप्त सिफारिशों को लागू करने के लिए कृषि एवं कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत सभी तीनों विभागों के तहत संचालित विभिन्न योजनाओं/कार्यक्रमों को मिशन मोड़ में परिवर्तित किया गया है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि वे वर्ष 2022 तक, जब भारत अपनी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाएगा, तब तक वे किसानों की आय को दुगुना करना चाहते हैं।
प्रधानमंत्री जी के शब्दों में ‘मैने इसे एक चुनौति के रूप में ग्रहण किया है, एक अच्छी रणनीति, सुनिश्चित् कार्यक्रम, पर्याप्त संसाधनों एवं क्रियान्वयन में सुशासन के माध्यम से इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि ‘मुझे विश्वास है कि हम सभी एक साथ मिलकर भारतीय कृषि और उसके गौरव को वापस लौटाएंगे और किसानों की आय को बढ़ाने के लिए एक साथ मिलकर कार्य करेंगे।‘
कृषि एवं किसान कल्याण के प्रति प्रतिबद्वता प्रकट करते हुए एनडीए सरकार के वर्ष 2014 से 2019 तक के पांच वर्षों में कृषि क्षेत्र के बजट का आकार 2,11,694 करोड़ रूपये रहा है, सरकार ने प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया कोष से कृषि क्षेत्र को गत पांच वर्षों में 32,208 करोड़ रूपये से अधिक धनराशि प्रदान की है, सरकार द्वारा राज्य आपदा अनुक्रिया कोष (एसडीआरएफ) के अंतर्गत वर्ष 2015-2020 में 61,220 करोड़ रूपये की राशि प्रदान की है।
वर्तमान सरकार ने कृषि क्षेत्र की बहुक्षेत्रीय आवश्यकताओं को अपनी नीतियों में भी रेखांकित किया है, इसके लिए संचित निधि का आवंटन अलग-अलग कार्यों में किया गया है।
सरकार ने सूक्ष्म सिंचाई कोष के लिए 5 हजार करोड़ रूपये, डेयरी प्रसंस्करण के लिए 10,881 करोड़ रूपये, दीर्घकालिक कृषि सिंचाई कोष के लिए 40 हजार करोड़ रूपये, कृषि अवसंरचना विकास क्षेत्र के लिए 2000 हजार करेड़ रूपये, मत्स्य एवं जलीय विज्ञान विकास के लिए 7,550 करोड़ रूपये तथा पशु-पालन अवसंरचना विकास के लिए 2,450 करोड़ रूपये आवंटित किए हैं। सरकार की कृषि संबंधी नीतियों एवं योजनाओं में इस क्षेत्र में लम्बे समय से चली आ रही समस्याओं के समाधान का संकल्प ही प्रकट होता है।
सरकार ने समस्याओं को चिन्हित करने तथा उनके समाधान के लिए ठोस नीति-निर्धारण का कार्य लक्ष्यावधि में ही किया है। योजनाओं के निर्माण एवं उनकी व्यवहारिकता का प्रशिक्षण देने और इसे लागू कराने में भी सरकार सफल रही है।
किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य प्राप्त हो, यह मांग किसान लम्बे समय से कर रहे हैं। वर्तमान सरकार ने खरीफ की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में किसानों की लागत पर 1.5 गुना बढ़ोत्तरी करके यह प्रमाणित किया है कि सरकार किसानों के हितों के लिए हरसंभव प्रयास करने में भी पीछे नही है। सरकार ने इस निर्णय के बाद लगभग सभी फसलों पर किसानों को 50 फीसदी से अधिक लाभ मिलने की संभावना है।
बाजरा और उड़द जैसी फसलों पर तो लाभ की सीमा 65 प्रतिशत से लेकर 112 प्रतिशत तक है। सरकार केवल एम.एस.पी. की घोषणा तक ही सीमित नही रही अब एम.एस.पी. के बाद उपज की खरीद सुनिश्चित् करने और इसका लाभ देश के सभी किसानों को दिलाने के लिए एक नई अनाज खरीद-नीति प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) को लागू किया है।
इस अभियान के तहत राज्यों को एक से अधिक योजनाओं का विकल्प दिया जाएगा। यदि बाजार की कीमतें समर्थन मूल्य से नीचे आती है तो सरकार एमएसपी को सुनिश्चित् करेगी और किसानों के नुकसान की भरपाई करेगी। यह स्कीम राज्यों में तिलहन उत्पादन के 25 प्रतिशत हिस्से पर लागू होगी। सरकार द्वारा पारदर्शी एवं किसान हितों के लिए बनाई गर्इ्र ‘प्राइस सपोर्ट स्कीम’ के तहत किसानों की उपज की खरीद प्रक्रिया में अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी हुई है। इसके लिए सरकार ने केवल दो वर्षों में 15,093 करोड़ रूपये खर्च किए। वहीं कपास की खरीद में भी सरकार ने 325 फीसदी की बढ़ोत्तरी की है।
सरकार ने ‘प्रति खेत को पानी’ पहुंचाने के लिए ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना‘ के तहत ‘प्रति बूंद, अधिक फसल’ योजना को एक अभियान की तरह से संचालित किया है। इस योजना ने देश में सूक्ष्म सिंचाई व्यवस्था को एक नया आकार देने का कार्य किया है। सरकार ने इस योजना के लिए बजटीय आवंटन में 16.21 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करते हुए 5,460 करोड़ रूपये की अतिरिक्त धनराशि प्रदान की है।
वहीं वृहद सिंचाई क्षेत्र की सुदृढ़ता के लिए 40 हजार करोड़ की राशि नाबार्ड के तहत सृजित की गई है जिससे 76.03 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई के दायरे में लाया जा सकेगा। सरकार ने योजना के प्रथम चरण में देशभर में में लांबित 99 सिंचाई परियोजनाओं को नियमित समय पर पूरा करने का लक्ष्य 2020 तक निर्धारित किया है।
प्रधानमंत्री ने 5 जनवरी, 2019 को 47 वर्षों से लंबित मंडल डैम परियोजना, (उत्तरी कोयल सिंचाई परियोजना) की सभी बाधाओं को दूर कर पुनः प्रारम्भ कर दिया है। 2,391 करोड़ रूपये की लागत से पूरी होने वाली इस परियोजना से झारखंड के दो जिले पलामू और गढ़वा की लगभग 19,604 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकेगी। सिंचाई की पुख्ता व्यवस्था होने पर, किसान अधिक मूल्य देने वाली फसलें उगाने की ओर प्रवृत होंगे, जिससे उनकी आमदनी भी बढ़ेगी।
नीति आयोग के आंकड़ों के अनुसार एक हेक्टेयर प्रमुख फसल क्षेत्र और फलों, सब्जियों, फूलों, वाणिज्यिक फसलों आदि अधिक मूल्य प्रदान करने वाली फसलों में परिवर्तित करने से सकल आमदनी को 1, 01,608 रूपये तक बढ़ाया जा सकता है। इसकी तुलना में प्रमुख फसलों के उत्पादन से सकल आमदनी मात्र 41,169 रूपये प्रति हेक्टेयर की होती है। इस तरह किसानों की आय में 2.47 गुना बढ़ोत्तरी की जा सकती है।
वर्तमान सरकार ने कृषि एवं किसान कल्याण एवं ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर का कायाकल्प करने के जो बदलाव किए हैं, वे अब आम आदमी के जीवन में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होने लगे हैं। हाल ही में लाई राष्ट्रीय ग्रामीण बैंक की एक सर्वे रिपोर्ट के जो नतीजे हैं, वे देश में किसानों की तरक्की की कहानी कहते हैं। सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार पहले की अपेक्षा देश के छोटे एवे सीमांत किसानों की आय में उत्साहवर्द्वक वृद्वि दर्ज की गई है।
ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 42 प्रतिशत किसान परिवार हैं, जिनकी वर्ष 2015-16 में वार्षिक आय 1.07 लाख रूपये हो गई है जबकि वर्ष 2012-13 में उनकी यह आय मात्र 77.11 हजार रूपये थी। 29 राज्यों में से 19 राज्यों में किसानों की आय में बढ़ोत्तरी की दर 12 प्रतिशत से ऊपर दर्ज की गई है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ के कृषि महाविद्यालय में प्रोफेसर एवं कृषि जैव प्रौद्योगकी विभाग के विभागाध्यक्ष हैं।
डिस्कलेमरः प्रस्तुत लेख में प्रकट किए गए विचार डॉ0 सेंगर के मौलिक विचार हैं।