
गोबर की खाद का उत्पादन वैज्ञानिक विधि से Publish Date : 18/02/2025
गोबर की खाद का उत्पादन वैज्ञानिक विधि से
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 कृशानु
रासायनिक खादों के अनावश्यक और अत्यधिक प्रयोग करने से मृदा की उर्वराशक्ति धीरे-धीरे कम होती जा रही है। इसका प्रयोग करने से मृदा में उपस्थित सूक्ष्मजीवों की गतिविधि पर दुष्प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त रासायनिक खादों का मूल्य अधिक होने के कारण किसानों को खाद्यान्न उत्पादन पर ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ता है।
इसके विपरीत गोबर की खाद जिसे ‘फार्म यार्ड मैन्योर’ भी कहते है। यह गोबर, पशुओं के मूत्र, छोड़ा हुआ तूड़ा इत्यादि के सही गलने और सड़ने से बनती है। सस्ती होने के साथ-साथ यह मृदा में सभी प्रकार के मुख्य पोषक तत्वों जैसे-नाइट्रोजन, पफॉस्पफोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर व सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे-आयरन, मैंग्नीज, कॉपर और जिंक, पौधों की वृद्वि के लिए आवश्यक होते हैं आदि भी प्रदान करती है। यह खाद मृदा की भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताओं में भी पर्याप्त रूप से वृद्वि करती है। इसके साथ ही यह मृदा की जल-धारण क्षमता को भी बढ़ाती है।
किसान, गोबर की खाद बनाते समय पशु मूत्र का प्रयोग बहुत कम मात्रा में करते हैं। पशु मूत्र में 1 प्रतिशत नाइट्रोजन और 1.35 प्रतिशत पोटेशियम होता है। पशु मूत्र में उपस्थित नाइट्रोजन, यूरिया के रूप में उपलब्ध होता है, जो गैस के रूप में उड़ जाती है। इसके साथ ही स्टोर करने के समय गैस के रूप और नीचे जाने के कारण नाइट्रोजन कम हो जाता है। अतः किसानों को गोबर की खाद सही तरीके से बनाने के लिए ट्रेंच खोदनी चाहिए।
पशु मूत्र को सोखने के लिए तूड़ा, मिट्टी इत्यादि को पशुओं के मूत्र पर डाल दिया जाता है। अगले दिन इस मिश्रण को गोबर समेत ट्रेंच या गड्ढ़े डाल दिया जाता है। प्रतिदिन इस गड्ढ़े में एक ओर पशुओं का गोबर, मूत्र एवं व्यर्थ तूड़ को डालना चाहिए और गड्ढ़े का यह भाग जब भूमि के तल से 45 से 60 से.मी. ऊँचा हो जाए तो इसे गोलाकार रूप में गाय के गोबर और मिट्टी की सहायता से लीपकर बन्द कर देना चाहिए।
इस प्रकार से एक गड्ढ़े के भर जाने के बाद दूसरा गड्ढ़ा खोद कर फिर से यही प्रक्रिया दोहरानी चाहिए। इस प्रकार से गोबर की खाद को बनने में 4 से 5 महीने का समय लगता है। यदि पशु मूत्र का प्रयोग पहले नही किया गया है तो सीमेंट से बने गड्ढ़े में यह बाद में भी मिलाया जा सकता है। पशुओं के मूत्र और यूरिया को व्यर्थ बह जाने से रोकने के लिए इसमें अन्य रासायनिक परिरक्षक जैसे जिप्सम और सुपर फॉस्फेट आदि को मिलाया जा सकता है।
यह तत्व पशु मूत्र को सोख लेते हैं और इस सामग्री को किसी शेड के नीचे डालना चाहिए। इस प्रकार से तैयार गोबर की खाद को तुडाई से 3 से 4 सप्ताह पूर्व ही खेत में डाल देना चाहिए। शेष बची हुई खाद को बुआई के तुरंत पहले खेत में डालना चाहिए। आमतौर पर 10 से 20 टन गोबर की खाद प्रति हैक्टर की दर से खेत में प्रयोग की जाती है।
आलू, टमाटर, शकरकंद, गाजर, मूली और प्याज आदि फसलों में गोबर की खाद के डालने पर अच्छी पैदावार प्राप्त होती है। जबकि गन्ना, धान, नेपियर घास और बागवानी के फलदार पौधों जैसे संतरा, केला, आम और नारियल इत्यादि में भी गोबर की खाद प्रयोग करने के साकारात्मक प्रभाव देखे जा सकते हैं।
गोबर की खाद से नाइट्रजन, फॉस्फोरस और पोटाश आदि तत्वों की पूरी मात्रा तुरंत ही नही फसलों को प्राप्त नही होती हैं। गोबर की खाद में 30 प्रतिशत नाइट्रोजन, 60 से 70 प्रतिशत तक फॉस्फोरस और 70 प्रतिशत तक पोटाश, ही पहली फसल को प्राप्त होते हैं तथा शेष पोषक तत्व अगली फसल को प्राप्त होते हैं।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।