
जीवन जीने की कला Publish Date : 22/06/2025
जीवन जीने की कला
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
अनुकूल एवं प्रतिकूल परिस्थितियां, हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा होती हैं, परंतु उन स्थितियों में मुस्कुराते रहना ही जीवन जीने की असली कला कहलाती है। दर्द हमें मजबूत बनाता है तो आंसू हमें साहसी बनाते हैं। हृदय की पीड़ा के माध्यम से हम बुद्धिमान बनते हैं। अतः हमें जीवन की सभी प्रिय और अप्रिय घटनाओं एवं प्रसंगों के प्रति आभारी होना चाहिए, क्योंकि ऐसी परिस्थितियों ने उन सभी अच्छी बातों को लेकर सचेत किया है, जिनके प्रति हम अभी तक उदासीन थे।
बारिश और धूप जब इन दोनों का मिलन होता है तभी इंद्रधनुष दिखाई देता है और जीवन को जीने का आनंद भी तभी आता है जब सुख और दुख दोनों हमारे जीवन में संतुलित रूप से विद्यमान हों। जीवन की हर परिस्थिति में समभाव रखते हुए आगे बढ़ने वाली जीवन की गाड़ी ही वास्तविक आनंद प्रदान करती है।
इस जीवन की यात्रा में हमारे सहयात्री अर्थात अन्य लोगों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अच्छे लोग हमें खुशियां देते हैं तो बुरे लोग भी हमें कछ न कुछ अनुभव देकर जाते हैं। जो सर्वाेत्तम लोग होते हैं वह अपनी सुखद यादें छोड़ जाते हैं। अच्छे लोगों में एक खास बात यह होती है कि वह अपने बुरे समय में भी अच्छे ही बने रहते हैं। आज हम अच्छी स्थिति में हैं, इसके लिए अतीत में लोगों के योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता और हमें उनके प्रति कृतज्ञ होना ही चाहिए।
इस धरती पर संपूर्ण तो कोई भी नहीं हैं। इसलिए हर किसी में संपूर्णता की तलाश न करें और न ही लोगों से अधिक अपेक्षाएं रखें। लोगों को परखें कम और उनसे प्रेम अधिक करें। सम्मान सभी का करें, लेकिन उसका भी एक नियत अनुपात हो।
आपको अपना समय भी किसी को उतना ही देना चाहिए जितना कि आवश्यक हो, क्योंकि अतिशय उपलब्धता आपका अवमूल्यन ही करती है। कोई पराया व्यक्ति भी हमारा हितैषी है तो वह भी अपना ही है और हमारा अहित करने वाला व्यक्ति अपना होकर भी पराया हो जाता है। याद रहे कि रोग हमारे शरीर में उत्पन्न होकर ही हमें परेशान करता है। जबकि औषधि दूर जंगल में पैदा होकर भी हमारा उपचार करती है। उपयोगिता और गुण-अवगुण ही अपने-पराए की पहचान कराते है।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।