
जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव अब माँ की कोख पर भी Publish Date : 21/05/2025
जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव अब माँ की कोख पर भी
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
गर्मियों की दोपहर अब केवल पसीने से तर-ब-तर और चुभन ही लेकर नही आती है, अपितु अब किसी महिला की कोख में पल रही जिन्दगी पर भी मार कर रही है। जलवायु परिवर्तन के चलते निरंतर बढ़ती गर्मी, अब गर्भवती महिलाओं के लिए भी जानलेवा साबित हो रही है। पिछले पाँच वर्षों के दौरान दुनिया के 90 प्रतिशत देशों में गर्भावस्था के लिए खतरनाक गर्म दिनों अर्थात हीट-रिस्क डेज की संख्या दुगुनी हो चुकी है।
एक गैर-सरकारी संगठन क्लाइमेट सेंट्रल की ताजा रिपोर्ट इंगित करती है कि जलवायु परिवर्तन के कारण गर्भवती महिलाओं को अधिक दिनों तक खतरनाक गर्मी का सामना करना पड़ रहा है। नई रिपोर्ट (2020 से 2024) में कहा गया है कि मानव जाति की गतिविधियों के चलते हो रहे जलवायु परिवर्तन के कारण जो गर्मी उत्पन्न हो रही है, पूर्व में वह कभी भी इस स्तर तक नहीं पहुंची थी। यह रिपोर्ट 247 देशों और 940 शहरों के तापमान का विश्लेषण करने के उपरांत तैयार की गई है।
रिपोर्ट का विश्लेषण करने के बाद सामने आया कि वर्तमान में प्रत्येक वर्ष में कई दिन ऐसे होते हैं जब तापमान किसी क्षेत्र में अपने पिछले रिकार्ड से 95 प्रतिशत से भी अधिक होता है और यही वह दिन हैं जो कि गर्भवती महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक दिन माने जाते हैं।
गर्भावस्था के दौरान एक दिन भी अधिक गर्मी होने से समस्या
महिला स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ0 ब्रूस बेक्कर ने बताया कि वर्तमान समय में चरम गर्मी किसी भी गर्भवती महिला के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुकी है। विशेषरूप से ऐसे क्षेत्रों के लिए जहां की स्वास्थ्य सेवाएं पहले से ही बहुत कमजोर हैं। वहीं क्लाइमेट सेंट्रल की विज्ञान उपाध्यक्ष डॉ0 क्रिस्टिना डाल कहती हैं कि गर्भावस्था के दौरान केवल एक दिन की जानलेवा गर्मी भी एक बड़ी समस्या खड़ी करने में सक्षम है। जबकि अब तो जलावायु परिवर्तन के चलते एक वर्ष में ऐसे कई दिन हो रहे हैं, जिन्हें किसी भी तरह से टाला नहीं जा सकता है।
सबसे अधिक प्रभावित देश
ऐसे देश जो कि पहले से ही स्वास्थ्य सेवाओं के हिसाब से पिछड़े हुए है जैसे कैरेबियाई देश, उक्षिण अमेरिका, पैसिफिक द्वीप, दक्षिण-पूर्व एशिया और सब-सहारन अफ्रीका जैसे देशों में ही इसका सबसे अधिक प्रभाव दिख रहा है। हालांकि, यदि ईमानादरी से देख जाए तो इन्हीं देशों और क्षेत्रों का जलवायु संकट के पैदा करने में सबसे कम योगदान रहा है। विडम्बना यह है कि इन्हीं देशों और क्षेत्रों को सबसे अधिक जलवायु परिवर्तन के परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं।
यह बात डराने वाली क्यों है?
ऐसे ‘हीट-रिस्क डे’ यानी गर्भावस्था के लिए खतरानक गर्मी वाले यह दिन समय पूर्व ही बच्चे के जन्म की आशंका को बढ़ा देते हैं। गर्भावस्था के दौरान अत्याधिक गर्मी पड़ने के चलते हाई ब्लड प्रेशर, जेस्टेशनल डायबिटीज, अस्पताल में भर्ती होने की स्थिति, गर्मी से गर्भ में ही बच्चे की मौत के जैसी गम्भीर स्थितियाँ पैदा हो सकती हैं, और इसका प्रभाव मात्र जन्म तक ही नहीं बल्कि जन्म लेने वाले शिशु पर पूरे जीवन रह सकता है।
रिपोर्ट में सामने आए हैं कुछ अहम तथ्य-
- प्रत्येक देश में ऐसे गर्म दिनों की संख्या में वृद्वि देखी जा रही है। इसका सबसे बड़ा कारण जीवश्म ईंधनों का जलना है।
- 247 देशों में से 222 देशों और क्षेत्रों में, पिछले पाँच वर्षों में इन खतरनाक गर्म दिनों की संख्या दुगुने से भी अधिक हो चुकी है।
- कुल 78 देशों में, जलवायु परिवर्तन के चलते प्रति वर्ष एक महीने के जितनी अतिरिक्त गर्मी जोड़ दी है, जो कि गर्भवती महिलाओं के लिए खतरनाक माना जा रहा है।
- विभिन्न देशों और शहरों में सारे के सारे हीट-रिस्क डे केवल जलवायु परिवर्तन के कारण ही हुए हैं। यदि यह जलवायु परिवर्तन न हुआ होता तो शायद इन क्षेत्रों में इस प्रकार की गर्मी भी नहीं होती।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।