विवेकशील मन और मजबूत शरीर      Publish Date : 12/02/2025

                    विवेकशील मन और मजबूत शरीर

                                                                                                                                                          प्रोफसर आर. एस. सेंगर

हमें इतना मजबूत होना चाहिए कि कोई भी ताकत हमें डरा न सके या दबा न सके। एक मजबूत और दृढ़ शरीर हमारी सबसे अच्छी सुरक्षा है। हमारे भगवान भी कभी भी कमजोर या लाचार जैसे रूप में नहीं बल्कि मजबूत मानव आकार में हमारे सामने प्रकट हुए। हमारे धार्मिक ग्रंथ भी दुश्मन पर विजय पाने के लिए मजबूत शरीर की आवश्यकता पर जोर देते हैं। शक्ति जीवन है और कमजोरी मृत्यु । स्वामी विवेकानंद ने कहा, “मुझे लोहे और स्टील की नसें चाहिए।” अगर वह अपने किसी साथी छात्र को रोते हुए देखते तो वह उन पर चिल्लाते, “तुम कमजोर हो और रोते हो।” शास्त्र कहते हैं शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्'

शरीर हमारे धर्म अर्थात कर्तव्यों को अच्छी तरह से निभाने का एक साधन है। कमज़ोर शरीर किसी काम का नहीं है। भगवान कमज़ोरों का साथ नहीं देते। अगर आप प्रार्थना करते समय काँपते हैं और रीढ़ की हड्डी में दर्द होता है, तो भगवान नहीं, बल्कि बीमारी आपके पास आएगी। हमारे युवकों को सुंदर त्वचा से आगे बढ़कर अच्छे खान-पान और व्यायाम की आदतें डालकर अपने शरीर को स्वस्थ बनाना चाहिए और इस तरह सांसारिक (सूर्य, सर्दी, हवा, भूख आदि) तत्वों के खिलाफ़ खुद को तैयार करना चाहिए।

थोड़ी देर के लिए सोचें कि हमारे पास मजबूत शरीर है, और एक स्वच्छ और प्रतिबद्ध मस्तिष्क है। इसी तरह हमें जीवन की जटिलताओं को समझने और सुलझाने के लिए तेज बुद्धि विकसित करनी होगी।

इस तरह के विवेक के बिना किसी भी मात्रा में ऊर्जा और किसी भी तरह की अच्छाई का कोई उपयोग नहीं हो सकता। हमारा इतिहास बताता है कि विवेक के अभाव में हम पर कई विपत्तियाँ आई हैं। किसी राष्ट्र का उत्थान करना आसान नहीं है। आज के समय में हम सभी धूर्त और विश्वासघाती लोगों से घिरे हुए है,विभिन्न विज्ञापनों के द्वारा बहुत खराब बातें भी हमारे सामने ऐसे प्रस्तुत की जाती हैं जैसे उनके बिना हमारा जीवन चलेगा ही नहीं। वास्तव यह धूर्तता का उदाहरण है। दुनिया के कुछ सामान्य तरीकों को सीखने के लिए किसी असाधारण बुद्धि की आवश्यकता नहीं है, यहाँ तक कि एक साधारण व्यक्ति भी सतर्क हो सकता है। हमें अपने जन्मजात ज्ञान पर विश्वास विकसित करना और इसका सही उपयोग करना सीखना होगा।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।