एक नई सामाजिक बीमारी रिसोर्ट्स मे विवाह समारोह का आयोजन Publish Date : 16/12/2024
एक नई सामाजिक बीमारी रिसोर्ट्स मे विवाह समारोह का आयोजन
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर एवं अन्य
सामाजिक भवन अब उपयोग में नहीं लाए जाते हैं। वर्तमान में हमारे समाज एक नई सामाजिक बीमारी, रिसोर्ट मे विवाह समारोह का आयोजन करना एक स्टेटस सिंबल बन चुका है, जिसके चलते हमें नित नई अवांछित गतिविधियाँ और घटनाएं आदि सुनने और देखने को मिलती रहती हैं। इस चलन के परिप्रेक्ष्य में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य-
- सामाजिक भवनों का उपयोग अब नही किया जाता है और शादी समारोह हेतु यह सब अब बेकार हो चुके हैं।
- कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियां होने की परंपरा चली थी, परंतु अब यह दौर भी समाप्ति की ओर अग्रसर है।
- वर्तमान में अब शहर से दूर महंगे रिसोर्ट्स में शादियों का आयोजन होने लगा है।
- शादी के 2 दिन पूर्व से ही ये रिसोर्ट बुक करा लिया जाते हैं और शादी कराने वाला परिवार इन रिसोर्ट्स में शिफ्ट हो जाता है।
- आगंतुक और मेहमान भी अब सीधे वही आते हैं और वहीं से विदा भी हो जाते हैं।
इस प्रकार के शादी समारोह में जिन लोगों के पास चार पहिया वाहन उपलब्ध है केवल वही लोग इन शादियों जा पाते हैं, और दोपहिया वाहन वाले लोग भी वहां नहीं जा पाते है, चूँकि शादी में लोगों को बुलाने वाला भी शायद यही स्टेटस चाहता है।
वह निमंत्रण भी उसी श्रेणी के अनुसार देता है और इसके लिए दो से तीन प्रकार की श्रेणियां आजकल अलग से रखी जाने लगी है, जैसे-
- किन लोगों को केवल लेडीस संगीत में बुलाना है।
- किन लोगों को केवल रिसेप्शन में बुलाना है।
- किन लोगों को केवल कॉकटेल पार्टी में बुलाना है। और ऐसे कितने वीआईपी परिवार हैं जिनको इन सभी कार्यक्रमों में बुलाना है।
- इस प्रकार के आमंत्रणों में अब अपनेपन की भावना तो लगभग समाप्त ही हो चुकी है।
- इन समारोहों में केवल अपने मतलब के व्यक्तियों या परिवारों को ही आमंत्रित किया जाता है।
- महिला संगीत के दौरान पूरे परिवार को नाच गाना सिखाने के लिए महंगे-महंगे कोरियोग्राफर 10-15 दिन ट्रेनिंग देते हैं।
मेहंदी लगाने के लिए आर्टिस्ट अलग से बुलाए जाने लगे हैं-
मेहंदी में सभी को हरी ड्रेस पहनना अनिवार्य है और जो नहीं पहन पाता है उसे हीन भावना से देखा जाता है और उसे लोग लोवर केटेगरी का मानते हैं।
इस सबके बाद फिर आती है हल्दी की रस्म
इस रस्म में भी सभी को पीला कुर्ता पायजामा पहनना अति आवश्यक है, हालांकि, इसमें भी वही समस्या है जो व्यक्ति किसी कारणवश नहीं पहन पाता है उसकी इज्जत कम हो जाती है।
इसके बाद वर की निकासी होती है। इसमें अक्सर देखा जाता है जो लोग पंडित को दक्षिणा देने में 1 घंटे डिस्कशन करते हैं, वही लोग बारात प्रोसेशन के दौरान 5 से 10 हजार रूपये नाच गाने पर ऐसे ही उड़ा देते हैं।
इसके बाद स्टार्ट होता है रिसेप्शन का कार्यक्रम
पहले स्टेज पर वरमाला की रस्म होती है जिसमें पहले लड़की और लड़के वालों के परिवार आपस में मिलकर हंसी मजाक करके वरमाला की रस्म पूर्ण करवाते थे, परन्तु आजकल स्टेज पर कंडे के धुंए की धूनी देकर छोड़ दिया जाता है।
दूल्हा और दुल्हन को अकेले ही छोड़ दिया जाता है और बाकी सब लोगों को उनसे दूर भगा दिया जाता है और फिल्मी स्टाइल में स्लो मोशन में वह एक दूसरे को वरमाला पहनाते हैं।
इसके साथ ही नकली आतिशबाजी भी होती रहती है और स्टेज के पास एक बड़ा सा स्क्रीन भी लगा रहता है जिसमें प्रीवेडिंग सूट की वीडियो चलती रहती है और इसमें यह बताया जाता है की शादी से पहले ही लड़की और लड़का आपस में मिल चुके है और वह भी कितने अंग प्रदर्शन वाले कपड़े पहन कर, कहीं चट्टान पर, कहीं बगीचे में, कहीं कुए पर।
फूलों के बीच लोग अपने परिवार की इज्जत को नीलाम कर के आ गये हैं।
प्रत्येक परिवार अलग-अलग कमरे में ठहरते हैं।
जिसके कारण दूर दराज से आए या बरसों बाद रिश्तेदारों से मिलने की उत्सुकता भी अब कहीं खत्म सी हो गई है। क्योंकि अब सब लोग अमीर हो गए हैं पैसे वाले हो गए हैं, तो मेल मिलाप और आपसी स्नेह भी लगभग समाप्त ही हो चुका है।
भारतीय संस्कृति को दूषित करने का बीड़ा ऐसे ही अति संपन्न वर्ग ने अपने कंधों पर उठाया हुआ है।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।