भारत में जाति प्रथा का दंश      Publish Date : 18/05/2025

                      भारत में जाति प्रथा का दंश

                                                                                                                                                    प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

जब से मैंने होश संभाला है लगातार सुनता आ रहा हूँ कि-

‘बनिया’ कंजूस होता है।

‘नाई’ चतुर होता है।

‘ब्राह्मण’ धर्म के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाता है।

‘यादव’ की बुद्धि कमजोर होती है।

‘राजपूत’ अत्याचारी होते हैं।

‘दलित’ गंदे होते हैं।

‘जाट’, ‘गड़रिया’ और ‘गुर्जर’ बेवजह लड़ने वाले होते हैं।

‘मारवाड़ी’ लालची होते हैं।

और ना जाने ऐसी कितनी ‘असत्य’ परम ज्ञान की बातें। सभी हिन्दुओं को आहिस्ते-आहिस्ते सिखाई जाती रही हैं। इसका परिणाम- हीन भावना।

                                                 

एक दूसरे की जाति पर ‘शक’ और ‘द्वेष’ के चलते धीरे-धीरे आपस में टकराव होना शुरू हुआ और अंतिम परिणाम हुआ कि ‘मजबूत’, ‘कर्मयोगी’ और ‘सहिष्णु’ हिन्दू समाज आपस में ही लड़कर कमजोर होने लगता है।

ऐसा होने से विरोधियों को उनका लक्ष्य प्राप्त हुआ और हजारों साल से जब आप एकसाथ थे तो आपसे लड़ना मुश्किल था, परन्तु अब आपको मिटाना आसान है।

आपको उनसे पूछना चाहिए था कि ‘अत्याचारी राजपूतों’ ने सभी जातियों की रक्षा के लिए हमेशा अपना ही ‘खून’ क्यों बहाया?

आपको पूछना था कि अगर दलित को ‘ब्राह्मण’ इतना ही गन्दा समझते थे तो वाल्मीकि रामायण जो एक दलित ने लिखी थी, तो उसकी सभी पूजा क्यों करते हैं?

माता सीता क्यों महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रहीं?

आपने नहीं पूछा कि देश को सोने का चिड़िया बनाने में ‘मारवाड़ियों’ और ‘बनियों’ का क्या योगदान था?

मंदिर, स्कूल, हॉस्पिटल बनाने वाले और अन्य ‘लोक कल्याण’ का काम करने वाले ‘बनिया’ ही होते हैं! सभी को ‘रोजगार’ देने वाले भी बनिया होते हैं और सबसे ज्यादा ‘आयकर’ देने वाले भी बनिया हर होते हैं।

जिस ‘डोम’ को आपने नीच मान रखा है, उसी के हाथ से दी गई अग्नि से आपको ‘मुक्ति’ कैसें मिल सकती है?

‘जाट’, ‘गड़रिया’ और ‘गुर्जर’ अगर मेहनती और जुझारू नहीं होते तो आपके लिए अन्न का उत्पादन कौन करता? देश की रक्षा करने के लिए सेना में भर्ती कौन होता।

जैसे ही कोई किसी जाति की, मामूली सी भी बुराई करे, उसे टोकिये और ऐतराज़ कीजिए और याद रखें कि

आप इस सबसे पहले केवल और केवल एक ‘हिन्दू’ हैं। हिन्दू वह है जो सदियों से हिन्दुस्तान में रहते आये हैं, उनका केवल एक ही धर्म और जाति है कि वह हिन्दु हैं।

हमने कभी किसी अन्य धर्म का अपमान नहीं किया तो फिर अपने ही हिन्दू भाइयों को कैसे अपमानित करते हैं और क्यों?

अब हम न तो किसी को अपमानित करेंगे और न किसी हिन्दु को अपमानित होने देंगे, ऐसा संकल्प करें और एक रहें - सशक्त रहें।

मिलजुल कर एक मजबूत भारत का निर्माण करें।

मैं ब्राम्हण हूँ और जब मै पढ़ाता हूँ तो केवल पढ़ाता ही हूँ।

मैं एक क्षत्रिय हूँ, और मैं अपने परिवार की रक्षा करता हूँ।

मैं वैश्य हूँ और मैं अपने घर का प्रबंधन करता हूँ।

मैं एक शूद्र हूँ और मैं अपने घर की साफ-सफाई करता हूँ।

यह सब मेरे भीतर है और इन सबके संयोजन से ही मैं बना हूँ।

क्या मेरे अस्तित्व से किसी एक क्षण के लिए भी, कोई इन्हें अलग कर सकता हैं।

क्या किसी भी जाति के ‘हिन्दू’ के भीतर से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र को अलग कर सकता हैं।

वस्तुतः सच यह है कि हम सुबह से रात तक इन चारों वर्णों के बीच बदलते रहते हैं।

अतः मुझे गर्व है कि मैं एक हिंदू हूं।

मेरे टुकड़े-टुकड़े करने की कोई कोशिश न करें।

मैं हिन्दू हूं और मैं पहचान हूँ एक अखंड भारत की।

अतः आपसे अनुरोध है कि अपने हिन्दू होने की पहचान को आगे बढ़ाये।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।