
मानव मन की दशा Publish Date : 31/05/2025
मानव मन की दशा
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
हमारे मनीषियों ने कहा है कि मन बिना पंखों के भी ऊंची उड़ान भरने वाला एक पक्षी है। इस मन को साधे बिना हममें से कोई भी परमात्मा के घर प्रवेश नहीं पा सकता। मन के इस पार रहने वाले जीव संसार में भटकते हैं और जो मन के उस पार हैं, वही परमात्मा की कृपा के अधिकारी होते हैं। जो मन के गुलाम बने वे सदैव दास ही रहे, कभी स्वामी न बन सके। जो मन की नीति एवं स्वभाव को समझकर विवेकसम्मत आचरण करते हैं, वे मन के पुल को ऐसे पार कर जाते हैं, जिसके लिए कबीर ने कहा है-ज्यों की त्यों घर दीनी चदरिया।
मन संसार के विषय संबंधी संकल्प, विकल्पों में उलझा रहता है। यह विकल्प चेतना को अपने से दूर संसार के भंवर में ले जाने वाला हैं। हमारा मन एक ऐसा दर्पण है, जिसमें हम अपनी आत्मा की छाया को देख सकते हैं। अगर हम सच्ची समझ और अशुभ विकल्पों से मन को हटाकर शुभ विचारों में लगाएं तो मन के पार जाने में हमें बहुत सुविधा हो जाती है। तब हम वास्तविक सुख का अनुभव करते हैं। पाप से मुक्ति मिलती है, पुण्य का तटबंध बनता है। इसी पुण्य रूपी बीज से पुण्य रूपी वृक्ष फलता-फूलता है, जिसकी शीतल छाया में जीव मुक्ति पथ पर बढ़ता जाता है।
सुबह जागते ही जो शब्द या चित्र हमारे चित्त पर सबसे पहले अंकित होता है उसी के अनुरूप हमारी दिन भर की यात्रा होती है। इसी तरह रात्रि में सोते समय जो विचार नींद के प्रथम चरण के दौरान मन में दस्तक देता है, वही हमारे सपनों की दिशा तय करता है। इसलिए प्रातः उठते ही हमें अपने आराध्य देव का नाम लेना चाहिए और हम उनके गुणों का चिंतन करें, क्योंकि जैसा हम बोलते पढ़ते हैं, वैसा ही विचार बनते हैं और जैसे विचार होते है, वैसा ही हमार आचरण होता है। यही आचरण हमारे व्यक्तित्व का निर्धारण करता है। इसलिए जैसा हम बनना चाहते हैं, वैसे ही विचारों पर मनन करें। इसलिए कहा गया है कि यदि हमने अपने मन को साध लिया तो समझिए कि हमारा जीवन ही सध गया।
लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।