वर्तमान परिवेश में जैविक खेती Publish Date : 02/01/2025
वर्तमान परिवेश में जैविक खेती
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 रेशु चौधरी
आज के समय पूरे विश्व में बढ़ती हुई जनसंख्या एक गंभीर समस्या बनी हुई है, बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ साथ उसकी भोजन की आपूर्ति के लिए मानव द्वारा खाद्य उत्पादन की होड़ में अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए विभिनन प्राकर की रासायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों का उपयोग कर, प्रकृति के जैविक और अजैविक पदार्थाे के बीच आदान-प्रदान के इस चक्र को (इकालाजी सिस्टम) प्रभावित करता है, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति खराब हो जाती है, साथ ही वातावरण भी प्रदूषित होता है और इसके साथ ही मानव के स्वास्थ्य में भी लगातार गिरावट आती जा रही है।
प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकुल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती थी, जिससे जैविक और अजैविक पदार्था के बीच आदान-प्रदान का चक्र (Ecological System) भी निरन्तर चलता रहता था, जिसके फलस्वरूप जल, भूमि, वायु तथा वातावरण प्रदूषण भी नहीं के बराबर होता था। भारत वर्ष में प्राचीन काल से कृषि के साथ-साथ गौ पालन भी किया जाता था, जिसका प्रमाण हमारे ग्रांथों में प्रभु श्री कृष्ण और बलराम हैं जिन्हें हम गोपाल एवं हलधर के नाम से संबोधित करते हैं अर्थात कृषि एवं गोपालन संयुक्त रूप से अत्याधिक लाभदायी था, जो कि प्राणी मात्र के साथ ही वातावरण के लिए भी अत्यन्त उपयोगी होता था।
परन्तु बदलते परिवेश में गोपालन धीरे-धीरे कम होता चला गया तथा कृषि में तरह-तरह की रसायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता रहा है जिसके फलस्वरूप जैविक और अजैविक पदार्था के प्राकृतिक चक्र का संतुलन बिगड़ता जा रहा है, और वातावरण प्रदूषित होकर, मानव जाति के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। अब हम रसायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों के उपयोग के स्थान पर, जैविक खादों एवं दवाईयों का उपयोग कर, अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं जिससे भूमि, जल एवं वातावरण आदि तो शुद्व रहेगा ही और इसी के साथ मनुष्य एवं प्रत्येक जीवधारी भी स्वस्थ रह सकेंगे।
भारत वर्ष में देश की अर्थव्यवस्था और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है और कृषकों की मुख्य आय का साधन भी खेती ही है। हरित क्रांति के समय से ही बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए एवं आय की दृष्टि से अपने कृषिगत उत्पादन को बढ़ाना अति आवश्यक है। अधिक उत्पादन के लिये खेती में अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरको एवं कीटनाशक का उपयोग करना पड़ता है जिससे मध्यम एवं छोटे कृषक जिनकी भारत में संख्या अधिक है, के पास उपलब्ध कम जोत में भी अत्यधिक लागत लग रही है और जल, भूमि, वायु और वातावरण आदि भी प्रदूषित हो रहे है इसके साथ ही हमारे खाद्य पदार्थ भी जहरीले हो रहे है।
इसलिए इस प्रकार की उपरोक्त सभी समस्याओं से निपटने के लिये गत वर्षाे से निरन्तर टिकाऊ खेती के सिद्वान्त पर खेती करने की सिफारिश की जा रही है, जिसे प्रदेश के कृषि विभाग ने इस विशेष प्रकार की खेती को अपनाने के लिए, बढ़ावा दिया जिसे हम सामान्य भाषा में ‘‘जैविक खेती’’ के नाम से जानते हे। भारत सरकार भी इस खेती को अपनाने के लिए प्रचार-प्रसार कर रही है।
प्रदेश में सर्वप्रथम 2001-02 में जैविक खेती के लिए एक अन्दोलन चलाकर प्रत्येक जिले के प्रत्येक विकास खण्ड के एक गांव मे जैविक खेती प्रारम्भ की गई और इन गांवों को ‘‘जैविक गांव’’ का नाम प्रदान किया गया। इस प्रकार प्रथम वर्ष में कुल 313 ग्रामों में जैविक खेती की शुरूआत की गई। इसके बाद 2002-03 में द्वितीय वर्ष मे प्रत्येक जिले के प्रत्येक विकासखण्ड के दो-दो गांव, वर्ष 2003-04 में 2-2 गांव अर्थात 1565 ग्रामों मे जैविक खेती आरम्भ की गई।
वर्ष 2006-07 में पुनः प्रत्येक विकासखण्ड में 5-5 गांवों का चयन किया गया। इस प्रकार प्रदेश के 3,130 ग्रामों जैविक खेती का कार्यक्रम किया जा रहा है। मई 2002 में राष्ट्रीय स्तर का कृषि विभाग के तत्वाधान में जैविक खेती पर सेमीनार आयोजित किया गया जिसमें राष्ट्रीय कृषि विशेषज्ञों एवं जैविक खेती करने वाले अनुभवी कृषकों द्वारा भाग लिया गया, जिसमें अन्य कृषकों को भी जैविक खेती अपनाने हेतु प्रोत्साहित किया गया।
प्रदेश के प्रत्येक जिले में जैविक खेती के प्रचार-प्रसार हेतु चलित झांकी, पोस्टर्स, बेनर्स, साहित्य, एकल नाटक, कठपुतली प्रदर्शन जैविक हाट एवं विशेषज्ञों द्वारा जैविक खेती पर उद्बोधन आदि के माध्यम से जमकर इसका प्रचार-प्रसार किया और कृषकों में जन जाग्रति फैलाई जा रही है।
जैविक खेती से लाभ
कृषकों की दृष्टि से लाभ
जैविक खेती से भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्वि हो जाती है। सिंचाई अंतराल में वृद्वि होती है। रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से कास्त की लागत में कमी आती है। फसलों की उत्पादकता में वृद्वि।
मिट्टी की दृष्टि से
जैविक खाद के उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता में काफी सुधार आता है। इससे भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ती हैं और भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होता है।
पर्यावरण की दृष्टि से
भूमि के जल स्तर में वृध्दि होती हैं। मिट्टी खाद पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण मे कमी आती है। कचरे का उपयोग, खाद बनाने में, होने से बीमारियों में कमी आती है। फसल उत्पादन की लागत में कमी एवं किसानों की आय में वृद्वि अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद की गुणवत्ता का खरा उतरना।
जैविक खेती, की विधि रासायनिक खेती की विधि की तुलना में बराबर या अधिक उत्पादन देती है अर्थात जैविक खेती मृदा की उर्वरता एवं कृषकों की उत्पादकता बढ़ाने में पूर्णतः सहायक है। वर्षा आधारित क्षेत्रों में जैविक खेती की विधि तो और भी अधिक लाभदायक है । जैविक विधि द्वारा खेती करने से उत्पादन की लागत तो कम होती ही है इसके साथ ही कृषक भाइयों को आय अधिक प्राप्त होती है तथा अंतराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद अधिक खरे उतरते हैं, जिसके फलस्वरूप सामान्य उत्पादन की अपेक्षा में कृषक भाई अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
आधुनिक समय में निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या, पर्यावरण प्रदूषण, भूमि की उर्वरा शक्ति का संरक्षण एवं मानव स्वास्थ्य के लिए जैविक खेती की राह अत्यन्त लाभदायक है। मानव जीवन के सवांर्गीण विकास के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि प्राकृतिक संसाधन प्रदूषित न हों, शुद्व वातावरण बना रहे एवं पौष्टिक आहार मिलता रहे, इसके लिये हमें जैविक खेती की कृषि पद्वतियों को अपनाना होगा, जो कि हमारे नैसर्गिक संसाधनों एवं मानवीय पर्यावरण को प्रदूषित किये बगैर समस्त जनमानस को स्वास्थ्य वर्धक खाद्य सामग्री उपलब्ध करा सकेगी तथा हमें एक खुशहाल जीवन जीने की राह दिखा सकेगी।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।