
कचरे का भण्डार बनता भारत Publish Date : 19/05/2025
कचरे का भण्डार बनता भारत
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
आजकल उदारीकरण के इस दौर में भारत ने बहुत सी ऐसी वस्तुओं के आयात के लिए अपने दरवाजे खोल दिये हैं जो पहले भारत में उपलब्ध नहीं थीं। इन वस्तुओं में कुछ तो वास्तव उपयोगी हैं, लेकिन बहुत सी वस्तुएं ऐसी भी है जिनकी विशेष जरूरत नहीं है और कम से कम कचरे की जरूरत तो नहीं ही है। क्या कचरा भी भारत आ रहा है? जी हां आ रहा है। जरा याद कीजिए, कुछ समय पहले यह खबर सुर्खियों में थी कि भारत नीदरलैण्ड से गोबर आयात करेगा। यद्यपि सरकारी सूत्रों ने इस खबर को बेबुनियाद बताया था लेकिन यह एक तथ्य है कि नीदरलैण्ड ने एक नहीं बल्कि दो बार यह पेशकश की थी कि भारत उसके यहां से गोबर का आयात करें। यद्यपि नौटरलैण्ड के अखचारों में इस तरह की खबरें छप रही थीं कि जिस गोबर के निर्यात की संभावनायें तलाशी जा रही हैं, वह इतना विषाक्त है कि उसे देश में कहाँ पर भी इसका निस्तारण करने की अनुमति नहीं दी जा रही है। फिर भी भारत के तत्कालीन कृषि सचिव इस गोबर के आयात के संदर्भ में वैज्ञानिकों की राय ले रहे थे। खैर अब भारत में यह गोबर तो नहीं आएगा, लेकिन यह लगभग तय है कि नीदरलैण्ड और बेल्जियम अपने २०० लाख टन गोबर की भारत सरीखे किसी देश में ही खपाएंगे।
भारत सरकार ने भले ही गोचर के आयात का इरादा छोड़ दिया हो. लेकिन अभी वह विदशों से आने वाले प्लास्टिक और धातुई कचरे के आयात पर अंकुश लगाने के प्रति गंभीर नजर नहीं आती है। पिछले कुछ सालों में सारी दुनिया में प्लास्टिक का प्रयोग बेतहाशा बढ़ा है। आम और खास उपयोग को ज्यादातर वस्तुयें प्लास्टिक की बनने लगी हैं। प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग के कारण सारी दुनिया में प्लास्टिक कचरा फैल रहा है। चूंकि यह कचरा आसानी से नष्ट नहीं होता और समय के साथ उसमें ऐसे रासायनिक परिवर्तन होते हैं जो मिट्टी, पानी और वायु की प्रदूषित करते हैं। इसलिए अमीर पश्चिमी देश अपने यहां के प्लाास्टिक कचरे को तीसरी दुनियां के देशों में ठेल देते हैं। प्लास्टिक कचरा सिर्फ कचरा ही नाहीं होता, उसके कुछ हिस्से को फिर से उपयोग में लाया जा सकता है रिसायक्लिंग को सहायता से। लेकिन प्लास्टिक कबो में से 15 से 20 फीसदी अंश को ही पुनः उपयोग में लाया जा सकता है। बाकी विशुद्ध कबरा हो होता है- विषाक्त कचरा।
इसी विषाक्तता की वजह से कोई भी संपन्न देश प्लास्टिक कचरे को अपने यहां खपाना नहीं चाहता। आज प्लास्टिक कचरे के निर्यातक देशों में अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया कनाडा आदि प्रमुख हैं। आयातक देशों में भारत, चीन, थाईलैण्ड, पाकिस्तान बंगलादेश तथा इन जैसे ही अन्य राष्ट्र हैं। प्लास्टिक कचरे का आयात करने वाले देशों में पर्यावरण संगठनों को इस आयात पर आपत्ति है। उनका कहना है कि प्लास्टिक कचरे को जिस विशेष प्रक्रिया द्वारा पुनरोपयोगी बनाया जाता है, उसमें कार्य करने वाले प्रशिक्षित नहीं है और फिर एक तो प्लास्टिक कचरे से प्राप्त उपयोगी प्लास्टिक की मात्रा बहुत कम होती है और दूसरे, शेष कचरे को लापरवाही से इधर-उधर फेंक या जला दिया जाता है जिससे प्रदूषण बढ़ता है तथा यह प्रदूषण पर्यावरण को दुषित करने के साथ ही घातक बीमारियों के लिए जिम्मेदार है। लेकिन इस आपति की अनदेखी हो रही है और भारत समेत अन्य देशों में प्लास्टिक कचरे का आयात जारी है।
आंकड़ों के अनुसार वर्ष 1993 में भारत ने 7916 टन प्लास्टिक कचरे का आयात किया। एक अनुमान के अनुसार अमेरिका के 50 प्रतिशत से अधिक प्लास्टिक कचरे को भारत, बंगलादेश और पाकिस्तान अपने यहां खपा लेते हैं। ज्ञात हो कि अमेरिका में प्रति साल 960 लाख टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। कहते हैं कि अमेरिका में खपत वाली प्लास्टिक की बोतलों का ज्यादातर कचरा दक्षिण एशिया में ही ठेला जाता है। पर्यावरण संगठन ग्रीन पीस के मुताबिक पेप्सिको नामक अमेरिकी कंपनी ने हजारों टन प्लास्टिक कचरा भारत भेजा। हाल ही में पेप्सिको की भारतीय कंपनी पेप्सी फूड्स लिमिटेड ने इंडियन आर्गेनिक केमिकल लिमिटेड के साथ समझौता करके प्लास्टिक की बोतलें बनाने की परियोजना शुरू की है। पर्यावरण प्रेमियों को संदेह है कि इससे भारत में प्लास्टिक कचरे का आयात और अधिक बढ़ जाएगा।
भारत केवल प्लास्टिक कचरे का हो ‘डिब्बा’ नहीं बना हुआ है, प्लास्टिक कचरे के अलावा वर्ष 1993 में भारत ने 502 टन लेड कचरा, 346 टन लेड बैटरी कचरा, 30,498 टन टिन, तांबा और अन्य सूखा का कचरा आयात किया गया। वर्ष 1993 के सदृश्य भारत में कचरे का आयात बढ़ा ही है। जिस तरह पनास्टिक कचरे का बहुत थोडा अंश रिसाइक्लिंग द्वारा पुनरोपयोगी बनाया जा सकता है उसी तरह की स्थिति धातुई कचरे की भी है। 80 से 85 प्रतिशत धातु कचरा किसी काम का नहीं होता, अर्थात यदि 100 टन टिन कचरा मंगाया गया तो उसमें केवल 15-20 टन ही उपयोगी होता है। प्लास्टिक कचरे की तरह धातु कमरा भी पर्यावरण व मानव जीवन के लिए घातक है। धातु कचरे की रिसायक्लिंग करने वाले लोगों को मानसिक रोगों से ग्रस्त होने का खतरा रहता है। भारत पर्यावरण के संदर्भ में भले नजर आता हो, लेकिन हकीकत यह है कि ज्यादा से ज्यादा देश अपने कचरे को ठेलने के लिए भारत आ रहे हैं। पिछले दिनों आस्ट्रेलिया के ऐसे प्रतिनिधि मंडल के भारत जाने की बात कही गयी जो यह चाहता है कि भारत कचरा आयांत के करार पर हस्ताक्षर कर दे।
यद्यपि यह करार कचरा आयात संबंधी 65 देशों की अंतराष्ट्रीय सीमा का उल्लंघन होता, लेकिन बावजूद आस्ट्रेलिया का यह प्रतिनिधिमंडल भारत आया। इस प्रतिनिधिमंडल का भारत आना यह बताता है कि भारत कचरा आयात के मामल में एक उदार देश है अथवा उसके दुष्प्रभावों परवाह नहीं करता। कुछ दिनों पहले इंडोनेशिया ने लेड एसिड बैटरियों के आगमन पर पाबंदी लगा दी, लेकिन भारत में बैटरियों का आयात पहले की तरह जारी है। आस्ट्रेलिया ने 1993 में 340 टन लेड बैटरियां भारत को निर्यात की थीं। इससे पहले 1942 में 275 टन लेड एसिड बैटरियां भारत आयी थीं। जाहिर है कि भारत में कचरे का ढेर बढ़ता जा रहा है। भारत में अन्य की तुलना में कितना कचरा आयात हो रहा है. ऐसे कोई आंकड़े तो उपलब्ध नहीं लेकिन पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है भारत विश्व का सबसे बड़ा कचरा घर बनता जा रहा है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।