
एक विवेकशील मन और मजबूत शरीर का होना Publish Date : 27/02/2025
एक विवेकशील मन और मजबूत शरीर का होना
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
हमें इतना मजबूत होना चाहिए कि कोई भी ताकत हमें डरा न सके या दबा न पाए। एक मजबूत और दृढ़ शरीर ही हमारी सबसे उत्तम सुरक्षा है। हमारे भगवान भी कभी कमजोर या लाचार जैसे रूप में नहीं बल्कि हमेशा मजबूत मानव के आकार में हमारे सामने प्रकट हुए। हमारे धार्मिक ग्रंथ भी दुश्मन पर विजय पाने के लिए एक मजबूत शरीर की आवश्यकता पर सदैव ही जोर देते हुए आए हैं। शक्ति जीवन है और कमजोरी मृत्यु। स्वामी विवेकानंद ने कहा, “मुझे लोहे और स्टील की नसें चाहिए।”
अगर वह अपने किसी साथी छात्र को रोते हुए देखते तो वह उस पर चिल्लाते, “तुम कमजोर हो और रोते हो।” शास्त्र कहते हैं ‘‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्य’’।
हमारा शरीर ही हमारे धर्म अर्थात कर्तव्यों को अच्छी तरह से निभाने का एक साधन बनता है। कमज़ोर शरीर किसी भी काम का नहीं है। भगवान कमज़ोरों का साथ कभी भी नही नहीं देते। अगर आप प्रार्थना करते समय आप काँपते हैं और आपकी रीढ़ की हड्डी में दर्द होता है, तो ऐसे में भगवान नहीं, बल्कि बीमारी ही आपके पास आएगी। हमारे युवकों को सुंदर त्वचा से आगे बढ़कर अच्छे खान-पान और व्यायाम जैसी आदतों को अपना कर अपने शरीर को स्वस्थ बनाना चाहिए और इस तरह सांसारिक (सूर्य, सर्दी, हवा, भूख आदि) तत्वों के खिलाफ़ स्वयं को मजबूती से तैयार करना चाहिए।
थोड़ी देर के लिए सोचें कि हमारे पास एक मजबूत शरीर है, और एक स्वच्छ और प्रतिबद्ध मस्तिष्क है। इसी तरह हमें जीवन की जटिलताओं को समझने और सुलझाने के लिए तेज बुद्धि भी विकसित करनी होगी।
इस तरह के विवेक के बिना किसी भी मात्रा में ऊर्जा और किसी भी तरह की अच्छाई का कोई उपयोग नहीं किया जा सकता। हमारा इतिहास बताता है कि विवेक के अभाव में हम पर कई विपत्तियाँ आई हैं। किसी भी कमजोर राष्ट्र का उत्थान करना कोई आसान काम नहीं है। आज के समय में हम सभी धूर्त और विश्वासघाती लोगों से घिरे हुए है, विभिन्न विज्ञापनों के द्वारा बहुत खराब बातें भी हमारे सामने ऐसे प्रस्तुत की जाती रहती हैं, जैसे उनके बिना हमारा जीवन चलेगा ही नहीं। वास्तव यह एक धूर्तता से भरा का उदाहरण मात्र है।
दुनिया के कुछ सामान्य तरीकों को सीखने के लिए किसी भी असाधारण बुद्धि की आवश्यकता नहीं होती है, यहाँ तक कि एक साधारण व्यक्ति भी यह सब सीखकर सतर्क हो सकता है। अतः हमें अपने जन्मजात ज्ञान पर विश्वास को विकसित करना और इसका सही उपयोग करना सीखना ही होगा, इसे उपरांत ही हम सही तरीके से विकसित हो सकेंगे।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।