सरकार की नीतियों से परेशान है देश का किसान      Publish Date : 28/04/2025

       सरकार की नीतियों से परेशान है देश का किसान

लगभग तीन वर्ष पूर्व, मोदी सरकार के द्वारा लाए गए 3 कृषि कानूनों को वापस लेने की हुकार के साथ ही किसानों ने देश की राजधानी दिल्ली की घेराबंदी की थी। ‘दिल्ली चलो’ के नारे के साथ किसानों ने दिल्ली के बार्डर पर डेरा डाल लिया था, कारण, क्योंकि दिल्ली के अंदर जाने वाले सारे रास्तों पर पुलिस के द्वारा सीमेंट की दीवरों पर कील-कांटे जड़कर किसान और केन्द्र सरकार के बीच एक सॉल्डि दीवर खड़ी कर दी गई थी।

                                             

इस आंदोलन के दौरान लगभग एक वर्ष तक जाड़ा, गरमी और बरसात आदि को झेलते हुए किसान खुले में आसामन के नीचे ही बैठने को विवश थे और लगभग 700 किसानों की जान भी इस दौरान गई थी। हालांकि बावजूद इसके किसानों ने मोदी सरका को आखिकार झुका ही लिया और बेबस सरकार को वह तीनों काले कानूल वापस लेने पड़े, इन कानूनों के द्वारा किसानों को अपनी जमीन पर मजदूर बनाने के सारे इंतजाम मोदी सरकार ने कर दिए थे।

उस समय तो मजबूरी में मोदी सरकार को किसानों की मांग के आगे झुकना पड़ा, परन्तु इस आन्दोलन से कुछ और नए मुद्दे उठे, जिनको लेकर किसानों एकबार फि स दिल्ली कआर कूच किया। 

14 मार्च, 2024 को नई दिल्ली के रामलीला मैदान में देशभी के 400 से अधिक किसान संगठनों के लोग आयोजित महापंचायत में पहुँचे। इतनी बड़ी संख्या में किसानों का रेला देख सरकार ने दिल्ली के कई क्षेत्रों में धारा 144 लागू कर दी। हालांकि, किसानों ने किसी प्रकार कोई बेअदबी नहीं की और महापंचायत के बाद दोपहर के 3बजे रैली भी समाप्त हो गई। हालांकि इस महापंचायत ने सरकार को यह संदेश जरूर दिया कि सरकार के बरताव से किसान न केवल आहत हैं बल्कि आगामी लोकसभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को करारा सबक सिखने के लिए कमर भी कस चुके हैं।

महापंचायत के दौरान अपनी भड़ास निकालते हुए एसकेएम के नेता डॉक्टर दर्शन पाल ने कहा कि आगामी लोकसभा चुनाव में कसान भाजपा नेताओं को गाँवों घुसने भी नहीं देंगे, वहीं भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि इस महापंचायत के माध्यम से सरकार को यह संदेश मिल गया है कि किसान एक साथ हैं और भारत सरकार बातचीत के माध्यम से मुद्दों का समाधान करे, यह आंदोलन समाप्त नहीं होगा। जिस प्राकर से सरकासर ने बिहार को बरगाद किया, वहां की मण्ड़ियां ही खत्म कर दी, उसी प्रार पूरे देश को बरबाद करना चाहते हैं।

किसान नेताओं ने एसएमपी की गारंटी कानून लाने की मांग की और हरियाणा-पंजाब के शम्भु और खनौरी बार्डर पर बैठे किसानों पर पुलिस कार्यवाही की निंदा की।

असल में मोदी सरकार ने अपने करीबी उद्योगपतियों को लाभ पहुँचाने के लिए जिस प्रकार से किसानों की अनदेखी की आर उन्हें साजिशन गुलाम बनाने की कोशिशे की, उससे किसान पूरी तरह से बिखर चुका है। उद्योगपतियों के अरबों-खरबों रूपये के कर्ज माफ करने वाली सरकार किसानों की छोटी-छोटी मांगों को भी दरकिनार कर रही है।

केन्द्र सरकार की ओर से लागू की जा रही किसन-मजूदर विरोधी नीतियों के विरूद्व संयुक्त किसान मोर्चा निरंतर संघर्ष कर रहा है। आज भी अन्नदाता के वही पुराने मुद्दे हैं, जिन पर मोदी सरकार ध्यान ही नहीं दे रही है:

  • एमएसपी गारंटी कानून की वापसी।
  • स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को लागू किया जाए।
  • पिछले किसान आंदोलन के दौरान किसानों के विरूद्व दायर वाद वापस लिए जाएं।
  • पिछले किसान आंदोलन में अपनी जान गवां देने वाले किसानों को मुआवजा दिया जाए।
  • लखीमपुर-खीरी वाले मामले में दोषियों को सजा दी जाए।
  • भूमि अधिग्रहण कानून की किसान विरोध क्लॉजेज पर दोबारा विचार किया जाए।

किसान चाहते हैं कि सरकार स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करे। स्वामीनाथ आयोग के द्वारा किसानों को उनकी फसल की लागत का 1.5 गुना कीमत देने की सिफारिश की थी।

आयोग की रिपोर्ट को आए भी 18 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन एमएसपी पर सिफारिशों को अब तक भी लागू नहीं किया जा सका है। किसान बिजली कानून 2022 की वापसी करने का दबाव भी सरकार पर बनाए हुए हैं।

इसके अलावा भूमि अधिग्रहण और आवारा पशुओं की समस्या से भी किसान लगातार परेशान चल रहें हैं। आवारा पशु किसानी की खड़ी फसलों को बरबाद कर रहे हैं और इस समस्या का कोई समाधान अभी तक सरकार के पास नहीं हैं, इसके विपरीत सरकार किसन के हित में काम करने के स्थान पर उनकी जमीन को बड़े कारोबारियों के हाथों बेचना चाहती है। इसी नीयत से सरकार किसान-मजूदर विरोधी नीतियों को लागू कर रही है।

देश का किसान अपनी समस्त फसलों के लिए जल्द से जल्द एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कानूनी गारंटी चाहता है और किसानों के लिए कर्ज की पूर्ण माफी हो, क्योंकि जब उद्योगपतियों के कर्ज माफ हो सकते हैं, तो उसके सापेक्ष किसानों का कर्ज तो एक मामूली रकम है।

इसी प्रकार मनरेगा के तहत किसानों को खेती के लिए प्रतिदिन 700 रूपये की निश्चित मजदूरी और साल में 200 दिनों के रोजगार गारंटी भी चाहिए। यह करना सरकार के लिए कोई कठिन कार्य नहीं है, परन्तु सरकार की नीयत गरीबी को खत्म करने की नहीं बल्कि गरीबों को ही खत्म कर देने वाली हैं।