किसी भी परिस्थिति में दूसरों को दोष न दें      Publish Date : 24/01/2025

                    किसी भी परिस्थिति में दूसरों को दोष न दें

                                                                                                                                                   प्रोफेसर आर एस. सेंगर

किसी का भी विरोध करना, कभी भी स्थायी, सजग और सुव्यवस्थित समाज व्यवस्था का आधार नहीं बन सकता, इसका कारण अपने आपमें ही बहुत स्पष्ट है। सभी आंदोलन जो किसी बाहरी परिस्थिति की प्रतिक्रिया के रूप में उत्पन्न होते हैं, उनके विरोध का कारण हटते ही, वह ध्वस्त हो जाते हैं। जब निरंतर अस्वीकृति की भावना मन पर हावी होने लगती है, वैसे भी कोई व्यक्ति जैसा सोचता है वह वैसा ही बन जाता है। व्यक्ति की मानसिकता और व्यक्तित्व उसके निरंतर चिंतन की प्रक्रिया के माध्यम से ही बनते हैं।

यही कारण है कि अंग्रेजों और मुसलमानों के प्रति शत्रुता के आधार पर अपने समाज को पुनर्गठित करने का प्रयास पतन और आत्म-विनाश को आमंत्रित करने जैसा ही है।

यदि हम लगातार उनके जघन्य कृत्यों के बारे में सोचते रहेंगे तो हमारा मन भी दूषित हो जाएगा। क्या हमारे पास निरंतर चिंतन करने योग्य रचनात्मक, जीवनदायी और महान आदर्श नहीं हैं? क्या उनके अनुसार अपने जीवन को आकार देना उचित नहीं है?

कभी-कभी हम लोग भी मुसलमानों और अंग्रेजों के संबंध में ऐसी ही कुछ घटनाओं का उल्लेख करते हैं। लेकिन ऐसा केवल हम सभी का ध्यान उस शिक्षा की ओर आकर्षित करने के लिए करते हैं, जो हमें इतिहास से प्राप्त करनी चाहिए। वह यह है कि अपने पतन के लिए जिम्मेदार स्वये हम ही हैं। संघ संस्थापक डॉक्टर हेगडेवार जी को मात्र आठ वर्ष की आयु में ही इस बात पर आश्चर्य हुआ और वे गहन चिंतन में चले गए कि हमसे छह हजार मील दूर इंग्लैंड जैसा छोटा देश हमारे देश पर शासन कैसे कर सकता है।

उन्होंने गहन और परिपक्व चिंतन के बाद हमारी दासता के मूल कारण और उसे दूर करने के सही और रचनात्मक तरीकों और साधनों का पता लगाया। जिसका परिणाम यह हुआ कि उन्होंने संघ की स्थापना की। इसीलिए संघ किसी के विरोध में काम नहीं करता बल्कि हिंदू समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर कर एक संगठित समाज खड़ा करने के लिए कार्य करता है।

श्री गुरु जी से किसी पत्रकार के पूछने पर उन्होंने कहा था कि यदि इस्लाम और ईसाइयत इस धरती पर नहीं आए होते और हिंदू समाज में यह सब बुराइयां रहती तो भी संघ का प्रादुर्भाव निश्चित रूप से होता ही।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।