हमें अपने इतिहास का सही विश्लेषण करना ही होगा Publish Date : 08/01/2025
हमें अपने इतिहास का सही विश्लेषण करना ही होगा
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
स्वाधीनता को प्राप्त करने के बारे में एक भ्रम है कि हमने अपने प्रयासों से पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त की है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि जिन क्रांतिकारियों ने अपना जीवन दिया, जेलों की यातनाएं सही और उनके बलिदान और प्रेरणा की वजह से ही पूरे देश में उत्कृष्ट देशभक्ति का वातावरण तैयार हुआ, जिससे अंग्रेजों की सेना में काम करने वाले भारतीय सैनिकों ने भी अंग्रेजों का विरोध करना शुरू कर दिया था। लेकिन क्या यह पूरा सत्य है कि हमारी स्वतंत्रता केवल हमारे संघर्षों और बलिदानों का ही फल है?
कुछ हद तक तो यह सही है लेकिन अगर यही सच है तो हम कैसे समझा सकते हैं कि अंग्रेजों ने बर्मा (अब म्यांमार) और श्रीलंका को स्वतंत्रता क्यों दी और छोड़ दिया, जबकि उन देशों में तो कोई स्वतंत्रता-आंदोलन हुआ ही नहीं था? मुसलमानों के पास कोई बलिदान या संघर्ष के नाम गिनती के हैं। वह भी पाकिस्तान के लिए नहीं बल्कि भारत की स्वाधीनता के लिए, फिर भी उनके लिए पाकिस्तान के रूप में एक अलग देश बनाया गया और हमारे नेताओं ने भारत के लिए स्वतंत्रता के नाम पर अपनी सभी घोषणाओं और वचनों को भूलकर सहज ही इसे मान्यता भी प्रदान कर दी।
इस घटनाक्रम की सच्चाई यह है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंग्रेज अपने विशाल और दूर-दराज के साम्राज्य पर शासन करने की स्थिति में ही नहीं थे, क्योंकि इससे उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा था। उन्हें भारतीय सेना की वफादारी पर भरोसा नहीं था। चूंकि वे बेहद चालाक और धूर्त थे, इसलिए उन्होंने अपने लिए सद्भावना बनाने का ख्याल रखा और फिर देश छोड़ दिया। ऐसा करते हुए उन्होंने पाकिस्तान के रूप में अपने लिए एक स्थायी पैर जमाने का मौका बनाया और भारत में अप्रत्यक्ष रूप से सांस्कृतिक गुलामी बनाए रखने की प्रक्रिया चलाई।
कुछ अंग्रेज लेखकों ने कभी लिखा था कि, “अगर अंग्रेज कभी भारत छोड़ेंगे, तो वे देश को ‘हिंदू भारत’ और ‘मुस्लिम भारत’ में विभाजित करेंगे।” इस कार्यक्रम में एक मामूली बदलाव हुआ और वह यह था कि इसे लागू करने में हमारे अपने नेताओं ने अंग्रेजों की मदद की।
इतना ही नहीं, वे एक कदम आगे बढ़ गए और उन्होंने देश को ‘हिंदू भारत’ और ‘मुस्लिम भारत’ के बजाय ‘मुस्लिम भारत’ और ‘गैर-मुस्लिम भारत’ के रूप में विभाजित कर दिया।
उस समय हिंदू पूरी तरह से असंगठित थे और नेता इतने हतोत्साहित थे कि वे छिटपुट मुस्लिम हमलों का सामना भी नहीं कर सकते थे या अंग्रेजों की दुष्ट योजनाओं का विरोध नहीं कर सकते थे। इसका अंतिम परिणाम देश का विभाजन था। पाकिस्तान का निर्माण इस तथ्य को पुनः रेखांकित करता है कि हमने इतिहास से कोई सबक नहीं सीखा है और न ही अपनी घातक खामियों को दूर किया है। इसके कारण हम पंजाब का आधा हिस्सा, बंगाल का आधा हिस्सा, सिंध और सीमांत प्रांत को दुश्मन से हार गए हैं।
स्वाधीनता प्राप्ति में अपनी पीढ़ी कोई योगदान नहीं कर सकी क्योंकि तब हम थे ही नहीं परन्तु हमारा सौभाग्य है कि भारत की स्वाधीनता से स्वतंत्रता की यात्रा में हम अपना योगदान दे सकते हैं। प्रत्येक नागरिक में नागरिकता के कर्तव्यों का बोध उन्हें इस यात्रा का सहायक बना सकता है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।