षड्यंत्रों का उत्तर लोकमान्य तिलक      Publish Date : 15/12/2024

                        षड्यंत्रों का उत्तर लोकमान्य तिलक

                                                                                                                                                             प्रोफेसर आर. एस. सेंगर

छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित स्वतंत्र राज्य समाप्त हो गया और देश ब्रिटिश साम्राज्य की गुलामी में जकड़ गया था। 1857 का स्वतंत्रता संग्राम असफल रहा। यह महसूस किया गया कि ब्रिटिश शासन की नींव हिलाने के लिए विद्रोह और क्रांति जैसे विभिन्न प्रयास अप्रभावी थे।

                                                           

इसके विपरीत, प्रमुख विचारक विदेशी शासन की प्रशंसा करने में व्यस्त थे और वे अधिक अधिकारों के लिए विनम्रतापूर्वक याचिकाएँ प्रस्तुत करते थे; उन्होंने वास्तव में, प्रशासन को बेहतर बनाने में सहयोग दिया और इस तरह से इसकी पकड़ को और मजबूत किया। गुलामी का जहर पूरे देश में फैलने लगा था।

लोगों ने देश के प्रति अपना गौरव खो दिया और विदेशी जीवन के तरीके, विदेशी दृष्टिकोण, विदेशी प्रशासन, विदेशी सामाजिक संगठन को सराहनीय और अपनाने योग्य मानने लगे; कुछ लोग तो ईसाई धर्म अपनाने की हद तक चले गए।

लोग अपनी राष्ट्रीय विरासत से घृणा करने लगे थे। जो लोग अभी भी पुरानी परंपरा से चिपके हुए थे, वे अंधविश्वासों से ग्रस्त थे; उनके लिए वेद और वेदांत दर्शन का प्रेरणादायक देशभक्ति संदेश उन पर हावी नहीं हो पाया। इसका अंतिम परिणाम निष्क्रियता और कायरता थी। 

महान विचारों की गलत व्याख्या की और विदेशी शासकों को रहा मानकर उनके सामने घुटने टेकने की शर्मनाक प्रथा शुरू की। संक्षेप में, इसने ऐसी स्थिति पैदा कर दी जिसमें हर क्षेत्र में आत्मसम्मान के नुकसान का खतरा था। इस भयंकर अंधकारमय जीवन में आशा की कोई किरण नहीं थी। यह डर था कि यह सबका अंत था।

                                                        

इसी पृष्ठभूमि में भारत की गौरवशाली परम्परा के अनुरूप लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के रूप में एक तेजस्वी व्यक्तित्व का मानव रूप प्रकट हुआ।

 देशभक्तों की तीव्र इच्छा है कि वे लोकमान्य के प्रकाश में उनके मार्ग पर आगे बढ़ें। जिस प्रकार के षड्यंत्र भारत के विरुद्ध भारत में ही बैठे लोग विदेशी जॉर्ज सोरोस की सहायता से करने का प्रयास कर रहे हैं इसके लिए हमें भी तिलक की भांति हिंदू चेतना का जागरण करते हुए राष्ट्र और धर्म को एक रूप करना होगा।

लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल   कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।