मिलावट रोकने में असफलता के कारण      Publish Date : 29/04/2025

               मिलावट रोकने में असफलता के कारण

                                                                                                    प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

यद्यपि मिलावट को रोकने के लिए भारत सरकार ने अनेक उपाय किये हैं तथा समय-समय पर कमजोर नियमों में सुधार भी किये जाते रहे हैं, फिर भी मिलावट का कहर कम नहीं हो पा रहा है। इसके अनेक कारण हो सकते हैं, जैसे अपर्याप्त पैसा, राज्य सरकारों/स्थानीय निकायों के पास फूड इंस्पेक्टरों की कमी के साथ-साथ खाद्य पदार्थ टेस्ट करने वाली प्रयोगशालाओं में प्रशिक्षित स्टाफ, आधुनिक टेस्टिंग उपकरणों, संदर्भ मानक सामग्री की कमी अथवा अनुपलब्धता शामिल हैं। मिलावट पर लगाम कसने तथा जनता को सही व शुद्ध चीज़ों की उपलब्धता सुनिश्चित करने की मुहिम में सरकार नियमों और कानूनों में अब तक 360 संशोधन करने के साथ-साथ 250 से ज्यादा खाद्य पदार्थों के मानक निधर्धारित चुकी है। परन्तु मिलावट रोकने के लिए ये उपाय कम हैं क्योंकि मानक बनाना एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें अनेक पहलुओं को ध्यान में रखा जाता है, जैसे   प्राकृतिक पदार्थों की विभिन्नता, पदार्थों की अधिकतम संभावित शुद्धता, स्थानीय रीति-रिवाज, आदि।

अब आप सोच रहे होंगे कि इतने कानून होते हुए भी मिलावट और चोर बाजारी का अजगर दिन दूनी और रात चौगुनी वृद्धि कैसे कर रहा है, परन्तु यह इस लेख का मुख्य विषय नहीं है इसलिए इसकी चर्चा यहां नहीं की जा रही है। कुछ मिलावट कानून को थप्पड़ मारकर डकैती के रूप में की जाती है तो कुछ कानून की आखों में धूल झोंक कर। कुछ ऐसी भी मिलावटे हैं जो कानून के अंतर्गत की जाती है जिसे आप कानून में मौजूद छेद के जरिये की जाने वाली मिलावट कह सकते हैं। कानून में छेद कर धड़ल्ले से बेचे जाने वाला एक ऐसा ही उत्पाद है पान मसाला। कानूनी परिभाषा के अनुसार पान मसाला एक खाद्य मदार्थ है जिसमें फ्लेवर सहित अन्य अवयवों के अलावा सुपारी का प्रयोग वैद्य है। कानून यह भी मानता है कि सुपारी कैंसर पैदा कर सकती है। इस प्रकार खाद्य पदार्थों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने वाले इस कानून का निष्कर्ष निकाला जाये तो यही सामने आता है कि आप पान मसाले में कैंसर पैदा करने वाला पदार्थ खा सकते हैं।

पान मसाले में अकेली सुपारी ही नुकसानदायक नहीं है बल्कि बाकी अवयव भी स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं। इसमें अवयव के रूप में इस्तेमाल किया जाने वाला टाइटेनियम-डाइऑक्साइड कैसर जनक है। पान मसाले का फ्लेवर भी खतरनाक रसायनों को मिलाकर बनाया जाता है। आये दिन पान मसाले और गुटके को बंद करने की मुहीम चलती है और अड़चने आने के कारण विफलता ही हाथ लगती है। आम आदमी क्या करे?

इस दुनिया में कुछ लोग ‘इग्नोरेंस इज ब्लिस’ के सिद्धांत पर जीते हैं तो कुछ जानकारी ही बचाव है’ के सिद्धांत पर। स्वास्थ्य संबंधी उपायों के मामले में चाहे वे खाद्य पदार्थ हो या कॉस्मेटिक्स, निश्चित रूप से ‘जानकारी ही बचाव है’ वाली कहावत सही है। स्वास्थ्य संबंधी मिलावटी उत्पादों के प्रयोग से इग्नोरेंस कभी भी ब्लिस नहीं हो सकती, हाँ ब्लिस्टर अवश्य हो सकती है।

मिलावटी पदार्थों के बारे में इतनी जानकारी होने के बाद प्रत्येक व्यक्ति के मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि आखिर व्यक्ति क्या खाए और क्या न खाए और कौन सा सौंदर्य प्रसाधन प्रयोग करे और कौन सा न करे। आइये इन प्रश्नों पर विचार करें और इसके समाधान की तलाश करें।

सामान्य जीवन में मिलावटी पदार्थों के उपयोग से पूरी तरह तो आम क्या खास इंसान भी नहीं बच सकता, परन्तु पदार्थों का चयनित उपयोग करके हम मिलावटी पदार्थों के हानिकारक प्रभावों को कम अवश्य कर सकते हैं। जैसे, यदि आटे की मिलावट से बचना है तो पड़ोस में चक्की तलाशें, लगभग हर चक्की पर गेहूं बेचा जाता है। बस आपके आर्डर करने की देर है, आपकी आंखों के सामने गेहूं साफ करके अथवा पहले से ही साफ किये हुए गेहूं आपके लिए पीसे जा सकते हैं। दालों में रंग और वैक्स की कोटिंग को न्यूनतम करने के लिए इन्हें बनाने से पहले अच्छी तरह रगड़ कर खरीदें, हो सके तो गुनगुने पानी का इस्तेमाल करें। यदि दाल पर वैक्स की कोटिंग होगी तो घुलने के बाद दाल की सतह चमकहीन हो जायेगी तथा रंग पानी में धुल जायेगा। मसालों को भी यथासंभव सामने पिसवाने की कोशिश करें।

यदि ऐसा कर पाना संभव न होने पर एगमार्क युक्त डिब्या बंद मसाले ही खरीदें। दूध जहां तक संभव हो सरकारी संस्थानों द्वारा चलाये जा रहे बिक्री केन्द्रों से खरीदें। खुला बेचा जाने वाला दूध जो पहले से ही निकला हुआ रखा है, उसे न खरीदें। दूध विक्रेता की चिकनी चुपड़ी अथवा तथाकथित खरी-खरी बातों पर बिल्कुल न जाएं। रेगुलर या पुराने कस्टमर होने की दुहाई देने वाले लोग भी आपको मिलावटी सामान चेप सकते हैं। इस बात को कभी न भूले। मिलावट के सबसे ज्यादा चांस खुले दूध में ही हो सकता हैं। मिठाइयों का सेवन करने से यथासंभव बचें, खासतौर पर दूध अथवा दूध से बनी मिठाइयों से। बेसन की बनी वस्तुओं में ज्यादा पीलापन लिए चीजों से बचें, चाहे वह ब्रेड पकोड़े हों या बेसन या बूंदी के लड्डू।

बाजार में चौड़ी कड़ाइयों में गाढ़े मलाईयुक्त दिखने वाले दूध, रबड़ी और कुल्फी से सावधान रहें। पदि रबड़ी और कुल्फी खाने का मन हो तो घर पर ही दूध गाढ़ा करके इन उत्पादों को खुद बना लें। दही, पनीर और खोया घर पर आसानी से बनाये जा सकते हैं।

सौंदर्य प्रसाधनों में हानिकारक पदार्थों की मिलावट से बचने के लिए सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग कम से कम करें तथा आवश्यकता पड़ने पर उन्हें कम से कम समय के लिए त्वचा पर लगे रहने दें। केश तेलों में ज्यादा पतले तेलों से वर्षे इनमें मिनरल ऑयल होता है जो त्वचा के लिए हानिकारक होता है। गोरेपन की क्रीमों से प्रभावित न हो, इनके द्वारा प्राप्त गोरापन आपके स्थाई कालेपन की नींव भी रख सकता है। ऐसी ज्यादातर क्रीमें त्वचा को ब्लीच करती है तथा लंबे समय में त्वचा को काला व नष्ट करती हैं। ऐलोवेरा के नाम पर बाजार में सेकड़ों उत्पाद सरपट दौड़ रहे हैं, परन्तु अनेक कारणों से ज्यादातर मामलों में ऐलोवेरा में निहित गुणों का वांछित लाभ इन उत्पादों द्वारा नहीं मिलता। कॉस्मेटिक्स के रूप में ऐलोवेरा जूस का लाभदायक परिणाम तभी मिलता है जब वह त्वचा पर रहकर अंदर जाये।

ताजा जूस में एक्टिव एंजाइम मौजूद होने के कारण ऐलोवेरा सौदर्य प्रसाधनों के अन्य अवयवों से मिलकर तेजी से क्रिया करता है तथा अक्सर या तलछट के रूप में कॉम्प्लेक्स बना कर अलग हो जाता है या फिर सहने लगता है, जिसे पर्याप्त मात्रा में प्रिजर्वेटिव डालकर ही बचाया जा सकता है। बाशिंग तथा क्लिजिग उत्पादों, जैसे साबुन, शैम्पू आदि में इनका कोई लाभ नहीं मिलता है। वर्ष 2007 में किये गए वैज्ञानिक परीक्षणों में यह पाया गया है कि किसी भी प्रकार की क्रीम अथवा लोशन में 5 प्रतिशत से ज्यादा एलोवेरा जूस की मात्रा उत्पाद की स्टेबिलिटी को प्रभावित करती है जिसके कारण वांछित मात्रा में प्रिजर्वेटिव का प्रयोग करना पड़ता है जो त्वचा के लिए हानिकारक होता है। 

दवाओं के नकलीपन तथा मिलावटीपन से आम आदमी पूरी तरह तो नहीं बच सकता है परन्तु थोडी जागरुकता व सावधानी से किसी हद तक इससे बचा जा सकता है। इस दिशा में सबसे पहले तो ‘प्रिवेशन इज बेटर देन क्योर’ के फॉर्मूले को अपनाने का सुझाव दिया जाता। एक नियमित व अनुशासनात्मक दिनचर्या व खानपान काफी हद तक आदमी को शारीरिक व मानसिक बीमारियों से बचाकर रखते हैं। फिर भी यदि दवा लेने की आवश्यकता पड़े तो कुछ बातों का ध्यान रखें।

  • डॉक्टर की सलाह के बिना कोई दवा न लें।
  • दवा खरीदते समय बिल अवश्य लें तथा बिल पर लिखे दवा के विवरण को दवा की बैंकिंग पर लिखे विवरण से मिलान कर लें।
  • दवा को इस्तेमाल करने की अंतिम तिथि अवश्य पढ़ें तथा किसी भी हालत में अंतिम तिथि समाप्त हो जाने वाली दवा न खरीदें।
  • दवा पर आई. पी. (इंडियन फार्माकोपिया) बी. पी. (ब्रिटिश फार्माकोपिया) यू एस. पी. (अमेरिकन फार्माकोपिया) आदि के विवरण की उपस्थिति को चेक करें।
  • डॉक्टर को जहां तक संभय हो जानी-मानी कंपनियों की दवा ही लिखने के लिए कहें। इस बात का ध्यान रहे कि नई कंपनियों द्वारा दिए गए प्रलोभन के चक्कर में डॉक्टर आपके ऊपर नई दवा का परीक्षण भी कर सकता है।

यदि डॉक्टर द्वारा लिखी गयी दवा स्टोर में उपलब्ध नहीं है तो मेडिकल स्टोर की सलाह पर कोई अन्य दवा स्वीकार न करें तथा डॉक्टर की सलाह पर ही कोई अन्य वैकल्पिक दवा लें। नई कंपनियों द्वारा ऑफर किये गये अधिक कमीशन के प्रलोभन में विक्रेता आपको दूसरी कम्पनी की दवा देने की पेशकश कर सकता है।

  • देशी दवाओं के मामले में खासकर आयुर्वेदिक दवाएं ब्रांडेड कंपनियों की ही खरीदें।
  • वैद्य द्वारा अपने पास से दी गयी तेज असरदार आयुर्वेदिक दवा में अंग्रेजी दवा मिली हो सकती है, इस बात से सतर्क रहे।
  • दर्द निवारक, ताकत बढ़ाने वाली तथा मांस पेशियों को सुडौल करने वाली आयुर्वेदिक दवाओं में स्टीरॉयड मिले हो सकते हैं।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।