समाज संगठन क्यों      Publish Date : 19/01/2025

                                समाज संगठन क्यों

                                                                                                                                                   प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

व्यक्ति और समाज का परस्पर समन्वय और संबंध धीरे-धीरे सामाजिक संगठन का रूप ले लेता है। कुछ लोगों के मन में यह प्रश्न होता है कि समाज संगठन की आवश्यकता ही क्यों है? यह प्रश्न निश्चित ही उनकी इस बात की अनभिज्ञता के कारण आता है की जो समाज संगठित नहीं रहता वह दुर्बल हो जाता है और देवता भी सदैव दुर्बलों की ही बलि मांगते हैं। कभी भी किसी भी प्रकार की कहानी में भी शेर का सौदा करने का प्रसंग नहीं मिलता है।

                                                                        

हमारा चिंतन हमारा विचार हमारी संस्कृति यह सदैव से ही उत्कृष्ट रही है, परंतु जब हम पराधीन थे अर्थात कमजोर थे तब इसी संस्कृति का सम्मान विश्व में नहीं किया जाता था। आज हम संगठित शक्ति के रूप में खड़े हो रहे हैं तो पूरा विश्व अपने चिंतन का गुणगान कर रहा है। समाज में बुराइयां जिस भी रूप में व्याप्त हों उनका निस्तारण क्या कोई सरकार कर सकेगी?

निश्चित ही इस विषय में अधिकांश लोगों का मत नहीं होगा, क्योंकि हमने अपनी जिन बुराइयों को दूर किया है वह किसी सरकार ने दूर नहीं की बल्कि समाज की संगठित शक्ति की स्वाभाविक प्रक्रिया से बुराइयां दूर हुई है। वह चाहे बाल विवाह हो, समुद्र पार करके किसी और देश न जाने की बात हो, आज यह समाज में कहीं भी दिखाई नहीं देती।

अपने समाज में और भी जो बुराइयां आज कम या अधिक मात्रा में दिखाई दे रही हैं चाहे वह भेदभाव हो, परिवारों का विघटन हो, पश्चिम की अवैज्ञानिक पद्धतियों के पीछे आंख मूंद कर भागने की बात हो, इन सब का समाधान संगठित सामाजिक शक्ति में ही समाहित है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।