
रॉकेट प्रक्षेपण अंतरिक्ष अन्वेषण और चुनौतियाँ Publish Date : 20/05/2025
रॉकेट प्रक्षेपण अंतरिक्ष अन्वेषण और चुनौतियाँ
अंतरिक्ष को निहारते हुए ही मानव सभ्यता का विकास हुआ है। तारे, सूर्य, चंद्रमा, उल्का पिंड, धूमकेतुओं को देखकर हम आश्चर्यचकित होते रहे हैं। विज्ञान की खोज और तकनीकों के विकास के बाद मनुष्य अंतरिक्ष में झांकने में समर्थ हो सका है। रॉकेट प्रक्षेपण ने इस दिशा में अहम भूमिका निभाई है। अंतरिक्ष अन्वेषण के इस कार्य ने अंतरिक्ष के असंख्य रहस्यों से परदा हटाया है। तकनीक ने अंतरिक्ष को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हालांकि पूरी दुनिया के पैमाने पर जब अनेक देश अंतरिक्ष अन्वेषण में आगे आए तो इससे पर्यावरण से संबंधित कई चुनौतियां भी उत्पन्न हुई है। रॉकेट प्रक्षेपण के संदर्भ में तकनीकी प्रगति और पर्यावरण संरक्षण के बीच उचित संतुलन कैसे स्थापित किया जाए, इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर इस लेख में व्यापक चर्चा की गई है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अंतरिक्ष अन्वेषण एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसने मानव जाति को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। रॉकेट प्रक्षेपण के माध्यम से उपग्रह, अंतरिक्ष स्टेशन, और अन्य उपकरणों को अंतरिक्ष में भेजना आज के युग की आवश्यकता बन चुकी है। चाहे यह संचार के लिए हो, मौसम का अध्ययन हो या ग्रहों पर जीवन की खोज हो, रॉकेट प्रक्षेपण ने मानवता को नई संभावनाओं से परिचित कराया है। हालांकि इसके साथ ही यह प्रक्रिया पर्यावरण के लिए गंभीर समस्याएं भी उत्पन्न करती है। रॉकेट प्रक्षेपण के दौरान वायुमंडलीय प्रदूषण, ओजोन परत का क्षरण, ध्वनि प्रदूषण, जल और मिट्टी का प्रदूषण तथा अंतरिक्ष मलबा जैसी अनेक समस्याएं सामने आती हैं। इन समस्याओं को समझना एवं उनका समाधान निकालना अत्यंत आवश्यक है, ताकि तकनीकी प्रगति और पर्यावरण संरक्षण के बीच एक सही संतुलन स्थापित किया जा सके।
वायुमंडलीय प्रदूषण
रॉकेट प्रक्षेपण से कई प्रकार के प्रदूषण होते हैं, जो पर्यावरण और मानव जीवन पर असर डालते हैं। रॉकेट प्रक्षेपण से वायुमंडलीय प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन एक बढ़ती हुई चिंता है, क्योंकि अंतरिक्ष मिशन और उपग्रह प्रक्षेपण की संख्या तेजी से बढ़ रही है। रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजने के लिए बहुत शक्तिशाली ईंधन का उपयोग किया जाता है। जब यह ईंधन जलता है, तो इसके द्वारा बड़ी मात्रा में गैसें और कण उत्सर्जित होते हैं। इनमें कार्बन डाइऑक्साइड, जल वाष्प और अन्य हानिकारक गैसें शामिल होती हैं। ठोस ईंधन के जलने पर काले कार्बन ब्लैक कार्बन और नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जित होते हैं, जो प्रदूषण का मुख्य कारण बनते हैं। तरल हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का उपयोग करने वाले रॉकेट कम प्रदूषणकारी होते हैं, लेकिन ये भी पूरी तरह से साफ नहीं हैं। ये गैसें न केवल जलवायु परिवर्तन में योगदान करती हैं, बल्कि ऊपरी वायुमंडल में अस्थिरता भी उत्पन्न करती हैं।
ओजोन परत पृथ्वी के वातावरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो जीवन को सुरक्षित रखने में अहम भूमिका निभाती है। यह परत स्ट्रेटोस्फियर में पाई जाती है और मुख्य रूप से ओज़ोन गैस से बनी होती है। ओज़ोन परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी (यूवी) किरणों को अवशोषित करती है, जो मानव, जीव-जंतुओं, और पौधों के लिए घातक हो सकती हैं। इसे पृथ्वी के ‘सुरक्षा कवच’ के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यह हमारे ग्रह को प्राकृतिक आपदाओं और जैविक क्षति से बचाती है। ओज़ोन परत सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों के कारण ऑक्सीजन अणुओं के टूटने और उनके ओज़ोन में परिवर्तित होने से बनती है। यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो सूर्य की ऊर्जा का उपयोग करती है। यह अल्ट्रवायलेट को अवशोषित कर पृथ्वी के तापमान और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में मदद करती है। यह मानव स्वास्थ्य को सुरक्षित रखती है, क्योंकि यूवी किरणें त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद, और प्रतिरक्षा प्रणाली की कमज़ोरी का कारण बन सकती हैं।
यूवी-बी और यूवी-सी किरणें जीवित प्राणियों के लिए अत्यधिक हानिकारक होती हैं। ओजोन परत इन्हें पृथ्वी की सतह तक पहुंचने से रोकती हैं। रॉकेट प्रक्षेपण के दौरान ठोस प्रोपेलेंट्स में उपयोग किए जाने वाले क्लोरीन-आधारित यौगिक ऊपरी वायुमंडल में ओज़ोन परत को क्षति पहुंचाते हैं। क्लोरीन अणु ओज़ोन अणुओं को तोड़कर किरणों को पृथ्वी तक पहुंचने की अनुमति देते हैं, जो स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए हानिकारक है। रॉकेट प्रक्षेपण के दौरान नाइट्रोजन ऑक्साइड गैसें उत्पन्न होती हैं, जो ओज़ोन के साथ प्रतिक्रिया करके उसे नष्ट करती हैं। ये गैसें कई वर्षों तक वायुमंडल में बनी रह सकती हैं। रॉकेट प्रक्षेपण के दौरान निकली गैसें सीधे ऊपरी वायुमंडल में प्रवेश करती हैं, जहां ओज़ोन परत को खुद को पुनर्निर्मित करने का समय नहीं मिलता। बार-बार के प्रक्षेपण से यह समस्या और बढ़ जाती है। ठोस और तरल ईंधनों के जलने से कालिख और ब्लैक कार्बन कण उत्पन्न होते हैं, जो ओज़ोन परत के नवीनीकरण को रोकते हैं।
ये कण सूर्य के विकिरण को अवशोषित करके ऊपरी वायुमंडल के तापमान को अस्थिर बनाते हैं। अंतरिक्ष अनुसंधान में वृद्धि के कारण रॉकेट प्रक्षेपण की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। यह ओजोन परत के लिए दीर्घकालिक खतरा है, क्योंकि प्रदूषण का संचय बढ़ता जा रहा है। यूवी किरणों के बढ़ते संपर्क से त्वचा कैंसर और मोतियाबिंद की घटनाओं में वृद्धि हो सकती है। प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर हो सकती है, जिससे बीमारियों का खतरा बढ़ता है। यूवी किरणें पौधों के विकास और उनकी उत्पादकता को भी प्रभावित करती हैं। फसलों पर नकारात्मक प्रभाव खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है। समुद्री जीवन, विशेष रूप से फाइटोप्लैंकटर यूवी किरणों से प्रभावित होते हैं। यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और खाद्य-श्रृंखला को अस्थिर कर सकता है।
रॉकेट प्रक्षेपण से उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय समस्या है, जो प्रक्षेपण स्थल और उसके आस-पास के क्षेत्रों में गंभीर प्रभाव डाल सकती है। रॉकेट के लॉन्च के दौरान उत्पन्न होने वाली तीव्र ध्वनि ऊर्जा और ध्वनि तरंगें कई कारकों पर निर्भर करती हैं, जैसे रॉकेट का आकार, उसकी गति, इस्तेमाल किए गए ईंधन का प्रकार, और प्रक्षेपण स्वत्त की भौगोलिक स्थिति आदि। रॉकेट प्रक्षेपण के दौरान कई कारणों से ध्वनि उत्पन्न होती है, जैसे रॉकेट के इंजन में ईंधन के तीन दहन से अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह प्रक्रिया तीव्र ध्वनि तरंगों को जन्म देती है। दहन प्रक्रिया के दौरान अत्यधिक गर्म गैसें उच्च दबाव पर बाहर निकलती है। वे गैसें जब वायुमंडल से टकराती हैं, तो तीव्र ध्वनि उत्पन्न होती है। रॉकेट जब ध्वनि की गति से तेज गति करता है, तो यह ध्वनि तरंगों का एक झटका (सोनिक बूम) उत्पन्न करता है, जो दूर तक सुनाई देता है।
रॉकेट प्रक्षेपण के दौरान उत्पन्न ध्वनि का स्तर 150-180 डेसिबल तक पहुंच सकता है, जो मानव और वन्यजीवों दोनों के लिए हानिकारक है। यह स्थानीय पर्यावरण पर गहरा प्रभाव डालता है और वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास को बाधित करता है। रॉकेट प्रक्षेपण स्थल के आस-पास के जानवर और पक्षी तीव्र ध्वनि से मयभीत हो सकते हैं, जिससे उनके व्यवहार तथा प्रजनन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ध्वनि तरंगों की तीव्रता के कारण आसपास के पेड़ों और वनस्पतियों को भी नुकसान हो सकता है। अत्यधिक ध्वनि मानव कान के लिए हानिकारक होती है। यह मानव की सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचा सकती है। प्रक्षेपण स्थल पर मौजूद लोगों को मानसिक तनाव, अनिद्रा, और अन्य शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। अत्यधिक तीव्र ध्वनि तरंगें आसपास की इमारतों और संरचनाओं को क्षति पहुंचा सकती हैं। ध्वनि तरंगों के दबाव से उपकरण और अन्य संवेदनशील संरचनाएं प्रभावित हो सकती हैं।
रॉकेट प्रक्षेपण से जल प्रदूषण तब होता है, जब इंधन के जलने से बने हानिकारक रसायन और अपशिष्ट पदार्थ वातावरण एवं जमीन पर गिरते हैं। ये रसायन बारिश के पानी के साथ नदियों, झीलों या समुद्रों में मिल सकते हैं, जिससे पानी की गुणवत्ता खराब हो जाती है। रॉकेट ईंधन में हानिकारक रसायन जैसे हाइड्रोजन परऑक्साइड, हाइड्राज़ीन और अन्य यौगिक होते हैं जो जल स्रोतों में घुलकर मछलियों और अन्य जलीय जीवों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। रॉकेट से निकलने वाली गैसें और कचरा जल स्रोतों में जहरीले पदार्थ मिलाते हैं, जिससे पानी में ऑक्सीजन की मात्रा घट सकती है और जलीय जीवन पर बुरा असर पड़ता है।
प्रक्षेपण के दौरान रॉकेट का कुछ हिस्सा समुद्र या अन्य जल निकायों में गिर सकता है, जिससे लंबे समय तक पानी में प्रदूषण हो सकता है। इस तरह रॉकेट प्रक्षेपण से उत्पन्न जल प्रदूषण पर्यावरण और जीवों के लिए हानिकारक हो सकता है। इसे कम करने के लिए बेहतर तकनीकों और सतर्कता की जरूरत है। रॉकेट प्रक्षेपण के दौरान होने वाला मिट्टी प्रदूषण मुख्य रूप से रॉकेट के इंजन से निकलने वाले ईंधन के अवशेष और धुएं से होता है। जब रॉकेट उड़ान भरता है, तो उसका इंजन बहुत अधिक गर्मी और कई गैस उत्सर्जित करता है, जिसमें हानिकारक रसायन और भारी धातुएं भी होती हैं। ये रसायन जमीन पर गिरकर मिट्टी में मिल जाते हैं और उसकी प्राकृतिक गुणवत्ता को नुकसान पहुंचाते हैं। रॉकेट इंधन में मौजूद हानिकारक रसायन (जैसे, हाइड्रोक्लोरिक एसिड और भारी धातुएँ) मिट्टी की संरचना को बदल देते हैं।
इन रसायनों के कारण मिट्टी का पीएच स्तर असंतुलित हो जाता है, जिससे वहां की खेती और पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है। प्रदूषित मिट्टी में सुक्ष्मजीवों और कीड़ों के जीवित रहने में कठिनाई होती है जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर असर पड़ता है। इन रसायनों का असर मिट्टी पर लंबे समय तक बना रह सकता है, जिससे जमीन की उपजाऊ क्षमता कम हो जाती है। इसलिए रॉकेट प्रक्षेपणस्थलों पर विशेष सावधानियां बरती जाती हैं, ताकि प्रदूषण को कम से कम किया जा सके।
रॉकेट प्रक्षेपण से अंतरिक्ष मलबे का बनना एक बड़ी समस्या है। जब भी कोई रॉकेट अंतरिक्ष में लॉन्च होता है, तो उसके अलग-अलग हिस्से जैसे बूस्टर, ऊपरी चरण और उपग्रह को अंतरिक्ष में ले जाने वाले अन्य उपकरण, अपने काम पूरे करने के बाद अलग हो जाते हैं। इनमें से कुछ पृथ्वी पर वापस गिरते हैं, लेकिन कई टुकड़े अंतरिक्ष में ही घूमते रहते हैं। पुराने और निष्क्रिय सैटेलाइट समय के साथ टूटने लगते हैं, जिससे छोटे-छोटे टुकड़े बन जाते हैं। जब दो सैटेलाइट या मलबे आपस में टकराते हैं, तो उनके टुकडे और ज्यादा मलवा बनाते है। इसके अलावा ईधन या बैटरी के कारण उपकरण कभी-कभी फट जाते हैं, जिससे मलवा बनता है। घूमता हुआ मलबा चल रहे सैटेलाइट्स से टकरा सकता है, जिससे उनका काम रुक सकता है। चह मलबा अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) वा अन्य मिशनों के लिए खतरा बन सकता है।
अंतरिक्ष मलबे के कुछ बड़े टुकड़े वायुमंडल में जलने के बजाय पृथ्वी पर गिर सकते हैं। मलबे की बढ़ती मात्रा से अंतरिक्ष में नई उड़ानों और मिशनों के लिए रास्ता खतरनाक हो सकता है। अंतरिक्ष मलबा धीरे-धीरे अंतरिक्ष के सुरक्षित उपयोग के लिए एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है, और इसे नियंत्रित करने के लिए वैश्विक प्रयासों की आवश्यकता है।
पर्यावरणीय समस्या का समाधान
वैज्ञानिकों ने कई नवाचार और रणनीतियां विकसित की हैं, जिनका उद्देश्य रॉकेट प्रक्षेपण के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना है। हरित ईंधन के विकास और उपयोग से प्रदूषण को काफी हद तक रोका जा सकता है। जैव ईंधन, तरल हाइड्रोजन और तरल ऑक्सीजन जैसे इंधन न केवल कम विषैले होते हैं, बल्कि इनके जलने से न्यूनतम प्रदूषण होता है। रॉकेट प्रक्षेपण स्थलों को ऐसे क्षेत्रों में स्थापित किया जाए, जहां पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव पड़े, जैसे समुद्र तट के नजदीक। संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र और घनी आबादी वाले क्षेत्रों से प्रक्षेपण स्थलों को दूर रखना चाहिए। स्पेसएक्स जैसे संगठनों ने पुनः उपयोग योग्य रॉकेट विकसित किए हैं, जैसे फाल्कन 9, यह तकनीक हर प्रक्षेपण के लिए नए रॉकेट निर्माणकी आवश्यकता को समाप्त करती है, जिससे ईंधन और सामग्री की बचत होती है और प्रदूषण में कमी आती है।
इन तकनीकों को विकसित करना और अधिक व्यापक रूप से अपनाना चाहिए। रॉकेट प्रक्षेपण से उत्सर्जित कार्बन की भरपाई के लिए अधिक पेड़ लगाए जाएं और वनीकरण परियोजनाओं को बढ़ावा दिया जाए। अंतरिक्ष एजेंसियां और कंपनियां अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए उपाय करें। अंतरिक्ष मलबे को नियंत्रित करने के लिए निवारण प्रणाली और निष्क्रिय रॉकेट चरणों के प्रबंधन की आवश्यकता है। लेजर सिस्टम, ग्रेपलिंग रोबोट, और जाल से मलबा पकड़ने की तकनीकों का उपयोग करके अंतरिक्ष मलबा हटाने के प्रयास किए जा रहे हैं। उपयोग के बाद सैटेलाइट्स को वायुमंडल में गिराकर जलाने की योजना बनाई जा रही है। रॉकेट और सैटेलाइट लॉन्च के लिए अंतर्राष्ट्रीय नियम और दिशा-निर्देश बनाए गए हैं, ताकि मलबे की समस्या को नियंत्रित किया जा सके। प्रक्षेपण स्थल के चारों ओर ध्वनि अवरोधक बनाए जा सकते हैं, जो ध्वनि तरंगों को सीमित कर सकते हैं। रॉकेट प्रक्षेपण के दौरान जलवाष्प का उपयोग ध्वनि तरंगों की तीव्रता को कम करने के लिए किया जाता है। यह तरीका नासा और अन्य एजेंसियां अपनाती हैं।
आने वाले समय में प्रौद्योगिकी और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। यह न केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी महत्वपूर्ण है। भविष्य में यदि हम हरित प्रौद्योगिकियों और पर्यावरण-अनुकूल उपायों को प्राथमिकता देते हैं, तो यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि हमारी प्रगति प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखें। यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम एक स्वस्थ और संतुलित ग्रह के निर्माण के लिए प्रयासरत रहें, ताकि अंतरिक्ष की अनंत संभावनाओं का लाभ उठाते समय पृथ्वी की सुंदरता और स्थिरता बनी रहे। स्वच्छ तकनीकों और जागरूकता के माध्यम से हम अंतरिक्ष अन्वेषण के साथ-साथ पृथ्वी के पर्यावरण की भी रक्षा कर सकते हैं।