
जीवन के शाश्वत प्रवाह का निर्माण Publish Date : 02/04/2025
जीवन के शाश्वत प्रवाह का निर्माण
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
हमारा जीवन दो प्रकार का है, एक तो हमारी रोजमर्रा की आवश्यकताओं से युक्त हमारा निजी पारिवारिक जीवन और दूसरा हमारा अपने समाज के साथ राष्ट्रीय जीवन। हालांकि, कभी कभी ऐसा भी प्रतीत होता होगा कि यह दोनों अलग अलग हैं, लेकिन यह दोनों किसी भी प्रकार से एक दूसरे से अलग नहीं हो सकते। यह हो सकता है कि दोनों हमे एक साथ दिखाई नहीं दें।
कभी कभी ऐसी परिस्थितियां बन जाती होती हैं, जब व्यक्तिगत जीवन के लिए जो लाभदायक लग रहा है वह राष्ट्रीय जीवन के लिए हानिकारक सिद्व हो सकता है, लेकिन यह एक तात्कालिक अनुभूति है, दीर्घ कालिक की दृष्टि से ऐसा नहीं होगा। जैसे अपने जीवन में कभी कोई सरकारी काम जिसको कानून सम्मत करने से अधिक मूल्य (धन और समय के संदर्भ में) चुकाना पड़ता है। वही कार्य भ्रष्टाचार के मार्ग से कम मूल्य में हो जाएगा।
यह हमारे व्यक्तिगत जीवन के लिए लाभदायक है लेकिन राष्ट्रीय जीवन की दृष्टि से बहुत बड़ी समस्या का पोषण करने वाला होगा और यदि यह राष्ट्रीय समस्या पोषित होती गई तो एक दिन हमारे निजी जीवन को बहुत अधिक प्रभावित करती हुई हानि पहुंचाएगी। हमारे राष्ट्र की सभी समस्याओं का समाधान कुछ ही समय में हो सकता है, यदि हमारा जीवन निःस्वार्थ प्रेमपूर्ण व्यवहार बन जाए।
लेकिन यदि हम अस्थायी मुद्दों के पीछे भागते रहेंगे, तो राष्ट्रीय स्तर पर मौजूद महत्वपूर्ण समस्याएं कभी हल नहीं हो सकतीं। जब हम रोजमर्रा की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करते हैं, तो हमें कुछ सार्थक करने का संतोष अवश्य मिलता है। ऐसा इसलिए हो सकता है, क्योंकि जो लोग ऐसे मामलों पर ध्यान नहीं देते, उन्हें अक्सर निष्क्रिय होने का दोषी ठहराया जाता है।
किसी छोटे बच्चे को देखें, वह एक वस्तु के पीछे भागता है और फिर एक अन्य वस्तु दिखने पर वह उसके पीछे भागना शुरू कर देता है । कहीं हमारा जीवन भी ऐसे ही आकर्षणों से घिर कर एक तरफ से दूसरे तरफ भाग तो नहीं रहा है? ऐसा तो नहीं कि हमारी ऊर्जा का बहुत बड़ा हिस्सा इसी भागदौड़ में नष्ट हो रहा है। जहां भी लोग सतही समस्याओं पर विचार करते हैं, वहां परिणाम केवल बिना किसी ठोस कार्य के इधर-उधर भागने के जैसा ही होता है ।
जब समय का पहिया धीरे-धीरे घूमता है, तो हम उसके सभी स्पोक को स्पष्ट रूप से घूमते हुए देख सकते हैं। लेकिन जब यह बहुत तेज़ गति से घूमता है, तो यह एक ठोस डिस्क की तरह दिखाई देता है। अर्थात बहुत तेज गति होने से स्थितता का आभास तो होता है लेकिन जैसे ही उसके छूने का प्रयास करते हैं, तो वह हमें नुकसान पहुंचती है। आज मनुष्य का जीवन भी कुछ ऐसा ही हो गया है, शरीर से लेकर मन और बुद्धि तक स्थित दिखाई दे रहा है लेकिन क्या वह वास्तव में स्थित है? यह चिंतन का विषय है।
पहाड़ों में छोटी-छोटी नदियाँ बहुत तेज़ गति से बहती हैं और बहुत शोर मचाती हैं। लेकिन गंगा नदी, जो इन नदियों से हज़ार गुना बड़ी है, शांत होकर बहती है। इसका पानी गर्मी और बरसात दोनों मौसम में स्थिरता के साथ बहता है। जब व्यक्तिगत जीवन की धाराएं राष्ट्रीय जीवन में विलीन होती हैं तो उसमें छोटी-छोटी लहरें सामाजिक जीवन के ताने-बाने को नुकसान नहीं पहुँचा सकतीं। अतः हमें सामाजिक कार्य में दृढ़ विश्वास के साथ अपनी उचित भूमिका निभानी चाहिए।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।