गेंहूँ की बम्पर पैदावार कैसे लें किसान      Publish Date : 25/12/2024

                      गेंहूँ की बम्पर पैदावार कैसे लें किसान

                                                                                                                                                        प्रोफेसर आर. एस. सेगर

भारत में गेंहूँ की खेती एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, क्योंकि देश की खाद्य सुरक्षा को बनाने में इसका महत्वपूण योगदान है। भारत के पंाब राज्य में गेंहूँ का उत्पादन सर्वाधिक होता है, क्योंकि राज्य की मृदा उपजाऊ है और वहां सिंचाई की सुविधा भी बहुत विकसित है। हालांकि, बदलते मौसम का पैटर्न और खेती में निरंतर बड़ती लागत अपने आप चुनौतिपूर्ण है, इसको ध्यान रखते हुए किसान अक्सर सोचते रहते हैं कि कम खर्च में अधिक उत्पादन किस प्रकार से लिया जा सकता है।

                                                              

आप के अपने किसान डॉट जागरण के अपने इस लेख में हमारे कृषि विशेषज्ञ ऐसे समस्त उपायों के बारे में बात करेंगे, जो कि गेंहूँ की फसल का उत्पादन बढ़ाने में सहायता प्रदान कर सकते हैं। इसके सम्बन्ध में गेंहूँ की खेती करने की वैज्ञानिक विधि कम लागत लगने वाली तकनीकियों का भी विशेष रूप से समावेश किया जाएगा।

गेंहूँ की पहली सिंचाई करते समय क्या करें

गेंहूँ की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए इसमें पहली सिंचाई का महत्वपूर्ण रोल होता है। ऐसे में अधिकतर किसान इस उलझन में रहते हैं कि गेंहूँ में पहला पानी कब दिया जाए। इसके सम्बन्ध में कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि फसल की बुवाई करने के 20 से 22 दिन के अंदर, जब पौधों में क्राउन रूट बनने लगते हैं, जो कि गेंहूँ के पौधों की जड़ों का वह भाग होता है, जो पौधों की सहायता पोषक तत्वों को गहण करने की क्षमता प्रदान करते हैं।

यदि इस समय खेत में नमी की कमी होती है तो इससे पौधों की जड़ों का विकास रूक जाता है अतः इस समय फसल को पानी के साथ ही पोषक तत्व प्रदान करने की भी आवश्यकता होती है। इसके लिए 4 से 5 दिन पूर्व एक विशेष घोल, जिसमें 100 ग्राम लेटेड जिंक, 100 ग्राम लेटेड आयरन और 500 ग्राम मैग्नीशियम सल्फेट को 100 लीटर पानी में मिलाकरइसका छिड़काव फसल पर करें।

यह छिड़काव गेंहूँ के पौधों के लिए वैक्सीनेशन का कार्य करता हैं, जो पौधों को पोषक ततवों की कमी और बीमारियों से बचाता है। इसके साथ ही फसल को पहली सिंचाई के दौरान ही 40-45 कि.ग्रा. यूरिया भी देना चाहिए, लेकिन इसमें डीएपी की मात्रा को कम ही रखना चाहिए, क्योंकि इससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है।

कैसे करें खरपतवार और कीटों का नियंत्रण

गेंहूँ की फसल में खरपतवार और कीटों का प्रकोप होना एक आ बात है। गेंहूँ का सबसे खतरनाक कीट पिंक स्टेम बोरर होता है, जो गेंहूँ की फसल को भारी नुकसान पहुँचा सकता है। इस कीट का नियंत्रण करने के लिए केरोसाइपर 100 एमएल प्रति टैंक पानी की दर से मिलाकर इसका स्प्रे फसल कर करना चाहिए। वहीं गेंहूँ के खरपतवार जैसे बथुआ, जंगली जई और पालक आदि को हटाने के लिए पहली सिंचाई के बाद खरपतवार नाशक दवाओं का प्रयोग करना उचित रहता है।

इसके बाद 35 से 40 दिन के बाद दूसरी सिंचाई करे और 35 से 40 कि.ग्रा. यूरिया खेत में डालें, हालांहि, यदि खेत की मिट्टी हल्की है तो यूरिया मात्रा को बढ़ाया भी जा सकता है।

गेंहूँ की फसल में माइक्रोन्यूट्रिएन्ट्स का महत्व  

गेंहूँ की फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए केवल यूरिया ही पर्याप्त नही होता है इसके अलावा पौधों को अतिरिक्त माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की आवश्यकता भी होती है। जब गेंहूँ की फसल 60 से 65 दिन की हो जाए तो उस पर 1 कि.ग्रा. मैंगनीज और 500 ग्राम यूरिया का 100 लीटर पानी में घोल बनाकर इसका छिड़काव करना अच्छा रहता है। फसल की बुवाई के 70 से 75 दिनों के बाद, जब गाभा बनने के समय 1 कि.ग्रा. पोटेशियम सल्फेट 100 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। ऐसा करने से गेंहूँ के दाने बड़े और भारी होते हैं जिससे उत्पादन बढ़ता है।

मार्च में गेंहूँ की देखभाल

किसान भाईयों मार्च के महीने में मौसम में तेजी से बदलाव आता है, ठंड के स्थान पर वतावरण में गर्मी बढने लगती है अतः इस समय फसल को एक पानी देना आवश्यक है, जिससे कि फसल को नमी प्राप्त होती रहे। परन्तु इस बात का ध्यान रखें कि पानी अधिक मात्रा में न दिया जाए क्योंकि ऐसा होने से गेंहूँ के पौधों के गिरने का भय रहता है।

मार्च में येलो रस्ट के जैसे रोग फसल को नुकसान पहुँचा सकते हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए प्रोपकोनाजोल या जोबसिन प्लस डापनाकोनाज आदि रसायनों का स्प्रे करना चाहिए। यह रसायन रोगों की रोकथाम करने के साथ ही गेंहूँ की फसल को सही समय पर पकाने में भी सहायता करते हैं।

गेंहूँ की फसल से कम लागत में अच्छा उत्पादन

                                                         

इस प्रकार से किसान उपरोक्त तकनीकों को अपनाकर कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं और अपनी आय को बढ़ा सकते हैं। गेंहूँ की फसल की पहली सिंचाई, संतुलित पोषण, खरपतवार और कीटों का उचित प्रबन्धन, माइक्रोन्यूट्रिएंट्स का सही उपयोग और मौसम का प्रबन्धन करने से गेंहूँ की फसल की पैदावार बढ़ाई जा सकती है।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।