हम स्वयं ही अपने सबसे बड़े विरोधी Publish Date : 07/01/2025
हम स्वयं ही हैं अपने सबसे बड़े विरोधी
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
भारत में देश के साथ विश्वासघात की शर्मनाक कहानी नई नहीं हैं, यह भारत पर पहले आक्रमण से शुरू हुई और ब्रिटिश शासन के आगमन के बाद भी जारी रही। हमने विभिन्न आक्रमणों से सीख लेने से मुंह मोड़ लिया। हिंदू सैन्य अधिकारियों और सैनिकों ने अपने खून से ब्रिटिश साम्राज्य को सुरक्षित और स्थिर नही बनाया होता तो इतने बड़े देश पर जबरन कब्जा करने के लिए लाखों सैनिक ब्रिटेन से लाना उनके लिए संभव ही नहीं था। केवल इतना ही नहीं, अपने लोगों ने ही ब्रिटिश शासन को मजबूत करने के लिए देश के स्वतंत्रता सेनानियों का खून बहाने से भी परहेज नहीं किया।
जालियां वाला बाग इसका सबसे बड़ा और प्रत्यक्ष उदाहरण है। व्यापारियों ने अपना पैसा अंग्रेजों के हवाले कर दिया, हमने अपने मानव संसाधन, भौतिक संपदा और प्रतिभा को उनके लाभ के लिए उनके सामने पेश किया।
एक अंग्रेज इतिहासकार ने कहा है - ‘‘यदि हमने सभी सक्षम अंग्रेजों को भर्ती किया होता और इस उद्देश्य के लिए उन सभी की एक सेना बनाई होती, तो भी हमारे लिए पूरे भारत पर विजय प्राप्त करना संभव नहीं होता। केवल इस सेना के बल पर हमारे लिए इस देश पर शासन करना संभव नहीं था। सच तो यह है कि आपसी संघर्षों में उलझे हुए भारतीयों ने ही यह साम्राज्य हमें उपलब्ध कराया है। वे आज भी सबसे आज्ञाकारी सेवक बनकर जीने में ही प्रसन्न हैं।’’
इस पूरे इतिहास का स्पष्ट निष्कर्ष यह है - देशभक्ति का अभाव, इस बात का बोध न होना कि हम एक महान राष्ट्र के अंग हैं, आपसी दुश्मनी, प्रतिद्वंद्विता, ईर्ष्या और उससे पैदा हुए संकीर्ण स्वार्थों ने पिछले एक हजार वर्षों से देश का जीवन ही समाप्त कर दिया है।
मुसलमान हो या अंग्रेज यह हिंदुओं के दुश्मन नहीं हैं, हम खुद ही अपने विरोधी हैं। भगवद्गीता में कहा गया है आत्मैव ह्यात्मनो बंधु/अतमैव रिपुरात्मनः। (हम ही अपने मित्र हैं, हम ही अपने शत्रु हैं।)
दुर्भाग्य से हमारे मामले में इस पंक्ति का उत्तरार्ध सत्य हो गया है। इसलिए हमें मानना होगा कि हमारे पतन और दुख के लिए बाहरी हमलावरों को दोष देने का कोई मतलब नहीं है।
आज परिस्थितियां बदल गई हैं लेकिन जाने अनजाने हिंदू एकता को हानि पहुंचाने वाले व्यवहार आज भी हमें अपने आस पास ही दिखाई देते हैं।
अगर सांप किसी व्यक्ति को काटता है तो आप उसे दोष नहीं दे सकते; सांप का काटना तो स्वाभाविक है। हिंदू विरोधियों को हिंदू एकता का प्रदर्शन बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा है इसलिए उनका प्रयास है कि हिंदू शक्तियां आपस में लड़ें, आज यह दिखाई दे रहा है कि हिंदू शक्तियां एक दूसरे पर कोई भी टिप्पणी बिना विषयों के समझे और बिना मर्यादा के कर देते हैं।
मुझे लगता है कि हिंदू विचार की अनुकूलता के समय में सभी हिंदू शक्तियों का दायित्व है कि बिना स्वयं को सबसे बड़ा समझे अन्य लोगों से मर्यादित असहमति व्यक्त करें जिससे हिंदू शक्ति में विघटन की स्थिति न बने। हिंदू समाज की एकता के लिए एक लंबी साधना हुई है इसमें किसी प्रकार की दरार देश के लिए बहुत खतरनाक होगी, यह हमारी गलती है कि हम आसन्न खतरे के प्रति सचेत नहीं रहते।
दुर्भाग्यवश, एक हजार वर्षों तक लगातार अपमान और विपत्तियों का सामना करने के बाद आज भी हम यह नहीं समझ पाए हैं कि इन सबके लिए हम स्वयं ही जिम्मेदार हैं और जब तक हम इस घातक दोष को दूर नहीं कर देते, तब तक भारत के वैभव का लक्ष्य पूर्ण नहीं हो सकेगा।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।