
आज युद्ध का स्वरूप Publish Date : 28/03/2025
आज युद्ध का स्वरूप
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
वर्तमान समय में विश्व में जैसी परिस्थितियां बन रही हैं उसमें अपने देश को कैसे आगे बढ़ना जाना चाहिए यह चिंतन हम सभी के मन में भी चलता ही रहता है। अमेरिका ने अपने यहां आयात शुल्क बढ़ा दिया है तो इसके बदले में चीन ने कुछ अमेरिकी कंपनियों को या तो प्रतिबंधित कर दिया है या उन पर अतिरिक्त कर लगा दिया है। अमेरिका भारत के व्यापारिक संबंध में भी यह बातें हम सुन ही रहे हैं। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि हमें अमेरिका से बात करके अपने सामान के निर्यात का आग्रह करना चाहिए क्या? तो वहीं अमेरिका अपने हितों के साथ कोई समझौता करने को तैयार नहीं है।
इस पर जापान की वह स्थिति ध्यान में आती है जब जापान के नागरिकों ने अमेरिकी संतरे खरीदने और खाने से मना कर दिया था और इसके चलते अमेरिकी संतरे सड़ गए। आज हमारे पास भी उपभोक्ताओं का बहुत बड़ा बाजार उपलब्ध है। उत्पादन के लिए सबसे अधिक युवा मानवशक्ति, ऐसी परिस्थिति में यदि हमारा समाज स्व के भाव से उठकर खड़ा हो जाय और यह प्रण कर ले कि अपने देश में निर्मित सामान ही खरीदेंगे और अपने देश में ही अपनी प्रतिभाओं को बढ़ाते हुए विश्व का सर्वाधिक गुणवत्ता युक्त सामान बनाएंगे जिसको लेने के लिए दुनिया लालायित रहे, तो निश्चय ही दुनिया हमारी शर्तों पर व्यापार के लिए बाध्य होगी। लेकिन इस परिवर्तन के लिए भारत की प्रतिभाओं को भारत के लिए ही अपनी प्रतिबद्धता दिखानी होगी।
आज के युग में युद्ध का एक स्वरूप यह भी है। ज़ब व्यापारिक समझौते और प्रतिबंधों के द्वारा किसी देश को बड़ी हानि पहुंचाई जा सकती है। देशभक्ति का एक बड़ा प्रकटीकरण आज यह भी लगता है, क्योंकि शस्त्रों को चलाने से अधिक शस्त्रों के निर्माण का युद्ध चल रहा है। हम सभी देशों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं, लेकिन हमें भी अपनी अजेय सुरक्षा के साथ अपनी स्थिति को मजबूत करने की आवश्यकता है। यह हमें खुद की रक्षा करने और अपनी सुरक्षा के लिए दूसरों के सामने आत्मसमर्पण न करने के लिए सशक्त बनाएगा।
किसी की दया पर रहना और दूसरों के साथ अपमानजनक समझौता करना गुलामी का एक रूप है। हमें इतना मजबूत बनना चाहिए कि दुनिया हमारी कृपा की लालसा करे। हम दया दिखाएँगे और जिन्हें हम दया के योग्य नहीं समझते हैं, उन्हें दरकिनार कर देंगे। यह सब हमारी मजबूत देशभक्ति के आधार पर ही होगा। जब तक ऐसा नहीं होता, हमें एक शक्तिशाली राष्ट्र की कल्पनाओं मात्र से ही संतुष्ट रहना होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक मजबूत, प्रखर, सुव्यवस्थित, गतिशील और परम देशभक्तिपूर्ण विश्वास का अमृत लेकर आता है। हमें बस इस मिशन को पूरा करने के लिए प्रयास करने की जरूरत है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।