
धरती को सुरक्षित रखने का एकमात्र रास्ता हरियाली और जल संरक्षण Publish Date : 23/05/2025
धरती को सुरक्षित रखने का एकमात्र रास्ता हरियाली और जल संरक्षण
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
प्रतिवर्ष 22 अप्रैल को मनाया जाने वाला अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर जीवन जीने की प्रेरणा देता है। पृथ्वी दिवस की इस वर्ष की थीम के साथ-साथ पौधरोरण के दो मूलभूत आधार हरियाली और जल संरक्षण पर विचार करना है। यह दोनों ही मानव जीवन कि समस्त जैव विविधता के अस्तित्व की कुंजी है। हरियाली, प्रकृति का हरा सोना कही जा सकती है।
वृक्ष और वनस्पतियाँ पृथ्वी के आभूषण है। समुद्र पृथ्वी के सारे अशिष्ट नैसर्गिक रूप से साथ करने का सबसे बड़ा कार्य कहा जा सकता है। वृक्ष हमें ऑक्सीजन प्रदान करने के साथ-साथ मिट्टी के कटाव को रोकते हैं, जलवायु को संतुलित करते हैं, और जीव-जंतुओं को आश्रय देते हैं। भारत में वनों का क्षेत्रफल लगभग 21.71 प्रतिशत, भारतीय वन सर्वेक्षण 2021 के अनुसार है, विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आवश्यक 33. प्रतिशत से कम है।
शहरीकरण, अंधाधुंध निर्माण और औद्योगिकीकरण के कारण हरियाली का हास एक गंभी समस्या बन चुका है। वनों की कटाई से मरस्थलीकरण बढ़ रहा है। प्रदूषण के कारण पेड़ों का जीवनकाल कम हो रहा है।
जैव विविधता पर संकट का समाधान
- सामुदायिक स्तर पर वृक्षारोपण अभियान चलाया जाना चाहिए।
सरकारी योजनाओं जैसे ग्रीन इंडिया मिशन आदि को सक्रिय से लागू किया जाना चाहिए।
शहरी क्षेत्रों में छतों पर बगीचे (टेरेस गार्डनिंग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
जल संरक्षण
जल ही जीवन है, यह भारत जैसे देश में और भी अधिक प्रासांगिक है। वर्ष 2018 में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार 60 करोड़ लोग पानी की किल्लत से जूझ रहे है। नदियों का प्रदूषण, भूजल स्तर का गिरना और वर्षा जल का अपव्यय जल संकट को अधिक गहरा कर रहे हैं।
चुनौतियाँ
- कृषि और उद्योगों में जल की आधिक खपत।
- वर्षा जल संचयन की पारंपरिक प्रणालियों जैसे कुऐं तालाब आदि का विलोपन।
- नदियों में प्लास्टिक और रासायनिक कचरे के निपटान को कड़ाई से रोकना।
समाधान
- वर्षा जल संचयन (नक्टर हटिंग को अनिवार्य बनाना।
- नदियों की सफाई के लिए नमामि गंगे जैसे अभियानों को व्यापक स्तर पर लागू करना।
- किसानों को ड्रिप सिंचाई और कम जल चाहने वाले फसल चक्र अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना।
हरियाली और जल संरक्षण देनों का ही अटूट नाता है। ये दोनों पहलू एक-दूसरे के पूरक है। वृक्ष भूजल स्तर बढ़ने में मदद करते हैं, जबकि जल के बिना हरियाली संभव नहीं। हरियालों के बिना शुद्ध वातावरण संभव नहीं होता। उदाहरण के लिए, राजस्थान के तरुण भारत संभाग ने जल संरक्षण और वनीकरण के माध्यम से अलवर क्षेत्र को हरा-भरा बनाने का बृहद कार्य किया है। इसी प्रकार, केरल की हरित वर्षा जल प्रबंधन को प्राथमिकता देकर कृषि उत्पादन बढ़ाया।
क्या कर सकते हैं हम?
1. व्यक्तिगत स्तर पर
- घर में पौधे लगाएँ, और पानी की बर्बादी रोके।
- प्लास्टिक का उपयोग कम करके मिट्टी और जल को प्रदूषण से बचाएं।
- वर्षा जल संग्रह करना आज से ही प्रारंभ करे।
2. सामुदायिक स्तर पर
- गली-मोहल्ले में जागरूकता अभियान संचालित किए जाए।
- स्कूलों और कॉलेजों में इको-क्लॉस बनाएँ।
3. राष्ट्रीय स्तर पर
सरकार को जल शक्ति अभियान और राष्ट्रीय हरित न्यायालय के निर्देशों को कड़ाई से लागू करना चाहिए।
पृथ्वी दिवस केवल एक दिन का आयोजन नहीं बल्कि प्रकृति के प्रति हमारी सतत प्रतिबद्धता दोहराने का प्रतीक है। हरियाली और जल संरक्षण के बिना, मानवता का भविष्य अंधकारमय है। हम सबको किलोवली एक्ट लोकलीर के सिद्धांत पर चलते हुए, अपनी धरती को सुरक्षित रखने की शपथ लेने का संकल्प करना चाहिए।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।