सत्य की अभिव्यक्ति राष्ट्र की शक्ति है      Publish Date : 17/01/2025

                    सत्य की अभिव्यक्ति राष्ट्र की शक्ति है

                                                                                                                                                           प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

जब किसी देश का नैतिक पतन होता है, तो एक स्वतंत्र और स्वाभिमानी राष्ट्र के रूप में उसका अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाता है। जैसे कि कभी कभी हम सुनते है कि अमेरिकी एजेंसी, NGO या और भी विदेशी ताकतें हमारे देश के अंदर काम कर रही है और एक राष्ट्र के रूप में हमे कमजोर करने का प्रयास कर रही है। इसके परिप्रेक्ष्य में विचार करने की बात यह है कि यह एजेंसियां अपनी गतिविधियां किस प्रकार से चला सकती हैं, जब तक कि हमारे अपने कुछ लोग उनके हाथों की कठपुतली बनकर उनके लिए काम करने के लिए तैयार न हों? कुछ लोग भले ही उनके वेतन पर काम करने को तैयार न हों या किसी तरह से भी उनके प्रभाव में न हों?

यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि हम शताब्दियों से एक हिंदू राष्ट्र हैं। इस सत्य को नकारने से हमें कुछ हासिल नहीं होने वाला। दुर्भाग्य से पिछले कई वर्षों से गैर-हिंदुओं के वोट की लालच में इस सत्य को नकारने के प्रयास चलते रहे हैं। केवल इतना ही नहीं, यह दिखाने के लिए लगातार प्रयास किए गए हैं कि इस सत्य को व्यक्त करना राष्ट्रीय हित के लिए हानिकारक है। लेकिन यह समझना काफी कठिन है कि सत्य की अभिव्यक्ति राष्ट्रीय हित के लिए कैसे हानिकारक हो सकती है।

आखिरकार सत्य तो सत्य ही होता है तथा इसे व्यक्त और प्रकट किया जाना ही चाहिए, और इसका अनुभव भी किया जाना चाहिए। इसे हमारे जीवन में समाहित किया जाना चाहिए अर्थात जो अपने को हिंदू नहीं मानते उन्हें याद दिलाना चाहिए कि उनके पूर्वज भी हिंदू ही थे, आज उनकी पूजा करने की पद्धति भले ही बदल गई हो लेकिन असल में वह हैं तो हिंदू ही। जब तक ऐसा नहीं किया जाता, तब तक हिंदुओं में भी राष्ट्रीय एकता नहीं हो सकती, और यह अन्य लोगों में तो और भी कम होगी।

ईसाई और मुसलमानों में से जो लोग भी नेकनीयत और देशभक्त हैं और जो अतीत में अपने साम्राज्यों के सपनों से ग्रस्त नहीं हैं, वे स्वीकार करते हैं कि हजारों वर्षों से यह हिंदू भूमि ही रही है और हिंदू भावनाएं इस भूमि की राष्ट्रीय भावनाएं हैं। वह यह भी जानते हैं कि ये राष्ट्रीय भावनाएं किसी भी तरह से उनके विशिष्ट धार्मिक विश्वास का विरोध नहीं करती हैं। अब वह भी इस सत्य की स्वीकार करने लगे हैं।

यदि सभी हिन्दू, चाहे वे किसी भी राजनीतिक दल या संप्रदाय से संबंधित हों, हिमालय से कन्याकुमारी तक तथा द्वारका से मणिपुर तक कंधे से कंधा मिलाकर एक राष्ट्र के रूप में खड़े हो जाएं, तो इस देश में रहने वाले अन्य लोग भी इस देश और इसके राष्ट्रीय जीवन का सम्मान करने लगेंगे। अपनी विशिष्ट पूजा पद्धति में अपनी आस्था को अक्षुण्ण रखते हुए, वे भी इस महान राष्ट्र के उपयोगी घटक बन सकते हैं।

इसी कारण से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लोगों को हमारी राष्ट्रीयता के इस सत्य के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता पर बल देता रहा है। केवल इसी प्रकार से लोगों को राष्ट्र के लिए एकजुट और निस्वार्थ भाव से काम करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। इसी से हमारे देश को पड़ोसी देशों में होने वाली संघर्षपूर्ण परिस्थितियों के बावजूद आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने की शक्ति मिल सकती है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।