धर्म - शाश्वत जीवन का आधार Publish Date : 13/01/2025
धर्म - शाश्वत जीवन का आधार
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
जब तत्कालीन राजनीतिक सत्ता के द्वारा संघ के पवित्र कार्य पर बार-बार प्रतिबंध लगाया गया, तब संघ के स्वयंसेवकों ने विचार किया कि यह राजनीतिक सत्ता केवल राजनीतिक गतिविधियों के माध्यम से ही प्राप्त की जा सकती है। इस कारण राजनीतिक गतिविधि के माध्यम से राजनीतिक सत्ता प्राप्त करके हमारे विचारों के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ बनाना आवश्यक था।
लेकिन राजनीति जीवन का एक बहुत छोटा सा हिस्सा है। यह कोई ऐसा साधन या माध्यम नहीं है जो पूरे जीवन में व्याप्त हो जाए। कुछ लोगों ने सोचा होगा कि चूंकि लोग अपने शासकों के तौर-तरीकों का अनुसरण करते हैं, इसलिए लोगों को अपने विचारों के अनुसार ढालने के लिए राजनीतिक शक्ति प्राप्त करना आवश्यक है।
लेकिन यह लोकतंत्र का समय है, इसमें लोगों को वही सरकार मिलती है जैसे कि वे स्वयं होते हैं। अगर लोग कमजोर हैं, तो सरकार भी कमजोर होगी। अगर लोग ईमानदार, विश्वसनीय और भारतीय सिद्धांतों के प्रति प्रेम रखते हैं, तो फिर शासक भी ऐसा ही होगा। इसलिए, सच्चाई यह है - शासक इस विचार के आधार पर अस्तित्व में नहीं आता है कि उसने अपनी राजनीतिक शक्ति के बल पर लोगों को ढाला और उनका मार्गदर्शन किया है; इसके विपरीत, वह जनता के समर्थन से शासक बनता है।
इस विचार के साथ-साथ यह प्रश्न भी आता है - क्या राजनीति से अलग रहकर देश को महान बनाया जा सकता है? स्वयंसेवकों ने शक्ति संचय करके हिंदू राष्ट्र को वैभव संपन्न बनाने की महत्वाकांक्षा संजोई है। अंग्रेजों ने जाने के बाद भी अपने विचार के बीज यहां छोड़ गए जिसका पालन पोषण भी यहीं के लोगों ने किया, यदि हम पहले की तरह हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते तो निश्चय ही भारत एक वैचारिक गुलामी में जकड़ता चला जाता।
यदि आगे हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे तो हमारे अनुसार जो नहीं होना चाहिए, वह फिर अवश्य होगा। उस स्थिति में हमारे पास केवल आत्म-पराजय की मानसिकता ही बचेगी।
वर्तमान में भी कुछ लोग हैं जो लोगों को अपने विदेशी विचारों की और आकर्षित करके विदेशी ताकतों से सहायता ले कर सत्ता हथियाने की महत्वाकांक्षा रखते हैं। देश के किसी कोने में यदि वे थोड़े भी सफल होते हैं तो उन्हें अपने मंसूबों में सफल होने की संजीवनी सी मिल जाती है। सदैव ही यह स्मरण रखना चाहिए कि कोई भी कोई विचार, पंथ, पार्टी या शासन कभी अमर नहीं हो सकता, वे सभी जल्दी या बाद में नष्ट हो जाते है। केवल वे ही विचार,संगठन ही जीवित रह पाते हैं जो धर्म पर दृढ़ और अडिग हैं, अपना सौभाग्य है हम धर्म के मार्ग पर दृढ़ विचार और संगठन के साथ हैं।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।