लोकतंत्र की आवश्यकता हैं देश के प्रबुद्ध नागरिक      Publish Date : 10/01/2025

              लोकतंत्र की आवश्यकता हैं देश के प्रबुद्ध नागरिक

                                                                                                                                                         प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

अपने देश, भारत में लोकतांत्रिक जीवन पद्धति है, लेकिन इस प्रणाली की सार्थकता के लिए यह भी आवश्यक है कि देश का आम नागरिक अच्छी तरह से शिक्षित और प्रबुद्ध भी हो। एसे में उसे केवल साक्षर बनाकर ही लोकतंत्र के असली उद्देश्यों को प्राप्त करना संभव नहीं है। एक आम नागरिक को राष्ट्रीय जीवन के समस्त महत्वपूर्ण भागों जैसे राजनीति और अर्थशास्त्र आदि के संबंध में उसकी जिम्मेदारियों के बारे में जागरूक होना भी अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है।

                                                        

लोग तभी योग्य विचारों को चुन सकते हैं जबकि वह प्रबुद्ध हों। इसके विपरीत, अगर वे अशिक्षित और अज्ञानी हैं, तो उन्हें निजी लाभ, जातीय बातें या ऐसी कई अन्य चीजों के प्रलोभनों से आसानी से प्रभावित किया जा सकता है। जिसका अनुभव प्रत्येक चुनाव के समय स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। राष्ट्र के बारे में उचित विचार न करने वाले दलों और व्यक्तियों द्वारा इसका भरपूर लाभ समय समय पर उठाया जाता रहा है।

इस सबके दुष्परिणामों को कम से कम अगले चुनाव होने तक पूरे देश को ही झेलना पड़ता है। इस तरह की विफलता से कुछ लोगों में निराशा पैदा होती है और लोकतंत्र के प्रति उनका विश्वास कम होता है। वर्तमान में एकमात्र पात्रता या मानदंड किसी भी तरह से, उचित या अनुचित, तरीके से अधिकतम सदस्यों के वोट प्राप्त करने और निर्वाचित होने का कौशल है।

स्वाधीनता के बाद इस प्रणाली के परिणामस्वरूप जन प्रतिनिधियों का एक नया वर्ग उभरा  - यह वर्ग न तो राजनेताओं का वर्ग है, और न ही प्रतिनिधियों का वर्ग।

                                                         

वर्तमान में जैसे जैसे समाज में जागृति आ रही है ठीक वैसे ही वैसे इन बातों का प्रभाव भी कम होता जा रहा है, बिना बड़े नाम और बिना धन बल के भी व्यक्ति विचार के आधार पर निर्वाचित हो कर सत्ता के केंद्र में पहुंच रहे हैं तो यह लोकतंत्र के लिए एक बेहद शुभ संकेत माना जा सकता हैं।

हालांकि, अभी भी जनता को भ्रमित करने वाली शक्तियां अपना पूरा जोर लगाती है, क्योंकि कुछ दलों के पास सत्ता में आने पर अपना विचार क्या होगा उनकी इस प्रकार की कोई योजना होती ही नही है। अतः वह इसी जोड़ घटाव में लगे रहते हैं कि किस प्रकार समाज में विभाजन पैदा किया जाय और लोकतंत्र के गणित के आधार पर सत्ता तक पहुंचा जा सके। 

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।