आवश्यक है व्यक्ति और समाज के बीच तालमेल Publish Date : 18/01/2025
आवश्यक है व्यक्ति और समाज के बीच तालमेल
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
ऐसा तरीका खोजना होगा जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि अधिक से अधिक धन बनाने की व्यक्ति की पहल अप्रभावित रहे लेकिन साथ ही साथ निर्मित धन का विकेंद्रीकरण भी हो। व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मतलब व्यापक सामाजिक हितों को नुकसान पहुंचाने की स्वतंत्रता कभी भी नहीं हो सकता है।
हिंदू जीवन दर्शन की विशिष्टता है कि यह व्यक्ति के मानस को इस तरह से सुसज्जित करता है जिससे समाज और व्यक्ति के बीच उचित समन्वय हो सके और दोनों को इसका लाभ प्राप्त हो। यह व्यक्ति को सुख की वास्तविक प्रकृति से परिचित कराता है और उसे उचित संस्कार प्रदान करता है।
यह उसके सामने केवल इंद्रिय सुख प्राप्त करने का लक्ष्य नहीं रखता क्योंकि ये उसे स्थायी सुख नहीं देते। यह व्यक्ति को सिखाता है कि शाश्वत आनंद प्राप्त करने के लिए उसे इंद्रिय सुख के बाहरी साधनों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए; इसके बजाय, उसे अपनी आत्मा की ओर मुड़ना चाहिए और असीम, शाश्वत और सर्वोच्च आनंद के स्रोत को खोजने का प्रयास करना चाहिए। जागरूकता उसे सिखाती है कि यदि अन्य लोग उसके श्रम का फल भोगते हैं, तो वह स्वयं ही उन फलों का आनंद ले रहा है।
इस दृष्टिकोण के आधार पर जीवन में संतुलन प्राप्त करना संभव होगा। यह व्यवस्था व्यक्ति के संपत्ति के स्वामित्व के अधिकार को अक्षुण्ण रखती है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी और अपने परिवार की सांसारिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समान संपत्ति का अधिकार प्राप्त करे। इसका अर्थ है कि व्यक्ति को एक सीमा तक सांसारिक सुखों की अपनी लालसा को संतुष्ट करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। लेकिन साथ ही समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए योगदान देने का दायित्व भी होना चाहिए।
इस योजना की सफलता के लिए व्यक्ति की सोच को उचित रूप से विकसित करना आवश्यक है। समाज की जीवन-दृष्टि बदलनी होगी। हर चीज को आत्म-केंद्रित रूप में देखने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना होगा; समाज के सुख-दुख में उसके साथ एकजुटता महसूस करने की प्रवृत्ति को लोगों में विकसित करना होगा। राष्ट्र की सर्वांगीण प्रगति के लिए आवश्यक यह तालमेल और सामूहिक प्रयास लोगों के सहज आत्म-अनुशासन से ही विकसित हो सकते हैं। इस तरह व्यक्ति जीवन के सर्वाेच्च लक्ष्य के प्रति जागरूक हो जाएगा। उसके मन में समाज के प्रति प्रेम और भ्रातृत्व पैदा होगा, इस धरती के हर अच्छे मनुष्य का कर्तव्य है कि वह सामाजिक व्यवस्था पर आधारित ऐसे आत्म-अनुशासन को बनाने का प्रयास करे।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।