दलहन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर भारत      Publish Date : 24/02/2025

          दलहन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर भारत

                                                                                                                                    प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी

वर्तमान में साल दर साल दलहन के आयात पर निर्भरता कम होने से हर्ष होता है। इसके सम्बन्ध में यदि वर्ष 2022-23 की बात करें तो देश में इस वर्ष 26 मिलियन टन दलहनी फसलों का उत्पादन (सीएमआईई के आंकड़ों के अनुसार) हुआ और परिणामस्वरूप देश को केवल 2.5 मिलियन टन दलहन का आयात ही करना पड़ा। इसके सम्बन्ध में यदि पिछले दस वर्षों के आंकड़ों को देखें तो दाल के आयात में वर्ष दर वर्ष गिरावट आने के रूझान मिल रहे हैं।

                                                          

यहां यह उल्लेख करना भी आवश्यक है कि किसी समय दलहन के घरेलू उत्पादन का लगभग एक तिहाई आयात करना पड़ता था, जिससे कि घरेलू माँग की आपूर्ति उचित रूप से की जा सके।

सरकार की ओर से दलहन उत्पादकों को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से हाल ही में घोषणा की गई है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर समस्त दलहन उपज की सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीद की जाएगी। इसके साथ ही यह भी आशा जताई गई है कि वर्ष 2027 तक देश दलहन उत्पादन में पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर हो जाएगा। अरहर खरीद से संबंधित एक पोर्टल भी इस क्रम में जारी किया गया है। यह भी बताया गया है कि इस पैटर्न पर उड़द और मसूर दालों की खरीद पर आधारित पोर्टल भी शीघ्र लांच किया जाएगा।

                                                                    

हमारे दैनिक आहार में अनाजों के बाद दालों का दूसरा महत्वपूर्ण स्थान है। भारत में अधिकतर लोग शाकाहारी हैं, इसलिए यहां पोषण की दृष्टि से दालों की काफी उपयोगिता है। सामान्यतः दलहन की खेती सीमांत, असिंचित एवं कम गुणवत्ता वाली भूमि पर की जाती है। इसके अतिरिक्त दालों के कुल क्षेत्रापफल का मात्रा 15 प्रतिशत ही सिंचित है।

अभी तक नई प्रौद्योगिकियों का विशेष प्रभाव दलहनों की खेती में नहीं देखा गया, जबकि खाद्यान्न फसलों की खेती में बेहतर उपज देने वाली किस्मों एवं अन्य तकनीकियों में व्यापक बढ़त हुई है। दालों की बेहतर किस्मों से उपज से सम्बन्धित ज्ञान प्रसार अभी सीमित ही है और किसान के खेतों पर उपज के अच्छे परिणाम हिदखई नही दे रहे हैं। इसके प्रभाव से दोनों के मध्य उत्पादकता के स्तर पर खाई निरंतर बढ़ती जा रही है।

इसके अतिरिक्त भारत में दलहन से संबंधित दिलचस्प तथ्य यह भी है कि भारत दलहन का विश्व का शीर्ष उत्पादक है और वैश्विक दलहन उत्पादन का लगभग 25 प्रतिशत उत्पादन करता है। इसके साथ ही यह दलहन का सबसे बड़ा उपभोक्ता देश भी है और वैश्विक खपत की 27 प्रतिशत खपत यहीं होती है। वर्तमान में देश के लगभग 20 प्रतिशत कृषि क्षेत्र में दलहन की खेती की जाती है।

सरकार की ओर से समय समय पर दलहन उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए नई योजनाएं क्रियान्वित की जाती रही हैं। इसी उद्देश्य से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-दलहन का भी देश के 28 राज्यों तथा 2 केंद्र शासित प्रदेशों में आयोजन किया जा रहा है। इसमें कृषकों को खेतों पर प्रशिक्षण देने एवं प्रदर्शन करने के साथ संकर बीजों का वितरण, पादप संरक्षण उपाय, दालों के नए बीज, मिनी किट का वितरण, केवीके द्वारा तकनीकी प्रदर्शन आदि की सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं।

                                                               

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के तीसरे अग्रिम आकलन और भारतीय उद्योग परिसंघ की वर्ष 2010 की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1951 से वर्ष 2008 तक दालों का उत्पादन 45 प्रतिशत तथा पिछले दशक में वर्ष 2000 से 2021 के बीच 65 प्रतिशत तक बढ़ा है। इससे यह संकेत प्राप्त होता है कि दलहन उत्पादन की दिशा में सही रणनीतियाँ अपनाई जा रही हैं। ऐसे में आशा की जा सकती है कि दलहन के मामले में देश शीघ्र ही न केवल आत्मनिर्भरता की स्थिति में होगा बल्कि वह दलहनों के निर्यात करने की स्थिति में भी होगा।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।