
पर्यावरण व्यवहार बदले तो कम हो सकता है कचरा Publish Date : 13/06/2025
पर्यावरण व्यवहार बदले तो कम हो सकता है कचरा
प्राफेसर आर. एस. सेंगर
वर्तमान समय में हमें यदि तेजी से कचरे की मात्रा को कम करने का लक्ष्य हासिल करना है, तो कचरा उत्पादकों पर वजन आधारित शुल्क अदायगी को लागू करना प्रथम कदम होना चाहिए।
अगले 25 वर्षों में कचरे की मात्रा दोगुनी होने की आशंका है। जलवायु परिवर्तन पर चिंता के दौरान यह माना जाता रहा है कि वैश्विक तापमान में वृद्धि के लिए जिम्मेदार मीथेन गैस के सृजन का तीसरा सबसे बड़ा कारक कचरा ही है। बढ़ते शहरीकरण के चलते हर सप्ताह पेरिस के समकक्ष एक नया शहर दुनिया में पैदा हो जाता है और उसके बनने के साथ-साथ कचरा उत्पादन में भारी बढ़ोतरी होती है। शहर बनने की प्रक्रिया में जहां एक ओर निर्माण एवं विध्वंस संबंधी कचरे से लैंडफिल पर कूड़े के पहाड़ बन जाते हैं, वहीं दूसरी ओर वायु प्रदूषण भी उसी अनुपात में होता है।
हाल के वर्षों में कचरा उत्पादन को कम करने के लगभग सभी प्रयास प्लास्टिक में कमी लाने तक लक्षित रहे। कचरे की समस्या के निदान के लिए एक वस्तु विशेष के प्रवाह मात्र पर ध्यान केंद्रित कर देना संभवतः सही दृष्टिकोण नहीं है, क्योंकि कचरे को समग्रता से समझे बिना निराकरण दुष्कर है। भारत के परिप्रेक्ष्य में शून्य कचरा का लक्ष्य अब भी दूर की कौड़ी प्रतीत होता है। इसके लिए सर्वाधिक दोषी है वर्तमान कचरा प्रबंधन प्रणाली। प्रचलित कचरा प्रबंधन प्रणाली में कचरे की कितनी भी मात्रा पैदा करें या किसी भी प्रकार का कचरा पैदा करें-देय शुल्क समान ही रहता है।
कुछ प्रांतों में तो अब भी कचरे के बाबत उपयोग संबंधी शुल्क वसूला नहीं जाता है। नतीजतन कचरा उत्पादकों को कचरे से होने वाली समस्या का एहसास ही नहीं होता है। कचरा संग्रहण की व्यवस्था सैद्धांतिक रूप से ठोस कचरा प्रबंधन नियम, 2016 की अनुपालन में होती है, लेकिन उसे संग्रहीत करने के लिए उपयुक्त प्रकार के संसाधन प्रायः किसी भी नगरीय निकाय या उसके द्वारा नियुक्त एजेंसी के पास नहीं होते। नतीजतन संपूर्ण अपशिष्ट मिश्रित कचरे के रूप में ही एक से दूसरे स्थान पर भेज दिया जाता है।
शून्य कचरे की परिकल्पना कचरा उत्पादकों को उत्तरदायी बनाए बिना असंभव है, क्योंकि जब तक कचरे के उत्पादन को नियंत्रित नहीं किया जाएगा, तब तक इसके अंबार लगते रहेंगे। कचरा उत्पादन का सारा दारोमदार उपभोक्ता का ही होता है। भारत में कचरा प्रबंधन की अवधारणा के शुरुआती दौर में अन्य देशों की तरह पॉल्यूटर पे सिद्धांत को लागू करने की चर्चा होती थी और उपभोक्ता को उत्तरदायित्व का बोध कराने के लिए शुल्क अदायगी इसका महत्वपूर्ण अंग था। किंतु कालांतर में कचरा प्रबंधन की संपूर्ण व्यवस्था राज्यों द्वारा प्रदत्त अनुदान या अन्य राशि से होने लग गई। नतीजतन उपभोक्ता ने स्वयं को व्यवस्था में मात्र कूड़ा पैदा करने वाले तक सीमित कर लिया। यदि तेजी से कचरे की मात्रा को कम करने का लक्ष्य हासिल करना है, तो कचरा उत्पादकों पर बजन आधारित शुल्क अदायगी को लागू करना प्रथम कदम होना चाहिए। अन्यथा वर्तमान व्यवस्था एवं समाज के रहते शून्य कचरा तो दूर, पहले की तरह ही कचरे के विशाल पहाड़ बनते जाएंगे। किसी भी वस्तु को खरीदने से पहले उसके पर्यावरणीय प्रभाव पर विचार किया जाए एवं अनावश्यक खरीद को नकारा जाए। हमारे व्यवहार में बदलाव आते ही कचरे की मात्रा कम हो जाएगी।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।