एकता ही है देशभक्ति का आधार      Publish Date : 31/03/2025

                 एकता ही है देशभक्ति का आधार

                                                                                                                          प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

हमारे पास ऐसे कई आदर्श लोगों की जीवन गाथाएँ उपलब्ध हैं जो हमारे पूर्वजों के महान मूल्यों को दर्शाती हैं। जैसे कि अनुरोध किए जाने पर, महर्षि दधीचि ने अपने जीवन की परवाह किए बिना अपने शरीर की सभी हड्डियाँ दान कर दीं। उन्होंने आक्रमणकारियों को नष्ट करके दूसरों की रक्षा के लिए ऐसा किया और इस तरह सामाजिक कल्याण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई। महाराज शिबि ने एक कमज़ोर पक्षी की जान बचाने के लिए अपने शरीर से उसके वजन के बराबर मांस काटकर शिकारी को दे दिया। ऐसे लोग ही आज भी हमारे आदर्श हैं। उन्हें अपने जीवन की कोई लालसा नहीं थी, बल्कि उन्होंने पूरे मन से समाज के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।

                                                        

हमारे देश का सामाजिक ताना-बाना ऐसे अनेक लोगों के उदाहरणों से बुना गया है, जिन्होंने समाज की भलाई के लिए स्वयं को पूरी तरह समर्पित कर दिया। ये हमारी संस्कृति में निहित आदर्शों और सिद्धांतों को दर्शाते हैं। ऐसे ही भगत सिंह और चन्द्रशेखर जैसे अनेक क्रॉन्तिकारियों हमें दिखाया है।

ऐसे में हमें अनेकता में एकता के सिद्धांत को गहराई से समझने और उसे अपने हृदय में आत्मसात करने के लिए कठोर प्रयास करने होंगे। अपने दैनिक जीवन की कटु सच्चाई को समझना होगा कि क्या हम इस मार्ग पर बढ़ रहे हैं। हमें अपने भीतर व्याप्त एकांत के तत्व को भी पहचानना होगा और इसे स्वयं के अंतकरण में दृढ़तापूर्वक स्थापित करना होगा, तभी हम अपने समाज के प्रति करुणा और आत्मीयता का अनुभव करेंगे और इसी बात से हमारे भीतर राष्ट्रभक्ति की भावना हर्षोल्लास के साथ प्रवाहित होगी।

हमारे सामने अक्सर इस प्रकार के प्रश्न आते हैं: जैसे हमें अपने राष्ट्र की पूजा क्यों करनी चाहिए? दूसरे लोगों के सुख-दुख से हम अपने आपको क्यों परेशान करें? इसके लिए हमें अपने समाज के लोगों के बीच एकात्मता और समानता की भावना का अनुभव करना चाहिए। सोचिए कि क्या हमारा अस्तित्व इस समाज के बिना संभव है। जब हम इन प्रश्नों के उत्तर जान पाएंगे और इससे हमारा जीवन बदल ही जाएगा।

हम अपने आपको स्वार्थी और तुच्छ विचारों तक ही सीमित नहीं रख सकते, क्योंकि यह हमारी संस्कृति में निहित जीवन पद्धति है। हमें व्यक्तिगत महानता और प्रतिष्ठा की चाहत तो अवश्य ही रखनी चाहिए, परन्तु इसके आकर्षणों में स्वयं को पराधीन नहीं बनाना चाहिए, बल्कि प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाला पुरुषार्थ करते हुए इससे और अधिक ऊपर उठना चाहिए।

                                                   

यह हमारा दृढ़ विश्वास ही है कि व्यक्ति समाज से अलग नहीं हो सकता, बल्कि वह समाज का एक अभिन्न अंग होता है। हमारे आसपास के वातावरण में होने वाला परिवर्तन हमें इस विश्वास से कभी नहीं डिगा सकता। हमारी संस्कृति हमें सिखाती है कि निस्वार्थ और स्नेहपूर्ण व्यवहार, वह प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से हम अपने राष्ट्र को चिरस्थायी गौरव प्रदान कर सकते हैं।

यदि हम अपनी संस्कृति के अनुसार राष्ट्र प्रेम और राष्ट्र के प्रति शाश्वत गौरव की अविरल धारा को प्रवाहित करना चाहते हैं, तो सभी में अपनत्व का दर्शन करना ही इसका एकमात्र आधार है और निस्वार्थ स्नेहपूर्ण व्यवहार ही इसका एकमात्र उपाय है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।