भारत में कृषि आधारित उद्योग और कृषि      Publish Date : 03/03/2025

            भारत में कृषि आधारित उद्योग और कृषि

                                                                                             प्रोफेसर आर. एस. सेंगर, डॉ0 कृशानु एवं आकांक्षा

उद्योग के लिए निवेश कृषि आधारित उद्योगों के लिए अपेक्षित कच्चा माल प्रायः कृषि सेक्टर से ही प्राप्त किया जाता है। सभी प्रौद्योगिकीय और वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद उद्योगों के लिए कृषि सेक्टर से कच्चा माल, जैसे कपास, जूट और गन्ना आदि की पर्याप्त आपूर्ति प्राप्त करना संभव नहीं हुआ है। इसके अलावा, जैसा कि हम अब भली-भांति जानते हैं, (औद्योगिकीकरण में वृद्धि के फलस्वरूप) इस संक्रातिकाल के वर्षों में कृषि सेक्टर से अतिरिक्त श्रमिकों को निकाल कर श्रमिकों के लिए बढ़ती हुई मांग पूरी करना आवश्यक है। जैसे.जैसे अधिकाधिक कामगार कृषि से छोड़े जाते कृषि और आर्थिक वृद्धि कृषि और आर्थिक विकास हैं, वैसे-वैसे कृषि में शेष कामगारों के लिए खाद्य आपूर्तियों को बनाए रखने के लिए अपनी उत्पादिता को बढ़ाना आवश्यक हो जाता है।

                                             

इस प्रकार उद्योग और कृषि दोनों के लिए आदान वृद्धि के प्रभाव परस्पर संवर्धक हो जाएंगे। कृषि उत्पाद बढ़ने से प्राप्त अधिक आय के कारण मांग पर भी भिन्न प्रभाव होगा। इस प्रकार कृषि निष्पादन उत्पादन प्रभाव और व्यापार की शर्तों के प्रभाव से औद्योगिक माल की मांग प्रभावित हो सकती है। वास्तव में यह उन आवश्यक शर्तों में से एक है जिससे अर्थव्यवस्था अपनी आत्मनिर्भर संवृद्धि की प्रक्रिया के लिए तैयार होती है। उससे पहले ही इसे पूरा किया जाना चाहिए।

उद्योग पर कृषि की निर्भरताः उपर्युक्त समीक्षा में कृषि विकास नीतियों और कार्यक्रमों को औद्योगिक विकास की नीतियों और कार्यक्रमों से सामंजस्य स्थापित करने के महत्त्व को रेखांकित किया गया है। इस पर पुनः बल देने के लिए हम भिन्न तरीकों की सूची बना सकते हैं जिनमें कृषि की प्रगति के लिए उद्योग योगदान करता है।

उर्वरक, कीटनाशक दवाइयों और यहां तक कि जल सहित अधिक आधुनिक आदान उद्योगों के माध्यम से ही उपलब्ध कराए जाते हैं। उद्योग फार्मों पर अपेक्षित मशीनरी सप्लाई करता है।

                                             

कृषि इंजीनियरी उद्योग की महत्त्वपूर्ण शाखा है। अधिकांश अनुसंधान, जो भारत में ‘‘हरित क्रांति’’ पूरा करने कि लिए किये गये थे, वह ऐसे आरंभ किये गये कि औद्योगिक संस्कृति के रूप में उन पर वर्णन किया जा सकता है। उद्योग कृषि की प्रगति के लिए अपेक्षित आवश्यक आधारभूत संरचना तैयार करने में सहायता करता है। यह परिवहन, और संचार, व्यापार और वाणिज्य, बैंकिंग और विपणन की सुविधाओं आदि के रूप में हो सकता है। उद्योग बढ़ती हुई जनसंख्या और कृषि सेक्टर में आय वृद्धि के फलस्वरूप ग्रामीण क्षेत्र में उपभोक्ता माल के लिए बढ़ती हुई मांग को पूरा करने में सहायता प्रदान करता है। संक्षेप मे, आर्थिक विकास और संरचनात्मक रूपांतरण के दौरान कृषि और उद्योग के बीच पारस्परिक संपूरक स्वरूप का समर्थन करना ही युक्ति संगत है।

                                                  

संसाधनों, उत्पादों और कारकों की अंतःक्षेत्रीय मांग और पूर्ति का सापेक्षित बल न केवल विकास की गति निश्चित करता है, बल्कि वृद्धि की अवस्था की अभिव्यक्ति भी करता है। परन्तु सेक्टरों के बीच ऐसे संबंध भी हैं कि धारणीय विकास के लिए कृषि उत्पादकता में वृद्धि पहले होनी चाहिए और बाद की अवस्थाओं में गैर.कृषि सेक्टरों का विकास सतत् बनाए रखा जाना चाहिए।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।