वैश्वीकरण और भारत      Publish Date : 09/01/2025

                              वैश्वीकरण और भारत

                                                                                                                                                      प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

विश्व का नेशनलिज्म जिसे लोग आधुनिक राष्ट्रवाद कह रहे हैं और भारत का राष्ट्रवाद इससे अलग अलग है। नेशनलिज्म में नेशन राज्य और रिलिजन पर आधारित है, इसलिए जैसे-जैसे राज्य और रिलिजन बदलते रहे नेशन भी बदलते रहे हैं। आज का यूरोप इसका एक सटीक उदाहरण है। जबकि भारत का राष्ट्रवाद राज्य नहीं बल्कि संस्कृति पर केंद्रित है, इसलिए अनेक राज्य होने के उपरांत भी भारत शताब्दियों से एक राष्ट्र है।

एक ऐसा राष्ट्र जिसका धर्म है मानवता, जिसमें अनेक उथल पुथल एवं आक्रमण होने के बाद भी अनेकों बार यह राष्ट्र उठकर खड़ा हुआ और हर बार नई शक्ति आने के बाद मानवता विश्व बंधुत्व और विश्व कल्याण की बात करता रहा अन्यथा कोई अन्य यह कल्पना भी नही कर सकता कि जो राष्ट्र सैकड़ों वर्षों तक सभी प्रकार के हथियारों से रौंदा गया हो वह जब उठ कर खड़ा होगा तो फिर भी वह विश्व के कल्याण की बात ही करेगा?

भारत की संस्कृति विभिन्न पूजा पद्धतियां अर्थात रिलिजन वाली है, विभिन्न खान पान, बोली और पहनावा वाली है, फिर भी मनुष्य कैसा होना चाहिए इसका चिंतन पूरे भारत का एक ही है तो कहा जा सकता है कि उसकी एक ही संस्कृति है। वैश्वीकरण का पश्चिमी चिंतन केवल व्यापार की दृष्टि से विचार करता है, जबकि हमारा चिंतन वसुधैव कुटुंबकम् वाला रहा है अर्थात हम विश्व की व्यापार के रूप में नहीं परिवार के रूप में देखते हैं। अतः हमारा राष्ट्रवाद स्वाभाविक रूप से वैश्वीकरण को न केवल स्वीकार करता है बल्कि इसका लगातार प्रोत्साहन भी करता रहा है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।