करूणा का वास्तविक अर्थ      Publish Date : 27/04/2025

                         करूणा का वास्तविक अर्थ

                                                                                                                                प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

जब हम एक किसी के प्रति ऐसा अति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हैं जो उसकी बुरी प्रवृत्तियों को समाप्त नहीं करता है तब चाहे हम इसे पसंद करें या नहीं लेकिन यह चीज उस व्यक्ति के लिए ठीक नहीं है। इसलिए कभी-कभी सद्गुणों की अति का मतलब स्वयं को धोखा देना भी होता है।

यज्ञ में बलि के लिए लाया जाने वाला बकरा अहिंसा का उदाहरण है। वह बिना कोई आवाज किए अपने आपको चाकू के नीचे समर्पित कर देता है। बलि देने वाले लोग ऐसे बेचारे अहिंसक जानवर को जिंदा रहने देने के बारे में सोचते भी नहीं। साथ ही, यह भी सच है कि यज्ञ में बाघ की बलि देने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता।

इसके सम्बन्ध में एक श्लोक जो इस प्रकार हैः

अश्वं नैव, गजं नैव, व्याघ्रं नैव च नैव च।

अजापुत्रं बलिं दद्यात् देवो दुर्बल घातकः।।

अर्थात, न तो अश्व को, न गज को, न बाघ को और न किसी और को ही कभी बलि चढ़ाया जाता है। यदि किसी को बलि चढ़ाया जाता है तो बेचारे अजापुत्र (बकरी के बच्चे) को। अतः दुर्बल के लिए तो देव भी घातक सिद्ध हो सकते हैं।

                                                

अहिंसा के इस परिणाम को देखिए। यह याद रखना चाहिए कि अगर दूसरे हमारे साथ अच्छा व्यवहार करते हैं, तो हमें हिंसा का सहारा नहीं लेना चाहिए। लेकिन दूसरों को अपने प्रति हिंसक होने देना ही हिंसा में लिप्त होने का मतलब है, तो यह गलत है। एक जैन संत अहिंसा के महत्व को इस प्रकार समझाते हैं- “जब कोई क्रूर शक्ति आपको नष्ट करने के लिए तैयार हो और यदि आप अहिंसा के नाम पर खुद की रक्षा करने की कोशिश भी नहीं करते हैं, तो आप उस दुष्ट शक्ति को हिंसा में लिप्त होने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। इस प्रकार से आप स्वयं इस तरह के अपराध के अपराधी हैं।”

वे आगे कहते हैं, ‘हम कैसे तय करें कि कोई कार्य हिंसा है या अहिंसा? इसका निर्णय उस कार्य के पीछे का उद्देश्य क्या है, इस पर निर्भर करता है न कि उस कार्य पर।

हमारे देश में महान व्यक्तियों ने ऐसे मामलों पर अपनी सलाह के माध्यम से हमारा मार्गदर्शन किया है। दूसरों के प्रति अत्यंत दयालु संत तुकाराम ने करुणा को इस प्रकार परिभाषित किया है- ‘जो जीवित प्राणियों की परवाह करता है वह करुणा है, और इसका अर्थ बुराई का विनाश भी है।’ आज अपने चारों ओर हमे देखने की आवश्यकता है कि अप्रत्यक्ष रूप से भी हम पर आक्रमण होते रहे हैं जिनका उत्तर हमे शक्ति से देना होता है।

जाति पंथ और क्षेत्र के नाम पर भेदभाव खड़ा करने का प्रयास क्या हिंसा नहीं है? क्योंकि इसका उद्देश्य तो विनाशक ही है। परिवार के मूल्यों पर होने वाले कुसंस्कार के हमले अप्रत्यक्ष हिंसा के बड़े रूप हैं। अतः हमे इनसे अपने समाज को बचाना होगा।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।