
अहिंसा का वास्तविक अर्थ Publish Date : 24/06/2025
अहिंसा का वास्तविक अर्थ
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
अहिंसा शब्द हमें भगवान बुद्ध की याद दिलाता है। अहिंसा के सम्बन्ध में भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़ी एक घटना अत्यंत सार्थक है। एक बार किसी राज्य का सेनापति उनका शिष्य बनने के लिए उनके पास आया। बुद्ध ने उससे पूछा, ‘तुम भिक्षु क्यों बनना चाहते हो?’ उसने उत्तर दिया, ‘शत्रुओं ने हमारी भूमि पर आक्रमण कर दिया है। मुझे उनसे लड़ने के लिए अपनी सेना का नेतृत्व करना है। दोनों ओर से बहुत हिंसा और रक्तपात होगा। मुझे लगता है कि यह एक पापपूर्ण कार्य है। इसलिए मैं सेना में अपना पद छोड़कर शांति और अहिंसा के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए आपके पास आया हूं।’
गौतम बुद्ध ने उसे इस प्रकार समझाया, ‘तुम अपनी सेना छोड़ सकते हो, लेकिन इसका मतलब यह तो बिलकुल नहीं है कि तुम्हारे दुश्मन भी वापस चले जाएंगे। तबाही और रक्तपात का होना तो तय है। यदि तुम अपने निर्दाष लोगों की रक्षा करने का अपना कर्तव्य नहीं निभाते हो, तो तुम्हें उनकी हत्या का पाप सहना पड़ेगा। धर्म तुम्हें अच्छे और सीधे लोगों की रक्षा करने के लिए कहता है। इसके लिए आवश्यक कदम उठाना किसी भी तरह से पापपूर्ण कार्य नहीं हो सकता। अतः वापस जाओ और जो कार्य तुम्हें सौंपा गया है उसे पूरा करो।’ गौतम बुद्ध ने इस प्रकार अहिंसा का वास्तविक अर्थ स्पष्ट किया।
महात्मा गांधी की सलाह में भी यही है कि अहिंसा की आड़ में कायरों की तरह अपनी जान बचाने के लिए भागना ठीक नहीं है। वास्तविक तो अहिंसा बहादुरों का आभूषण है। भगवान श्री कृष्ण ने भी स्पष्ट शब्दों में कहा है कि धर्म की स्थापना में बुराई का अंत निहित है। श्री कृष्ण बुराई के अंत के लिए ‘विनाशाय च दुष्कृताम’ सिद्धांत के जीवंत उदाहरण थे। उन्होंने हर चीज के लिए युद्ध और शांति की स्थापना के लिए स्पष्ट सलाह दी है। उन्होंने इसके लिए अपनी पूरी शक्ति और बुद्धि लगा दी। लेकिन वे निश्चित रूप से जानते थे कि समस्या का अंतिम समाधान केवल शक्ति के प्रयोग से ही संभव है।
जब भगवान श्री कृष्ण किसी स्वीकार्य समाधान के लिए दुर्योधन से मिलने जा रहे थे, तो दुर्योधन की दुष्ट प्रकृति को जानते हुए, धर्मराज ने कृष्ण की सुरक्षा के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की, तब श्री कृष्ण ने उन्हें विश्वास दिलाया, “यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई, तो मैं दुर्याेधन और उसके सहयोगियों का विनाश कर दूंगा। तब तुम बिना किसी युद्ध के अपना राज्य पुनः प्राप्त कर सकोगे।” आज अपने समाज को बहुत शक्तिशाली बनाना आवश्यक हो गया है, जिससे हम पूरी दुनिया में अहिंसा का विचार स्थापित कर सकें। जब आप दुश्मनों का सामना कर रहे हों, तो यही एकमात्र उचित और व्यावहारिक तरीका है जो शक्ति की भूमिका को स्पष्ट करता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।