एक ज्ञानवान समाज स्थापित करने की आवश्यकता      Publish Date : 11/01/2025

             एक ज्ञानवान समाज स्थापित करने की आवश्यकता

                                                                                                                                       प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी

विकास और नवाचार की नयी शताब्दी में बढ़ने के लिए हमें सभी मोचों पर एक साथ आगे बढ़ना होगा। शिक्षा के क्षेत्र में हमें नयी संरचनाओं और विचारों की आवश्यकता है ताकि उसमें व्याप्त बाधाएं दूर हों, उसकी प्राप्ति सुगम हो सके।

भारत जैसे-जैसे विकास और प्रगति के रोमांचकारी नये भविष्य की और बढ़ रहा है, सतत विकास का एजेंडा गढ़ने में ज्ञान की भूमिकाऐ अधिक महत्वपूर्ण होती जाएगी। ज्ञानवान समाज के निर्माण करने की धारणा अब कोई विमर्शनीय विलासिता नहीं रह गई है. इसके महत्व को विश्वभर के नीति-नियामक अब भलीभांति स्वीकार कर चुके हैं। भारत में यह विचार, देश के समक्ष चुनौतियों के कारण और भी महत्वपूर्ण बन गया है। हमारी जनसंख्या के 55 करोड़ लोगों का 25 वर्ष से कम आयु का होना एक बहुत बड़ा जनसंख्यात्मक लाभांश है, क्योंकि यह एक विशाल मानव संसाधन है।

मानव संसाधन की इस अतुलनीय निधि की शिक्षा और कौशल विकास एजेंडा पर जोर देते हुए उसे सलीके से साधने की जरूरत है ताकि वह 21वीं सदीं की चुनौतियों का सामना कर सके। देश में आज जो विशाल असमानता दिखाई दे रही है वह ज्ञान प्राप्ति के पक्षपातपूर्ण रवैये के कारण है। उसके निराकरण के लिये हमें शिक्षा के अवसरों में पर्याप्त वृद्धि करनी होगी, एक ऐसी समावेशी शिक्षा प्रणाली लानी होगी कि कोई भी इसकी परिधि से बाहर नहीं रह सके। अंततः देश के विकास को गति देने के लिए एक ऐसी शिक्षा प्रणाली के गठन की आवश्यकता है जो नवाचार एवं उद्यमिता को बढ़ावा दे सके और बढ़ती अर्थव्यवस्था की कौशल आवश्यकताओं को भी पूरा करने में सक्षम हो सके।

एक ज्ञानवान समाज के निर्माण में किस चीज की आवश्यकता होती है, इसके बारे में भारत के प्रधानमंत्री को परामर्श देने वाली उच्चस्तरीय संस्था राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (एनकेसी) में विस्तार पर विचार हो चुका है। आयोग को देश की ज्ञान दात्री संस्थाओं और बुनियादी सुविधाओं में सुधार के लिये एक खाका तैयार करने का कार्य सौंपा गया था। आयोग ने ज्ञान के विस्तृत आयाम को आच्छादित करने वाले 27 प्रमुख क्षेत्रों पर करीब 300 सिफारिशें प्रस्तुत की हैं।

आयोग ने पांच पहलुओं से ज्ञान के बारे में विचार किया ज्ञान प्राप्त करने की सुविधाओं में सुधार, उन संस्थाओं को अनुप्राणित करना, जहां ज्ञान की धारणा बलवती होती है; ज्ञान के सृजन के लिए विश्वस्तरीय शैक्षिक वातावरण का विकासः सतत और समग्र विकास हेतु ज्ञान के उपयोग और सार्वजनिक सेवाओं की कार्य कुशलता को बढ़ाने में ज्ञान के उपयोग को प्रोत्साहन देना है। आयोग ने अनुभव किया कि मानव पूंजी को अपनाने और उस पर अमल करने की यह रणनीति, भारत को सतत विकास के मार्ग पर दृढ़ता से स्थापित कर सकेगी।

ज्ञान पिरामिड के सबसे निचले स्तर पर हमें उच्चस्तरीय विद्यालयीय शिक्षा की सुविधाओं में सुधार लाना है, जिससे कि एक ज्ञानवान समाज के लिए आवश्यक आधार तैयार किया जा सके। वर्तमान में, भारत में बच्चों की एक बड़ी संख्या को या तो विद्यालयीन प्रणाली से बाहर ही रहना पड़ता है, या फिर उन्हें कम उम्र में ही अपनी पढ़ाई छोड़ देनी पड़ती है।

भारतीय विद्यालयीन शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता पर एएसईआर के एक अध्ययन के अनुसार चार वर्ष की स्कूली पढ़ाई पूरी करने वाले 38 प्रतिशत बच्चे छोटे-छोटे वाक्यों वाला वह पैराग्राफ नहीं पड़ सकते, जो दूसरी कक्षा के विद्यार्थियों के पढ़ने के लिए होता है। ऐसे 55 प्रतिशत बच्चे तीन अंकों की संख्या को एक अंक की संख्या से भाग नहीं दे सकते। यह इस बात का द्योतक है कि अन्य विषयों को पढ़ाई में स्थिति कितनी बुरी हो सकती है। बुनियादी शिक्षा की सुविधा में विस्तार और गुणवत्ता में सुधार करने के लिए राष्ट्रीय ज्ञान आयोग में हमने शिक्षा का अधिकार कानून बनाने और प्रबंधुरशिक्षा का अधिकार कानून बनाने और प्रबंधुरविद्यालयीय शिक्षा प्रणाली में पीढ़ीगत परिवर्तन लाए जाने की सिफारिश की है। इसके अतिरिक्त, निर्णय लेने की प्रक्रिया में सामूहिक जैसी अन्य पहलें भी की हैं। भागीदारी अन्य सिफारिशें भी की राह में राष्ट्र की पहल का एक महत्वपूर्ण तत्व है।

आज देश में इस बात को लेकर चिंता बढ़ रही है कि शिक्षा प्रणाली कुशल और रोज़गार के लिए तैयार जनशक्ति का निर्माण करने की अपनी भूमिका ठीक ढंग से नहीं निभा पा रही है, जिसके कारण कौशल संबंधी बाजार की आवश्यकताओं और रोजगार चाहने वालों के कौशल के बीच खाई बढ़ती जा रही है। इसमें यह भी कहा गया है कि भारत में 57 प्रतिशत युवा रोज़गार पाने की योग्यता ही नहीं रखते। इस समस्या के समाधान के लिए देश की व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रणाली (वीईटी) में आमूलचूल परिवर्तन करने की महत्ती आवश्यकता है।

एनकेसी में देश में बेट (बीईटी) की गुणवत्ता सुधारने की संस्तुतियां की गई हैं। हमने मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली के भीतर ही वेट का लचीलापन बढ़ाने के उपाय सुझाए हैं जो कि विद्यालय और उच्च शिक्षा के साथ उचित संपर्क साध कर हासिल किया जा सकता है और यह दो वर्षीय संबद्ध डिग्री पाठ्यक्रम प्रदान करने वाले सामुदायिक महाविद्यालयों के माध्यम से किया जा सकता है। साथ ही, उच्च गुणवत्ता वाले कौशल के प्रभावी विकास के लिए हमने नवोन्मेषी अदायगी प्रादशों के माध्यम से क्षमता में वृद्धि के उपायों की सिफारिश की है। इसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच मज़बूत भागीदारी सुनिश्चित करना भी शामिल है। हमने मान्यता प्रदान करने वाले एक नियामक ढांचे के गठन, असंगठित क्षेत्र के लिए प्रशिक्षण का विकल्प और देश में वेट के बारे में जो धारणा है उसे बदल कर उसे एक नया और आकर्षक स्वरूप प्रदान करने वाले उपाय की सुझाएं हैं।

इस परिदृश्य के दूसरी और, उच्च शिक्षा के क्षेत्र में हमने अधिकाधिक सुविधाएं प्रदान करने के लिए व्यवस्था में विस्तार एवं शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया है और समानता के हित में समावेशन का समर्थन किया है।

उच्च शिक्षा में हमारे 10-11 प्रतिशत के मौजूदा सकल भर्ती अनुपात (उच्च शिक्षण-संस्थाओं में भर्ती 18-24 वर्ष आयु समूह) को देखते हुए यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि अन्य अनेक विकासशील देशों के 25 प्रतिशत के अनुपात की तुलना में यह बहुत कम है। इसके अलावा, तीसरे (टर्शियरी) स्तर की शिक्षा में नियामक संरचना के उद्देश्य से सुधार भी हमने सुझाए हैं। प्रशासन के ऐसे प्रतिमान तैयार करने की पहल की गई है जो खुलापन और पारदर्शिता को प्रोत्साहित करने के अलावा उच्च शिक्षा के नये संस्थानों में प्रवेश में बाधक बने बोझिल अवरोधों को भी दूर करेंगे।

भारत के ज्ञान और कौशलपूर्ण अर्थव्यवस्था में रूपांतरण के लिए अनुसंधान के अनुकूल सुदृढ़ वातावरण की नितांत आवश्यकता है। देश में अनुसंधान का स्तर दयनीय है। विभिन्न देशों में अनुसंधान के योगदान का आकलन करने वाली टॉमसन रायटर्स की रिपोर्ट के अनुसार चीन पांचवें और भारत बारहवें स्थान पर है। यह रिपोर्ट 1 जनवरी, 1999 से 31 अक्तूबर, 2008 तक की अवधि के निष्पादन के आधार पर तैयार की गई थी। इसके अलावा, अध्ययन में इस बात की और इशारा किया गया है कि वर्ष 1988-1993 की अवधि में विश्व में चीन की हिस्सेदारी महज 1.5 प्रतिशत थी जो 1999-2008 के दौरान बढ़ कर 6.2 प्रतिशत हो गई, जबकि भारत बहुत मुश्किल से 2.5 प्रतिशत से 2.6 तक पहुंच सका है। एनकेसी में हमने विश्वविद्यालयों में शोध और अनुसंधान का स्तर सुधारने के बारे में सुझाव दिए हैं। यदि भारत को कृषि और उद्योग में अति स्पर्धा वाले इस माहौल में आगे रहना है तो ऐसा करना अति महत्वपूर्ण है।

वर्तमान में, हमारे यहां ऐसे संस्थानों की संख्या गिनी-चुनी है जहां गुणवत्ता वाला अनुसंधान किया जा सकता हो। इसका नतीजा यह हुआ है कि हमारी प्रतिभाएं देश से पलायन कर रही हैं। इस प्रतिभा पलायन को प्रतिभा प्राप्ति की नयी नीति में बदलना होगा। हमने अनुसंधान और शिक्षण के नवोन्मेषी तरीके और विश्वविद्यालयों को अनुसंधान का केंद्र बिंदु बनाने पर भी पुनः विचार किया है। हमने नयी प्रौद्योगिकी के अनुसंधान में सहयोग की आवश्यकता पर भी जोर दिया है। हाई व्रिड् ब्रॉडबैंड के माध्यम से देश की अनुसंधान और शिक्षा संस्थाओं को परस्पर जोड़ने वाले राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क के गठन से ताजा आंकड़ों और संसाधनोंके आदान-प्रदान के साथ-साथ अप्रत्याशित सहयोग में मदद मिलेगी। इस क्रांतिकारी नरगिस के पहले चरण की शुरुआत सरकार पहले काम कर चुकी है।

इसी प्रकार ज्ञान प्राप्ति को सुगम बनाने के लिए, एनकेसी ने देश के सभी पुस्तकालय और सूचना क्षेत्र के पुनर्गठन के साथ-साथ एक अनुवाद उद्योग के विकास के बारे में भी सुझाव दिए हैं। एनकेसी की सिफारिशों में विधि, प्रबंधन, चिकित्सा एवं अभियांत्रिकी शिक्षा सहित व्यावसायिक शिक्षा में सुधार के साथ-साथ मुक्त और दूरवर्ती शिक्षा के प्रोत्साहन तथा प्रतिभाशाली छात्रों को गणित और विज्ञान को धाराओं की और आकर्षित करने पर भी जोर दिया गया है। हमने नवाचार, उद्यमिता और आईपीआर (बौद्धिक संपदा अधिकारों) जैसे मुद्दों पर भी विचार किया है, जो प्रतिस्पर्धी ज्ञानमय वातावरण के सृजन के लिए अति महत्वपूर्ण है। लोक सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए हमने ई-प्रशासन में सुधार के सुझाव भी दिए हैं। इसके अलावा, हमने भारतीय कृषि और पारंपरिक स्वास्थ्य (चिकित्सा) प्रणालियों के सामने मौजूद चुनौतियों के समाधान का भी प्रयास किया है, और ज्ञान प्राप्ति के उन प्रयासों का वर्णन किया है, जो आम आदमी के जीवनस्तर को बेहतर बना सकते हैं। संक्षेप में, व्यापक सुधारों के सुझाव देकर, एनकेसी ने एक वास्तविक ज्ञानवान समाज के निर्माण का खाका पेश करने की कोशिश की है।

विकास और नवाचार की नयी शताब्दी की और बढ़ने के लिए हमें सभी मोर्चों पर एक साथ आगे बढ़ना होगा। शिक्षा के क्षेत्र में हमें नयी संरचनाओं और विचारों की आवश्यकता है ताकि बाधाएं दूर हों, उसकी प्राप्ति सुगम हो सके। इस संदर्भ में, शिक्षा का अधिकार विधेयक की संसद में मंजूरी एक महत्वपूर्ण शुरुआत है। हमें सेवाओं की अदायगी सरल बनाने, प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सुचारू बनाने और नये-नये अवसरों के सृजन के लिए प्रौद्योगिकी के बेहतर उपयोग के वास्ते नयी सोच की जरूरत है। हम अपनी रूढ़िग्रस्त प्रणालियों को बदल कर और उन्हें नयी सच्चाइयों के अनुकूल ढालकर ही एक ऐसे ज्ञानवान समाज की रचना कर सकते हैं जोभावी पीढ़ियों को अप्रत्याशित लाभ दे सकेगी।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।