अलसी की फसल में लगने वाले रोग एवं उनका नियंत्रण      Publish Date : 31/12/2024

          अलसी की फसल में लगने वाले रोग एवं उनका नियंत्रण

                                                                                                                                   प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं डॉ0 वर्षा रानी

अलसी की फसल में आमतौर पर विभिन्न प्रकार के रोग जैसे गेरुआ, उकठा, चूर्णिल आसिता तथा आल्टरनेरिया अंगमारी एवं कीट यथा फली मक्खी, अलसी की इल्ली, अर्धकुण्डलक इल्ली तथा चने की इल्ली के द्वारा भारी क्षति पहुंचाई जाती है जिससे अलसी की फसल के उत्पादन में भारी कमी आ जाती है।

                                                      

अलसी की फसल से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए किसानों को चाहिए कि वह समय पर ही अलसी में लगने वाले इन हानिकारक कीट एवं रोगों की रोकथाम करें। आज हमारे इस लेख में अलसी फसल में लगने वाले विभिन्न कीट व रोग एवं उनकी रोकथाम कैसे करें, के सम्बन्ध में पूरी जानकारी का विस्तार पूर्वक उल्लेख किया गया है।

अलसी की फसल में लगने वाले रोगों की रोकथाम

                                                            

गेरुआ (रस्ट) - यह रोग मेलेम्पसोरा लाइनाई नामक फफूंद के माध्यम से होता है। रोग का प्रकोप प्रारंभ होने पर चमकदार नारंगी रंग के धब्बे अलसी की फसल की पत्तियों के दोनों ओर दिखाई देने लगते हैं और धीरे-धीरे यह पौधे के सभी भागों में पूरी तरह से फैल जाते हैं।

रोग का नियंत्रण - इस रोग का नियंत्रण करने के लिए अलसी की रोगरोधी प्रजातियां जे. एल. एस. - 9, जे. एल. एस.- 27, जे. एल. एस.- 66, जे. एल. एस.- 67 और जे. एल. एस.- 73 आदि का ही उपयोग करना चाहिए। रोग की रासायनिक दवा के रूप में टेबूकोनाजोल 2 प्रतिशत 1 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से या (कैप्टान $ हेक्साकोनाजाल) का 500 से 600 ग्राम मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड की दर से छिड़काव करना चाहिए।

उकठा (विल्ट) - यह अलसी की फसल का प्रमुख और हानिकारक मृदा जनित रोग होता है। इस रोग का प्रकोप अंकुरण से लेकर परिपक्वता तक कभी भी अलसी की फसल पर हो सकता है। इस रोग के लक्षणों में रोगग्रस्त पौधों की पत्तियों के किनारे अन्दर की ओर मुड़कर मुरझा जाते हैं। इस रोग का प्रसार प्रक्षेत्र में पड़े फसल अवशेषों के माध्यम से होता है। इसके रोगजनक मृदा में उपस्थित फसल अवशेषों तथा मृदा में उपस्थित रहते हैं तथा अनुकूल वातावरण के मिलने पर यह पौधों पर संक्रमण करते हैं।

रोग का नियंत्रण -

रोगरोधी और उन्नत प्रजातियों का ही उपयोग करें।

चूर्णिल आसिता (भभूतिया रोग) - इस रोग का संक्रमण होने की दशा में अलसी की फसल में इसकी पत्तियों पर सफेद चूर्ण सा जम जाता है। रोग की तीव्रता अधिक होने पर अलसी के दाने सिकुड़ कर छोटे रह जाते हैं। देर से बुवाई करने पर एवं शीतकालीन वर्षा होने तथा अधिक समय तक आर्द्रता बनी रहने की दशा में इस रोग का प्रकोप बढ़ जाता है।

नियंत्रण- उन्नत प्रजाति उगायें तथा कवकनाशी के रुप में थायोफिनाईल मिथाईल 70 प्रतिशत डब्ल्यू पी 300 ग्राम प्रति एकड की दर से खड़ी फसल पर छिड़काव करने से रोग का प्रबन्धन होता है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।