
कृषि विविधीकरण के माध्यम से कृषि उत्पादकता में बढ़ोतरी Publish Date : 16/05/2025
कृषि विविधीकरण के माध्यम से कृषि उत्पादकता में बढ़ोतरी
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी
वर्तमान समय में भारतीय कृषि एक निर्णायक दौर से गुजर रही है। इस समयं कृषि और किसानों की दशा बदलने के लिए तमाम सरकारी प्रयत्न, इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा उठाए जा रहे हैं। इसी क्रम में गंभीर चिन्तन का एक मुख्य मुद्दा है कृषि विकास की दर में बढ़ोतरी तथा कृषक आय में वृद्धि। इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए पंचवर्षीय योजनाओं के अतिरिक्त वार्षिक बजट में भी नित नए-नए प्रावधान किए जाते रहे हैं। इनमें विभिन्न प्रकार की कृषि योजनाओं, रियायती दर पर कृषि ऋण, इलैक्ट्रानिक-राष्ट्रीय कृषि और मार्केटिंग (ई-नाम) आदि का विशेषतौर पर उल्लेख किया जा सकता है।
कृषि की उत्पादकता एवं इसका उत्पादन बढ़ाने हेतु हरसंभव प्रयास भी इसी रणनीति की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत कार्यरत संस्थानों के वैज्ञानिकों द्वारा इस विषय पर निरंतर शोध कार्य किए जा रहे हैं। इन्ही अनुसंधान कार्यों का नतीजा है कि देश के अलग-अलग जलवायु क्षेत्रों के अनुकूल कृषि प्रणालियों का विकास बड़े पैमाने पर संभव हो सका है। इनमें गहन कृषि, फसल विविधीकरण, समेकित कृषि और व्यावसायिक खेती आदि का विशेषतौर पर उल्लेख किया जा सकता है। बड़े पैमाने पर कृषकों द्वारा इन्हें अपने खेतों में अब अपनाया भी जा रहा है।
कृषक समुदाय के बीच इन सभी उन्नत तकनीकों के प्रति जागरूकता फैलाने का काम भी इस दौरान कृषि विस्तार कर्मियों द्वारा किया जाता रहा है। इसी का सुपरिणाम है कि साल-दर-साल बढ़ते रिकॉर्ड कृषि उत्पादन के रूप में सामने आ रहा है।
सीमांत और छोटे किसानों तक इन तकनीकों का लाभ अभी पूरी तरह से नहीं पहुंच सका है। इसलिए इस दिशा में अधिक काम किये जाने की आवश्यकता है। कम लागत वाली आधुनिक कृषि प्रणालियों के उपयोग से एक ही समय में कई प्रकार के कार्य (फसलोत्पादन, सब्जी उत्पादन, पशुपालन, मत्स्य पालन और मधुमक्खी पालन आदि) करते हुए पूरे वर्षभर किसानों की कमाई संभव है। इन कृषि पद्धतियों के प्रदर्शन देशव्यापी स्तर पर किसानों के खेतों में संबंधित एजेंसियों के माध्यम से किए जा रहे हैं।
सरकार द्वारा भी किसानों की समृद्धि के लिए कई अभिनव और व्यावहारिक कदम हाल के वर्षों में किए गए हैं। इनमें प्रति बूंद अधिक उपज, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे में अधिक फसलों को शामिल करने जैसे अनेक उदाहरण शामिल हैं। इसी क्रम में ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि’ योजना के अंतर्गत लगभग 12 करोड़ कृषक परिवारों को 6000 रुपये वार्षिक प्रत्यक्ष सहायता देने का भी जिक्र किया सकता है।
इस वास्तविकता को नकारा नहीं जा सकता है कि हमारे देश में अधिकांश फसलों के मामले में उत्पादकता वैश्विक औसत उत्पादकता से बहुत कम है और इस पर अभी भी काफी ध्यान देने की जरूरत है, ताकि कम जोत में भी उत्पादकता बढ़ने का लाभ किसनों को मिल सके। इसके लिए उन्नत, संकर किस्मों के साथ ही भूमि की उर्वरता, कृषकों को बढ़ाने की जरूरत है। मृदा में कम हो रहे पोषक तत्वों की सही समय पर आपूर्ति करते हुए जलवायु परिवर्तन के अनुकूल फसलों/किस्मों का उपयोग बढ़ाने से ही उत्पादकता में आशातीत वृद्धि संभव है।
कृषक समुदाय को भी परंपरागत कृषि की सोच से बाहर निकलते हुए नवोन्मेषी तकनीक को अपनाने पर अधिक बल देना होगा। इसके लिए आय के साथ उत्पादकता में बढ़ोतरी के लिए वैज्ञानिक तौर तरीकों के बारे में जानकारियां हासिल कर इनका प्रशिक्षण भी प्राप्त करेंगे तो काफी हद तक सफलता प्राप्त की जा सकती है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।