पराक्रमी भारत ने आक्रमणकारियों को मार-भगाया      Publish Date : 04/01/2025

                पराक्रमी भारत ने आक्रमणकारियों को मार-भगाया

                                                                                                                                                            प्रेफेसर आर. एस. सेंगर

हमारी इस मातृभूमि पर एक अद्वितीय और समृद्ध राष्ट्रीय जीवन पनपा हुआ था। इसकी सामाजिक व्यवस्था असाधारण थी और राजनीतिक संस्थाएँ बहुत विकसित थीं। इस देश के राजनेताओं को राजनीति के उच्च सिद्धांतों का पूरा ज्ञान था। दुनिया में राजनीति पर बहुत कम रचनाएँ कौटिल्य के अर्थशास्त्र की तुलना कर सकती हैं। इस संग्रह में विचारों के कई रत्न हैं जो समय और स्थान की सीमाओं से परे सभी को मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं।

यह विचार केवल किताबी ज्ञान नहीं थे, उन्होंने समकालीन शासकों को व्यावहारिक और अनुभवजन्य ज्ञान दिया। हमलावर हमारी सेना की मारक क्षमता के प्रति सावधान थे। हमने शक और हूण जनजातियों जैसे बर्बर हमलावरों को पीछे धकेल दिया था और उनमें से जो लोग पीछे रह गए थे, वे हमारी सर्व-समावेशी संस्कृति में पूरी तरह से समाहित हो गए थे।

तथाकथित विश्व विजेता सिकंदर का भी यही हश्र हुआ। पश्चिमी लेखकों द्वारा लिखी गई इतिहास की किताबें हमें बताती हैं कि महान सिकंदर ने इस देश में जो राज्य जीता था, उसे उसने उदारता के कारण ही वापस किया था। ये इतिहास-विशेषज्ञ हमसे यह मानने की अपेक्षा करते हैं कि सिकंदर, जो ईरान में अपने द्वारा किए गए क्रूर अत्याचारों पर गर्व करता था और जिसने सैन्य सफलता पाने वाले हर स्थान पर इन क्रूरतम अत्याचारों को दोहराया, वह भारत की धरती पर पैर रखते ही अचानक उदार कैसे हो गया। उदार पश्चिमी विजेता अब तक पैदा नहीं हुआ।

ईसाई धर्म के प्रचार के दो हजार वर्षों के बाद पश्चिमी शासकों ने अपने विजित ईसाई भाइयों के साथ जो व्यवहार किया और उसमें जो ‘उदारता’ दिखाई, उसे देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। जहां तक सिकंदर का प्रश्न है, ऐतिहासिक साक्ष्यों के प्रकाश में सत्य यह है कि सिकंदर उस पहाड़ी इलाके में सरदारों के हमलों के सामने अधिक समय तक टिक नहीं सका था और अपनी जान बचाने के लिए उसे युद्ध के मैदान से ही भागना पड़ा।

लेकिन तब भी एक सैनिक का तीर उसे लगा। उस तीर से लगी घातक चोट के कारण वह घर लौटने को विवश हुआ। लेकिन यह जानकर कि उसी रास्ते से लौटना खतरनाक था, उसे दूसरा रास्ता अपनाना पड़ा। वह किसी तरह ईरान पहुंचा और वहीं उसकी मृत्यु हो गई। सिकंदर के बाद यूनानियों ने फिर देश पर आक्रमण किया लेकिन मगध के सम्राट चंद्रगुप्त ने उस आक्रमण को पूरी तरह से विफल कर दिया था।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।