ग्रामीण महिलाएं और कृषि का डिजिटायलीजेशन      Publish Date : 04/02/2025

            ग्रामीण महिलाएं और कृषि का डिजिटायलीजेशन

                                                                                                                            प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

महिला स्वयं सहायता समूहों का गठन कृषक महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने और उनके सशक्तिकरण के लिए किया गया है। ये समूह न केवल वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं, बल्कि कृषि संबंधी तकनीकों और नवाचारों के बारे में भी जानकारी को भी साझा करते हैं। नाबार्ड के द्वारा समर्थित एस.एच.जी. ने महिलाओं को जैविक खेती और पशुपालन की नई तकनीकों से अवगत कराया है। इससे उनकी आय में वृद्वि हुई है। इसके अतिरिक्त, एसएचजी के माध्यम से महिला किसानों ने न केवल अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार किया है, बल्कि सामूहिक रूप से नई तकनीकों को अपनाने में भी सफलता प्राप्त की है।

                                                              

नवंबर 2023 में, सरकार ने महिला स्वयं सहायता समूहों (एस.एच.जी.) को ड्रोन उड़ाने के लिए मुफ्त प्रशिक्षण के साथ सब्सिडी वाले मूल्य पर ड्रोन प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाने के लिए 1,261 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ नमो ड्रोन दीदी योजना शुरू की है। इस योजना के तहत ड्रोन की लागत का 80 प्रतिशत या अधिकतम 8 लाख रुपये तक की सब्सिडी प्रदान की जाती है। साथ ही 3 प्रतिशत का मामूली ब्याज भी देना होता है।

महिला एस.एच.जी. कृषि क्षेत्रों में कीटनाशकों या उर्वरकों के छिड़काव के लिए किसानों को ड्रोन किराए पर दे सकती हैं। इससे वे प्रतिवर्ष न्यूनतम 1 लाख रुपये की अतिरिक्त आय अर्जित कर सकती हैं। इस योजना का उद्देश्य 15,000 एस.एच.जी. को उर्वरक और कीटनाशकों के छिड़काव के लिए किसानों को किराये की सेवाओं के लिए ड्रोन से लैस करना है। समिति, एफ.पी.ओ. और ग्रामीण उद्यमियों को ड्रोन खरीदने के लिए 4 लाख रुपये तक की सहायता दी जाती है।

कृषि स्नातकों को 50 प्रतिशत या 5 लाख रुपये तक की सहायता प्राप्त होती है। छोटे, सीमांत, अनुसूचित जाति/जनजाति, महिलाओं और पूर्वोत्तर के किसानों को ड्रोन की खरीद  पर 50 प्रतिशत या 5 लाख रुपये, अन्य किसानों को 40 प्रतिशत या 4 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता दी जाती है। गैर-सरकारी संगठन (एन.जी.ओ.) कई  गैर-सरकारी  संगठन ज्ञान प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विशेष रूप से सीमांत और आदिवासी किसानों के बीच।

                                                         

‘प्रधान’ एन.जी.ओ. झारखंड और मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में जैविक खेती एवं बीज चयन जैसी तकनीकों के माध्यम से किसानों को प्रशिक्षित करता  है।  इससे  उत्पादकता और आय में वृद्वि हुई है। इसके साथ ही कई एन.जी.ओ. महिला स्वयं सहायता समूहों (एस.एच.जी.) के माध्यम से भी महिला किसानों को कृषि तकनीकों और बाजार तक पहुंचाने में मदद कर रहे हैं।

किसान उत्पादक संगठन (एफ.पी.ओ.) और सहकारी समितियां किसान उत्पादक संगठन और सहकारी समितियां किसानों के लिए सामूहिक रूप से जानकारी प्राप्त करने और उन्नत तकनीक अपनाने का एक मजबूत मंच  प्रदान करती हैं। सामूहिकता के कारण छोटे किसानों को उन्नत तकनीक तक पहुंचने में मदद मिलती है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।