वायु प्रदूषण से पार पाने के लिए राष्ट्रव्यापी सोच की आवश्यकता Publish Date : 09/12/2024
वायु प्रदूषण से पार पाने के लिए राष्ट्रव्यापी सोच की आवश्यकता
प्रोफेसर आर. एस. सेंगर
वायु प्रदूषण अब केवल दिल्ली-एनसीआर में ही नही, बल्कि पूरे देश के लिए एक बहुत बड़ समस्या बन चुका है। चाहे कोई आम व्यक्ति हो अथवा खास व्यक्ति, सभी लोग प्रदूषण से व्यापक स्तर पर प्रभावित हो रहे हैं। इसीलिए देश की शीर्ष अदालत और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के साथ ही केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय आदि सभी चिंतित दिखाई दे रहे हैं।
इस सबके उपरांत भी दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की वायु की गुणवत्ता में को सुधार नही हो पा रहा है, तो वह केवल इसलिए क्योंकि वायु गुणवत्ता प्रबन्धन आयोग (सीएक्यूएम) और केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इसके लिए कोई प्लान बना सकते है, आवश्यक गाईडलाईंस जारी कर सकते हैं और पर अमल कराना राज्य सरकारों का काम है।
वहीं हमारे राजनेता अपने निहीत स्वार्थ के चलते कोई सख्त कदम उठाने से बचते हैं। इसी सब के चलते यह स्थिति साल दर साल अधिक बद से बदतर होती जा रही है।
ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) के अस्तित्व में आने के कई वर्ष पश्चात् भी दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का अपेक्षित स्तर तक कम नही हो पाना अपने आप में चिंताजनक स्थिति है। अभी दिल्ली के हालात यह है कि यहाँ का कमोबेश प्रत्येक नागरिक इसी प्रदूषित हवा में सांस लेने के लिए विवश है। हालांकि इस स्थिति से निजात पाने के लिए योजनाए्र तो बहुत है परन्तु उन पर गम्भीरता के साथ अमल बहुत ही कम हो पाता है।
यह एक अलग बात है कि बीते कुछ वर्षों में विभिन्न कारणों के चलते दिल्ली के वायु प्रदूषण में कुछ कमी तो अवश्य ही आई है। प्रदूषण के विरूद्व जारी इस लड़ाई में ईमानदारी और गम्भीरता दोनों ही अनिवार्य है और इसमें सरकार की सक्रियता भी बहुत अधिक मायने रखती है। केन्द्र सरकार योजनाएं तैयार करती है तो उन योजनाओं को कार्यान्वित करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होती है।
अतः यह आवश्यक है कि प्रदूषण पर की जाने वाली राजनीति ही नही, बल्कि अमीरी और गरीबी का भेदभाव भी समाप्त करना बहुत आवश्यक है। इसके साथ ही दीर्घकालिक उपायों को गति प्रदान करना और उनकी निगरानी में भी अपेक्षित वृद्वि करनी होगी।
इसके लिए नियम-कायदे तो बना दिए गए परन्तु इन्हें क्रियान्वयन करने वाली एजेंयिां निष्क्रिय ही नजर आती हैं। डीजल से चलने वाले जनरेटर्स पर प्रतिबन्ध को सुनिश्चित् करने के लिए भी हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब एवं राजस्थान आदि राज्य सरकारें प्रतिवर्ष अपने हाथ खड़े कर देती हैं।
इस सम्बध में ग्रेप के नियम-कायदे लागू करने के लिए राज्य सरकारों से लेकर स्थानीय निकाय तक सभी जिम्मेदार है और सत्यता यह है कि इनमें आपस में ही कोई तालमेल नही है। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब एवं राजस्थान सरकारों में से कोई भी एनसीआर की गिड़ती हुई आबोहवा को लेकर गंभीर नही है। इसलिए वायु प्रदूषण की बेहतर ढंग से निगरानी तक भी नही हो पा रही है।
यदि गम्भीरता पूर्वक विचार किया जाए तो ग्रेप के केन्द्र में मूल रूप से एनसीआर ही रहा है। जबकि प्रदूषण की यह समस्या दिल्ली से लगे एनसीआर के समस्त जिलों से भी जुड़ी हुई है। रीजनल टांसपोर्ट राजधानी के प्रदूषण में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। उदाहरण के लिए दिल्ली में सार्वजनिक वाहन केवल सीएनजी से संचालित किए जा सकते हैं, जबकि दूसरे राज्यों के डीजल से चलने वाले वाहन भी वहां णड़ल्ले से चलते हुए देखे जा सकते हैं।
ग्रेप के पालन में सख्ती नही होने के कारण ही विभिन्न राज्यों में सामजस्य की स्थिति बहाल नही हो पाती है। एनजीटी भी दिल्ली के अतिरिक्त किसी अनय स्थान पर फोकस नही कर पा रहा है, जबकि प्रदूषण की यह समस्या तो अब देशव्यापी हो चुकी है।
प्रदूषण से जंग में राज्य सरकारें जहां राजनीतिक राग-द्वेष की शिकार हैं, वहीं प्रदूषण बोर्ड भी अपने आप को अधिकार विहीन होने का अनुभव कर रहा है। पंजाब और हरियाणा में अब भी पराली को जलाने की घटनाएं सामने आती रहती हैं। इसलिए राज्य सरकारों को चाहिए कि वह केवल अपने वोट बैंक की ही नही बल्कि नागरिकों के स्वास्थ की भी चिंता करें। नियमों का पालन नही होने की स्थिति में कड़ी कार्यवाई को सुनिश्चित् करना भी अत्यंत आवश्यक है।
देशव्यापी कोरोना लॉकडाउन के दौरान यह स्पष्ट हो गया था कि निी वाहनों की संख्या को कम करने, सार्वजनिक वाहनों को बढ़ावा देने, औद्योगिक प्रदूषण पर प्रभावी लगम लगाने और विभिन्न स्तरों पर अंकुश लगाने से किस हद तक वायु, ध्वनि और जल प्रदूषण के स्तर को कम किया जा सकता है। अतः यह आवश्यक है कि भविष्य में प्रदूषण के खिलाफ जो भी योजनाएं बनाई जाएं, उन सभी में लॉकडाउन से प्राप्त अनुभव का समावेश आवश्यक रूप से किया जाए।
लेखकः डॉ0 आर. एस. सेंगर, निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट, सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ।