आंतरिक संघर्ष और आपसी विघटन के कारण      Publish Date : 05/01/2025

                 आंतरिक संघर्ष और आपसी विघटन के कारण

                                                                                                                                                   प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

प्रथम इस्लामी आक्रमण के पश्चात भी हमारा पूरा देश जागने तथा उसके विरुद्ध एकजुट होकर खड़े होने में विफल रहा था और आंतरिक संघर्षों तथा विश्वासघात की यह आत्मघाती कहानी उसके पश्चात भी जारी रही। पवित्र सोमनाथ मंदिर को अपवित्र करने तथा लूटने के मुहम्मद गजनी के घृणित कार्य में उसके मार्गदर्शक तथा सहायक के रूप में कार्य करने वाले कुछ तथाकथित अपने ही लोग रहे थे। मुहम्मद गौरी को देश पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित करने वाला जयचंद था।

इस प्रकार, यह एक हिन्दू राजा था, जिसने आक्रमणकारियों को पवित्र नगरी इंद्रप्रस्थ में विदेशी शासन स्थापित करने में सहायता प्रदान की। समय बीतने के साथ विश्वासघाती जयचंदों की संख्या भी बढ़ती चली गई। राजा मानसिंह अकबर के विशाल साम्राज्य का सबसे मजबूत आधार थे। उन्होंने राष्ट्रीय गौरव की ज्वाला को प्रज्वलित रखने वाले राष्ट्रीय नायक राणा प्रताप सिंह पर आक्रमण किया। कट्टर शासक तथा हिन्दू द्वेषी औरंगजेब के सेनापति मिर्जा राजा, जयसिंह तथा जयवंतसिंह जैसे योग्य हिन्दू सरदार ही थे। वे शिवाजी महाराज को हराने के लिए औरंगजेब की ओर से आगे बढ़े।

यह आत्मघाती मानसिकता गिरने की इस हद तक पहुंच गई थी कि बख्तियार खिलजी जो दिल्ली से चला और तलवार लहराते हुए पूर्व की ओर बढ़ा, उसे बंगाल की खाड़ी तक कोई प्रतिरोध नहीं झेलना पड़ा। ऐसा कहा जाता है कि उसके पास केवल 800 सैनिक ही थे। अपने रास्ते में उसने असंख्य लोगों को मौत के घाट उतारा, कई लोगों का धर्म परिवर्तन कराया, महिलाओं का अपहरण किया, मंदिरों को नष्ट किया और राज्यों को धूल में मिला दिया। उसने विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय में हजारों छात्रों और शिक्षकों का निर्दयतापूर्वक नरसंहार किया। इस विश्वविद्यालय का पुस्तकालय ज्ञान का एक समृद्ध भंडार था, जिसमें एक हजार वर्षों से संरक्षित पुस्तकों का संग्रह था; जिसको उसने जलाकर राख कर दिया। अंत में वह बंगाल पहुंचा और वहां अपना शासन स्थापित किया।

औरंगजेब की सेना में मनुची नाम का इतालवी अधिकारी था। उसने व्यापक रूप से यात्रा करने के बाद देश में अपने छापों को अपनी डायरी में दर्ज किया है। उन्होंने कहा ‘‘अगर कोई आक्रमणकारी तीस हजार सैनिकों के साथ आता है और खैबर दर्रे के दक्षिण में चला जाता है, तो वह बहुत आसानी से पूरे भारत पर कब्जा कर सकता है और वहां अपना शासन स्थापित कर सकता है।’’ ऐसे उदाहरण समकालीन इतिहास के पन्नों पर हर जगह पाए जा सकते हैं। यह आत्मघाती आंतरिक संघर्षों, अपने ही लोगों के साथ विश्वासघात और अपने ही देश को गुलाम बनाने के लिए दुश्मन से हाथ मिलाने की लंबी और हृदय विदारक कहानी है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।