
वीरों की यह दुनिया Publish Date : 22/02/2025
वीरों की यह दुनिया
प्रोफेसर आर. एस. सेगर
हमारे बीच कुछ सर्वज्ञ बुद्धिजीवी होते हैं जो तर्क देते रहते हैं कि हमें किसी से किसी प्रकार का कोई खतरा नहीं मानना चाहिए, इसलिए उनके अनुसार वीरता का कोई औचित्य ही नहीं है। वे ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि जिस विचार से वे पोषित हुए हैं उसमें मनुष्य का पूरा चिंतन केवल अपने शरीर तक ही सीमित होता है। परन्तु वे यह नहीं समझते कि इस शरीर को यदि कोई संकट आकर घेर कर खड़ा हो जाय तब केवल वीरता ही इससे निपटने में सहायक होती है और यदि संकट बहुत बड़ा हो तो ऐसे अनेक वीरों की वीरता को मिलकर लड़ना होता है, तब उनका स्वयं स्वतंत्र जीवन की संकल्पना काम नहीं करती। ऐसे लोग राष्ट्र को धूल और मलबे से बना हुआ मानते हैं क्योंकि उनकी दृष्टि में बुद्धि ही सर्वाेच्च है और उनके बुद्धिमान तर्क में राष्ट्र धरती का एक मृत टुकड़ा मात्र होता है।
बुद्धि की अपनी सीमाएँ होती हैं। यदि मनुष्य का शरीर केवल पदार्थ से बना है, और यदि माँ का दूध केवल इसी पदार्थ का उत्पाद है, तो कोई भी महिला किसी भी रोते हुए बच्चे को शांत करा सकती है, लेकिन व्यवहार में यह कहीं भी दिखाई नहीं देता है। ऐसे में इन बुद्धिवादियों के पास इस बात का कोई उत्तर नहीं है।
हमारा राष्ट्र किसी ईश्वर के अवतार की तरह ही है, इस श्रद्धा की पारंपरिक अभिव्यक्ति राष्ट्र के प्रति समर्पण और राष्ट्र पर किसी संकट के समय वीरोचित व्यवहार से ही होती है और अधिकांश लोग ऐसा ही करते भी हैं। हमारे मन में अपने राष्ट्र के अपमान को सहने का साहस नही होना चाहिए। इस संसार में पराक्रम के बिना सब सद्गुण व्यर्थ है।
हम सद्गुणी, धर्मपरायण और सभ्य थे, फिर भी पिछले हजार वर्षों में बाहरी आक्रमणों ने हमें कुचल दिया। आक्रमणकारियों में रत्ती भर भी ऐसे उच्च सद्गुण नहीं थे। लेकिन उनमें साहस, एकता और विजय प्राप्त करने की महत्वाकांक्षा थी। हमारा इतिहास इस बात का पर्याप्त प्रमाण देता है कि शैतानी आक्रमणकारियों को तभी परास्त किया जा सकता है और दबाया जा सकता है, जब हमारे सद्गुणों में वीरता निहित हो।
देवताओं में दैवी सद्गुण थे, फिर भी संगठित शैतानी शक्तियों ने उन्हें परास्त कर दिया। देवताओं ने शैतान को तभी कुचला, जब वे वीर बने। गतिशीलता, साहस और दृढ़ कार्रवाई से सर्वाेच्चता स्थापित होती है। इसलिए ठीक ही कहा गया है कि वीर ही पृथ्वी के स्वामी होते हैं और यही सफलता का रहस्य भी होता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।