सामूहिकता      Publish Date : 21/04/2025

                          सामूहिकता

                                                                                                                           प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

हिंदू संस्कृति केवल मानवता के लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण संसार के लिए कल्याणकारी है, जिसमें संपूर्ण सृष्टि का चिंतन विद्यमान है। पीढ़ी दर पीढ़ी यह विचार युगानुकुल होते हुए आगे बढ़ता रहा इसमें सबसे बड़ी भूमिका हमारी सामूहिकता की है। हमारे घरों में छोटी सी प्रसन्नता के प्रसंग से लेकर गांव के बड़े उत्सव तक सामूहिक रूप से ही मनाए जाते हैं। किसी के वैभव के लिए उसके भौतिक साधनों की चर्चा तो की जाती है लेकिन उसके सुख या दुख के समय कितने बड़े समूह ने प्रत्यक्ष उपस्थित रहते हुए सहभागिता की यह अधिक महत्व की चर्चा होती है। अर्थात आपके पास कितना बड़ा मानव समूह उपलब्ध है यह भी समाज में सम्मान प्राप्त करने का एक पैमाना माना जाता है। समूह किसी के साथ तभी रह सकता है जब उसके स्वभाव में सामूहिकता के चिंतन का प्रकाश हो।

कलियुग के बारे में कहा जाता है कि कोई एक व्यक्ति कितना भी अच्छा क्यों न हो यदि वह चिंतन से लेकर निर्णय तक की प्रक्रियाओं को अकेले ही करता है तो वह निश्चय ही और शीघ्र ही गलतियां करना शुरू कर देगा, तो वहीं बहुत बुरा व्यक्ति भी यदि सभी बातों पर सामूहिक चर्चा से आगे बढ़ना शुरू कर दे तो वह भी अपने अच्छे निर्णयों से लोकप्रिय होना प्रारंभ हो जाता है। जिस परिवार में इसका अभाव होता है वह परिवार दुख प्राप्त कर रहा है, जिस समाज के इसका अभाव है वह समाज अनेकों गुणों से युक्त होते हुए भी पराभव को प्राप्त करता है।

सामूहिकता एक स्वभाव है जो हमें दूसरों का सम्मान करने और उनके विचारों को स्वीकार करने के लिए विवश करती है। हमे अपने आस पास दिखाई देता है कि जिन लोगों में सामूहिक चिंतन और विचार की प्रक्रिया चलती है वे अनेक दुर्गुणों से युक्त होते हुए भी शक्तिशाली होते हैं, ऐसी शक्ति से समाज को सुरक्षित रखने के लिए सद्गुणों से युक्त लोगों को सामूहिक प्रक्रियाएं चलानी होंगी, यही अपने समाज और राष्ट्र की सुरक्षा तथा आगे बढ़ने का मार्ग होगा।

लेखकः प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, निदेशक प्रशिक्षण, सेवायोजन एवं विभागाध्यक्ष प्लांट बायोटेक्नोलॉजी संभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।