प्रेम युक्त जीवन      Publish Date : 05/03/2025

                           प्रेम युक्त जीवन

                                                                                                             प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

रवींद्रनाथ टैगोर जी ने कहा प्रेम ही जीवन है, तो महात्मा गांधी ने प्रेम को ईश्वर का रूप कहा है और महर्षि वेदव्यास ने तो प्रेम को सबसे बड़ा बंधन कह कर प्रेम के महत्व को परिभाषित किया है। जब प्रेम ही सब कुछ है अर्थात सभी प्रकार के सुखों का आधार है तो क्या हमारे जीवन का कोई क्षण प्रेम के बिना संभव होगा? प्राण वायु के बिना जीवन क्षणिक हो जाता है इसलिए हम वर्ष में या माह में कभी एक बार ही बहुत अधिक प्राण वायु ले लें तो क्या पूरे सप्ताह/माह अथवा वर्ष भर हम जीवित रह पाएंगे? बिल्कुल नहीं! तो फिर जिस प्रेम को ही जीवन कहा गया है उसे प्रकट करने के लिए किसी दिन विशेष की आवश्यकता क्यों?

                                               

संतानों का अपने माता पिता के प्रति, भाई बहनों के प्रति, मित्र और  प्रकृति के प्रति प्रेम की अनुभूति सदैव रहनी चाहिए तभी यह चराचर जीव जगत सुखी और प्रसन्न रहेगा। जहां से प्रेम कम होता है वहां ईर्ष्या और द्वेष स्थान की पूर्ति करने में लग जाते हैं और जैसे जैसे ईर्ष्या और द्वेष आने लगते हैं दुखों का अंबार भी आना शुरू हो जाता है। प्रेम साक्षात् ईश्वर का स्वरूप है और हम उसी ईश्वर के अंश हैं, हमारे हृदय में प्रेम हो तो ईश्वर का वास होता है लेकिन यदि हृदय में प्रेम न हो तो देवत्व के स्थान पर दानवी स्वभाव अपना स्थान बनाने लगता है।

विचार का विषय यह है कि हम अपने जीवन का कोई भी क्षण क्या असुरों की तरह जीना चाहेंगे? यदि नहीं तो हमारे हृदय सदैव प्रेम से युक्त होने चाहिए, अतः प्रेम के लिए कोई दिन विशेष नहीं हो सकता बल्कि प्रेम ही हमारे दिनों को विशेष बनाता है। अपनी संस्कृति देवों की संस्कृति ही इसलिए हम उन परंपराओं का अवलंबन क्यों करें जो हमें स्वयं से ही दूर कर दे।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।