
आत्मनिर्भर कृषि प्रणाली अपनाने की आवश्यकता Publish Date : 08/02/2025
आत्मनिर्भर कृषि प्रणाली अपनाने की आवश्यकता
प्रोफेसर अर. एस. सेंगर
बदलते मौसम की मार पर तो किसी का बस नहीं चल सकता, क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग के कारण लगातार मौसम में उतार चढ़ाव हो रहा है जिससे फसल उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है। लेकिन मौसम के साथ तालमेल बिठाकर यदि हम लोग चलगें तो शायद खेती किसानी अच्छी प्रकार से कर सकते हैं। किसानों की सर्वाधिक आत्महत्या वाले राज्य महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त क्षेत्र विदर्भ में इसी फार्मूले पर चलने की शुरुआत कर चुके सैयद मुजफ्फर हुसैन महाराष्ट्र के किसानों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर रहे हैं।
हुसैन के 150 एकड़ खेतों में विदर्भ की परंपरा गत फसलों से इतर मसाले एवं चुनिंदा फलों की खेती पूरी तरह से प्राकृतिक एवं वैज्ञानिक तरीके से की जा रही है। महाराष्ट्र में दो बार विधान परिषद के सदस्य रहे सैयद मुजफ्फर हुसैन पेशे से एक भवन निर्माता है, लेकिन महाराष्ट्र के किसानों की आत्महत्याओं के समाचार उन्हें लगातार परेशान करते रहते थे। इसलिए उन्होंने कुछ दशक पहले नागपुर से 50 किलोमीटर दूर रामटेक के छातापुर गांव में धीरे-धीरे 150 एकड़ उबड़ खाबड़ भूमि खरीदी और उसे अपनी प्रयोग भूमि बनाया। मौसम की मार से ऐसी अकाल गस्त फसलों की खबरे उन्हें अक्सर मुश्किल में डाल देती है।
पहले सुधरी मिट्टी की सेहत
मुजफ्फर हुसैन ने इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चर रिसर्च के सेवानिवृत हुए वैज्ञानिक वेणुगोपाल की मदद लेनी शुरू की। वेणुगोपाल की विशेषज्ञता मसालों की खेती में है। मुजफ्फरपुर हुसैन बताते हैं कि वेणुगोपाल उनके खेत पर आए और मिट्टी की जांच कर खेत की सेहत का अनुमान लगाया, जिससे कि उस भूमि पर सही फसलें उगाई जा सकें। उन्होंने बताया कि हमने रासायनिक खाद का प्रयोग न करने का निर्णय लिया। खेत की सेहत को सुधारने के लिए हमने गाय के गोबर, गोमूत्र, गुड़ और बेसन से तैयार होने वाले जीवन अमृत, धन जीवन, जैव अमृत एवं गौ कृपा अमृत जैसी जैविक सामग्रियों का प्रयोग शुरू किया।
खेतों में उग रहे फल मसाले के साथ 50 तरह के बांस
मिट्टी की सेहत को सही करने के बाद यहां अदरक, काली अदरक, दालचीनी, तेजपात, काजू, हल्दी, इमली, शरीफा, मोसमी केला और कई प्रकार की खेती शुरू की गई है। मुजफ्फर हुसैन बताते हैं कि भारत में 150 किस्म के बांस पाए जाते हैं, उनमें से 50 तरह के बांस उनके खेतों में उपलब्ध है। हुसैन के खेतों में मछली पकड़ने वाली छड़ी से लेकर ओलंपिक के भालों तक में लगने वाले लगभग सभी तरह के बास तक शामिल हैं। खेत में पानी की समस्या दूर करने के लिए यहां बने तीन तालाबों को आपस में जोड़ने के साथ ड्रिप इरीगेशन की व्यवस्था भी की गई है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।